Gustaakh Ishq Review: चाय, शायरी और पुरानी गलियों के बीच एहसास की कहानी; विजय-फातिमा और के दम पर टिकी फिल्म
Movie Gustaakh Ishq Review: 'गुस्ताख इश्क' की प्रेम कहानी आम बॉलीवुड फिल्मों से काफी अलग है। यह फिल्म मोहब्बत के अहसास को बड़ी खूबसूरती से बयां करती है। पढ़िए, फिल्म ‘गुस्ताख इश्क’ का रिव्यू।
विस्तार
'गुस्ताख इश्क', एक ऐसी फिल्म जो आज की तेज जिंदगी में थोड़ा ठहरकर मोहब्बत को महसूस करने का मौका देती है। इसे डायरेक्ट किया है विभु पुरी ने और प्रोड्यूसर हैं मशहूर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा। फिल्म की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह पुरानी दिल्ली और पंजाब के माहौल, वहां की गलियों, उर्दू शायरी और पुराने जमाने की तहजीब को बहुत सादगी से दिखाती है। यह कोई आम बॉलीवुड रोमांस नहीं, बल्कि धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाली इमोशनल कहानी है, जो जल्दबाजी में नहीं चलती।
कहानी
कहानी 90 के दशक के पुरानी दिल्ली और पंजाब में सेट है। नवाबुद्दीन सैफुद्दीन रहमान (विजय वर्मा) अपने पिता की बंद होती प्रिंटिंग प्रेस को बचाने की कोशिश कर रहा है। उसे उम्मीद है कि अगर मशहूर उर्दू शायर अजीज (नसीरुद्दीन शाह) की शायरी छप जाए तो प्रेस फिर से चल सकती है। लेकिन अजीज का मानना है कि शायरी शोहरत के लिए नहीं लिखी जाती। नवाबुद्दीन उन्हें मनाने के लिए शायरी सीखने का बहाना बनाकर उनके घर जाना शुरू करता है, और वहीं उसकी मुलाकात होती है मिन्नी (फातिमा सना शेख) से .... जो शांत और सादे स्वभाव की टीचर है। धीरे-धीरे दोनों के बीच एक रिश्ता बनता है, जिसमें कोई ड्रामा नहीं… बस एहसास हैं। कहानी का असली सवाल यही है कि क्या नवाबुद्दीन प्रेस बचाने के लिए अजीज की शायरी पब्लिश करेगा? या फिर अपने उस्ताद की भावनाओं की इज्जत रखेगा? इसी टकराव के बीच फिल्म आगे बढ़ती है।
एक्टिंग
विजय वर्मा इस बार काफी अलग दिखते हैं। जहां वे अक्सर तीखे या गुस्से वाले किरदार निभाते हैं, यहां वे एक शांत और प्यार में डूबा हुआ इंसान बने हैं। उनका यह बदलाव अच्छा लगता है। उनकी आंखों में जो भाव हैं और जिस तरह वे अपनी भावनाएं संभालते हैं, वह सब इतना सच्चा लगता है कि लगता ही नहीं कि वे एक्टिंग कर रहे हैं। फातिमा सना शेख सादगी में असर छोड़ती हैं। विजय के साथ उनकी केमिस्ट्री बेहद नैचुरल लगती है। नसीरुद्दीन शाह की मौजूदगी फिल्म में गहराई भर देती है। उन्हें देखकर लगता है कि शायरी सिर्फ लिखी नहीं जाती, जी भी जाती है। शारिब हाशमी जैसे सहायक कलाकार कहानी को और असली बनाते हैं।
निर्देशन और निर्माता
लेखक प्रशांत झा के साथ मिलकर विभु पुरी ने एक ऐसी कहानी लिखी है जो आधुनिक रोमांस से हटकर क्लासिक मोहब्बत का रास्ता चुनती है। कई सीन में उनका जुनून साफ नजर आता है। कैमरा और लोकेशन देखकर सच में लगता है, जैसे 90 के दशक में पहुंच गए हों। मनीष मल्होत्रा प्रोडक्शन में नए हैं लेकिन उनकी सोच साफ दिखती है। वे पुराने दौर का रोमांस वापस लाना चाहते हैं।
संगीत
संगीत को इस फिल्म की आत्मा कहा जा सकता है। विशाल भारद्वाज के म्यूजिक और गुलजार के बोल मिलकर एक अलग ही मूड बनाते हैं। सिर्फ तीन गाने हैं, लेकिन हर एक गाना प्यार के अलग रंग को दिखाता है।
देखें या नहीं:
अगर आप तेज रफ्तार वाली कहानी या ट्विस्ट्स पसंद करते हैं, तो यह फिल्म शायद आपको धीमी लगे क्याेंकि इसमें हाई ड्रामा नहीं है। कुछ जगहों पर फिल्म थोड़ी लंबी भी लगती है लेकिन अगर आपको पुराना माहौल, धीरे-धीरे पनपता प्यार और शायरी वाले लफ्ज पसंद हैं तो ‘गुस्ताख इश्क’ आपको जरूर छू सकती है। जेन जी स्टाइल में कहा जाए तो यह दिल की कहानी है, नेटफ्लिक्स की सीरीज नहीं…प्ले बटन दबाने पर नहीं, फील करने पर समझ आएगी।