Coolie Movie Review: रजनीकांत के 50 साल पूरे होने का जश्न है ‘कुली’, कहानी थाेड़ी पेचीदा पर फिल्म फुल एंटरटेनर

AI और वीएफएक्स भी क्या कमाल की चीज है। 74 साल के रजनीकांत को पल भर में 30 साल का बना देती है। ऐसे ही सीन पर सीटियां भी बजती हैं और रजनीकांत के फैंस खुशी से पागल भी हो जाते हैं। आप भी जब थिएटर में बैठे 50 साल पुराने रजनी का कूल अंदाज देखते हैं तो संतुष्ट हो जाते हैं। रही सही कसर आज कल का नया हथकंडा पूरी कर देता है, जिसमें सभी रीजनल लैंग्वेज के एक स्टार को उठाकर एक ही फिल्म में साथ ले आते हैं। लेकिन, फिर सवाल उठता है कि स्वैग, एक्शन और सुपरस्टार कैमियो के बीच में एक कहानी भी होती है वो कहां हैं ? तो जवाब मिलता है कि अब तक ‘कैथी’, ‘मास्टर’, ‘विक्रम’ और ‘लियो’ जैसी फिल्में बनाने वाले लोकेश कनगराज इस फिल्म में कहानी के मामले पर चूक गए। यह भी कह सकते हैं कि कहानी के मामले में ‘कुली’ उनकी सबसे कन्फ्यूजिंग और कमजोर फिल्म है।
बहरहाल, रजनीकांत के सिनेमा में 50 साल पूरे होने का त्योहार मनाया जा रहा है और इसी आंधी में यह फिल्म चलेगी भी। वैसे भी साउथ की फिल्मों में स्टोरी कम और एक्शन व स्वैग ज्यादा देखा जाता है, तो आप भी इस फिल्म को एक बार देख सकते हैं। ये आपको कहीं पर भी बोर नहीं करती। मैं भी नहीं करूंगा.. तो जानिए बिना किसी स्पॉयलर के कैसी है फिल्म ‘कुली’ ?

कहानी
फिल्म की कहानी ही काफी पेचीद है। इसे बताकर समझाया नहीं बल्कि देखकर ही समझा जा सकता है। मोटे तौर पर बस इतना समझ लीजिए कि कहानी एक कुली देवा (रजनीकांत) की है जो अपने दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की मौत की वजह ढूंढने निकलता है। इस सफर में सत्यराज की बेटी प्रीति (श्रुति हासन) और देवा एक दूसरे की मदद करते हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है साइमन जेवियर (नागार्जुन), दयाल (सौबिन शाहिर), कलीशा (उपेंद्र) और दाहा (आमिर खान) के किरदार भी इससे जुड़ते जाते हैं। फिल्म में एक साथ कई किरदार होने के चलते आप कुछ जगहों पर कन्फ्यूज भी होते है। कई सारे ट्विस्ट होने की वजह से स्क्रीनप्ले कमजोर लगता है। साथ ही अंत में इसकी कहानी को बेवजह बड़ा दिखाने का प्रयास किया गया है। लोकेश ने अंत में यह संभावना भी छोड़ी है कि वे जल्द ही आमिर और रजनीकांत को फिर साथ ला सकते हैं।

फिल्म रजनीकांत की है तो पूरे समय फाेकस भी उन पर ही रहता है। रजनी ने एक्शन के साथ ही कॉमेडी भी की है। उनका तो स्वैग ही अलग है। नागार्जुन की हिंदी उनके अभिनय पर भारी पड़ती है पर उनका काम ठीक है। सौबिन शाहिर ने बहुत कमाल अभिनय किया है। उन्हें देखकर डर लगता है। सत्यराज ने जितना भी किया ठीक ठाक काम किया है। श्रुति हासन पूरी फिल्म में भागती ही नजर आई हैं। लोकेश ने उन्हें एक्टिंग करने का मौका ही नहीं दिया। उपेंद्र का काम बहुत कम है और ज्यादातर सीन में उनके एक्सप्रेशन भी एक से ही है। आमिर थोड़े अलग अवतार में दिखे हैं। उनका कैमियो मजेदार है। रचिता राम आपको अपने अभिनय से चौंकाएंगी।

लोकेश की फिल्मों में एक्शन सीन गजब होते हैं। यहां भी ऐसा ही है। कुछ सीन और डायलॉग बड़े ही एंटरटेनिंग हैं। एक सीन में रजनीकांत कहते हैं, ‘मेरी पहुंच काफी ऊपर तक है.. शाहरुख और ऐश्वर्या को भी जानता हूं।’ वहीं रजनी के ट्रेंड सेटिंग डायलॉग जैसे- ‘हाथ लगा के देख’ और ‘कर दूंगा मुन्ना’ आपको एंटरटेन करते हैं पर कहानी को बेवजह खींचा गया है। पूरी फिल्म में कुछ भी नया नहीं है। रजनीकांत जो भी करते हैं, वह सब करते हुए हमने उन्हें पहले भी कई फिल्मों में देखा है। फिल्म में मौजूद कई बड़े कलाकारों का लोकेश और बेहतर इस्तेमाल कर सकते थे। खैर, उन्होंने फिल्म में रजनीकांत को भरपूर सेलिब्रेट किया है और वो जानते हैं कि फिल्म इसी से चल जाएगी।

अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड म्यूजिक आपको कभी निराश नहीं करता। खासतौर से फिल्म के एक्शन सीन में वो अपने BGM से जान डाल देते हैं। पूजा हेगड़े का आइटम नंबर ‘मोनिका..मोनिका’ फिल्म की गति को रोकने का काम करता है पर सौबिन ने इसमें डांस करके जान डाल दी।
देखें या नहीं
रजनीकांत के फैन हैं या साउथ की फिल्में पसंद करते हैं तो यकीनन देखेंगे ही। रजनी के सिनेमा में 50 साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए यह फिल्म बढ़िया है। कुछ ऐसे सीन मिलेंगे जिनपर यकीन करना आसान नहीं पर यही तो साउथ की फिल्मों की पहचान है। 15 अगस्त की छुट्टी पर देखने जा सकते हैं। निराश नहीं होंगे। फिल्म फुल ऑन एंटरटेनर है।