Konkona Sen Sharma: ‘मेट्रो इन दिनों’ ऑफर होने पर चौंक गई थीं कोंकणा, बोलीं- 17 साल में कुछ भी नहीं बदला
Konkona Sen Sharma On Metro In Dino: कोंकणा सेन शर्मा एकमात्र कलाकार हैं, जो ‘मेट्रो इन दिनो’ के पहले पार्ट ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ में भी थीं। उन्होंने बताया कि जब उन्हें ये फिल्म ऑफर हुई तो क्या था उनका पहला रिएक्शन।


विस्तार
फिल्में चुनने में बेहद सजग और अपनी अलग सोच के लिए पहचानी जाने वाली एक्ट्रेस कोंकणा सेन शर्मा जल्द ही अनुराग बसु की फिल्म ‘मेट्रो इन दिनों’ में नजर आएंगी। अमर उजाला से इस खास बातचीत में कोंकणा ने न सिर्फ इस फिल्म को लेकर अपने अनुभव साझा किए, बल्कि अपने करियर, सोच और निर्देशन के सफर पर भी बेबाकी से बात की।
जब 'मेट्रो… इन दिनों' के लिए अनुराग बसु ने आपको कॉल किया, तो सबसे पहले आपके मन में क्या ख्याल आया?
जब अनुराग का कॉल आया कि वो 'मेट्रो इन दिनों' बना रहे हैं और मुझे उसमें कास्ट करना चाहते हैं, तो मैं चौंक गई। मुझे नहीं पता था कि वो 'लाइफ इन अ मेट्रो' जैसी किसी फिल्म पर दोबारा काम कर रहे हैं। लेकिन जैसे ही उन्होंने स्क्रिप्ट का जिक्र किया तो दिल से बस एक ही बात निकली- हां। इससे पहले मैंने कभी किसी सीक्वल में काम नहीं किया था और वो भी अनुराग दा के साथ? तो ये मेरे लिए किसी तोहफे से कम नहीं था।
17 साल बाद अनुराग बसु के साथ दोबारा काम करने का अनुभव कैसा रहा?
अनुराग दा के साथ काम करना किसी पुरानी दोस्ती में फिर से लौट जाने जैसा था। ना वो बदले, ना मैं। हां, हमारे जीवन में जरूर बदलाव आए। अब मेरा बेटा 14 साल का हो गया है। लेकिन हमारी सोच, जुड़ाव और काम का तरीका, सब वैसा ही रहा। उनके साथ काम करना हमेशा बहुत सहज होता है।

पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकार के साथ पहली बार स्क्रीन साझा करना कैसा रहा?
पंकज त्रिपाठी के साथ ये मेरी पहली फिल्म थी, और कहना होगा- वो जितने अच्छे एक्टर हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी हैं। स्क्रिप्ट में जो ह्यूमर था, उसे वो अपने अंदाज से और भी जिंदा कर देते हैं। उनके साथ काम करते हुए कभी कोई बनावटीपन महसूस नहीं होता। ऐसा लगता है जैसे किसी पुराने दोस्त से बात हो रही हो। उनके अभिनय में जो गहराई और सच्चाई है, वो काबिले-तारीफ है।
आपने स्क्रीन पर हमेशा गंभीर और गहराई से भरे किरदार निभाए हैं। क्या कभी टाइपकास्ट महसूस किया?
कई बार लोगों ने कहा कि मैं सीरियस किरदार ही ज्यादा करती हूं और शायद करियर की शुरुआत में ही मैं टाइपकास्ट भी हो गई थी। लेकिन बेटे के जन्म के बाद जैसे किरदार मिले, वो ज्यादा अधूरे और असली थे। अब मैं ऐसी महिलाओं का राेल करना पसंद करती हूं जो गलतियां करती हैं और कमजोर हैं क्योंकि वो असली हैं।

डायरेक्शन की बात करूं तो, मुझे कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। शायद इसलिए क्योंकि मैं पहले से एक जानी-पहचानी एक्ट्रेस थी, लेकिन मेरी फिल्म का विषय थोड़ा असहज था। शायद इसी वजह से कुछ लोग उससे पूरी तरह जुड़ नहीं पाए। फिर भी, मैंने वही फिल्म बनाई जो मैं बनाना चाहती थी, बिना किसी समझौते के। हां, मैं मानती हूं कि इस इंडस्ट्री में और भी ज्यादा महिलाओं को आना चाहिए- डायरेक्शन, लेखन, कैमरा, एडिटिंग हर जगह। क्योंकि जब औरतें कहानियां कहती हैं तो उसमें एक नया नजरिया, गहराई और खास किस्म की ताजगी आती है।