Ek Chatur Naar Review: दिव्या-नील की जोड़ी में सस्पेंस तो है, लेकिन फिल्म कहीं टिकती नहीं, हास्य-व्यंग्य कमजोर
Ek Chatur Naar Movie Review: निर्देशक उमेश शुक्ला की नई फिल्म 'एक चतुर नार' का नाम सुनते ही पुराने जमाने का गाना 'पड़ोसन' याद आता है। लेकिन फिल्म में उस गाने जैसी मजेदार एनर्जी या ताजगी बिल्कुल नहीं है।

विस्तार
फिल्म 'एक चतुर नार' के जरिए निर्देशक उमेश शुक्ला ने छोटे शहर की जिंदगी और आम लोगों की चालाकियों को दिखाने की कोशिश की है। फिल्म में सस्पेंस और ट्विस्ट जरूर हैं, लेकिन हास्य और व्यंग्य कई जगह कमजोर और फीके पड़ जाते हैं। हल्का मनोरंजन कुछ जगह पर है, लेकिन पूरे समय पकड़ बनाए रखने में असफल है।

क्या है कहानी
कहानी ममता (दिव्या खोसला) की है। वह अकेली मां है, जो अपने बेटे और सास के साथ रहती है। बाहर से साधारण दिखने वाली ममता का किरदार कई जगह कमजोर और दोहराव वाला लगता है। अभिषेक (नील नितिन मुकेश) सरकारी पैसे का गबन करता है। कहानी का मुख्य मोड़ तब आता है जब उसका फोन चोरी हो जाता है और ममता उसे पकड़ने निकलती है। यहां से उनकी कहानी में कई मोड़ आते हैं, लेकिन इन मोड़ों का असर कमजोर और अधूरा लगता है। कई बार लगता है कि कहानी कहीं रुक-रुक कर आगे बढ़ रही है। फिल्म में किसान की आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी दिखाया गया है, जिसे शायद टाल दिया जा सकता था। हालांकि, फिल्म का अंत सस्पेंसफुल है।

उमेश शुक्ला का निर्देशन: धीमा और ढीला
उमेश शुक्ला का निर्देशन कई जगह कमजोर दिखता है। कुछ सीन लंबे खिंचते हैं और कहानी की गति धीमी हो जाती है। व्यंग्य और मजाक भी कहीं-कहीं कमजोर पड़ते हैं, जिससे फिल्म का अंदाज पूरा असर नहीं देता।

लीड एक्टर्स: औसत प्रदर्शन
ममता और अभिषेक की जोड़ी ठीक है, लेकिन एक्टिंग में दोहराव और ओवर ड्रामा दिखता है। दिव्या खोसला कुछ जगह ठीक हैं, तो कुछ सीन में उनका किरदार फ्लैट लगता है। नील नितिन मुकेश का अभिनय भी औसत है। बाकी कलाकार जैसे छाया कदम, सुशांत सिंह और जाकिर हुसैन अच्छे हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले।

तकनीकी पक्ष: औसत
कैमरा छोटे शहर का माहौल दिखाता है, लेकिन कई जगह सिर्फ सजावट जैसा लगता है। एडिटिंग धीमी है और बैकग्राउंड म्यूजिक कई जगह ओवर किया गया है। तकनीकी पक्ष फिल्म को बचाने में ज्यादा मदद नहीं करता।

हास्य और व्यंग्य: कमजोर
हास्य कई जगह फीका और बोरिंग लगता है। व्यंग्य भी उतना असरदार नहीं है जितना उम्मीद थी। साइड किरदार अधूरे और कम प्रभावशाली हैं। छोटे शहर की असलियत दिखाने की कोशिश है, लेकिन वह भी पूरी तरह काम नहीं करती।

देखें या नहीं?
'एक चतुर नार' कहीं भी मजबूत फिल्म नहीं है। सस्पेंस और ट्विस्ट हैं, लेकिन कहानी धीमी है, मजाक और व्यंग्य कमजोर हैं। अगर आप हल्का-फुल्का टाइम पास चाहते हैं तो देख सकते हैं, लेकिन फिल्म से ज्यादा उम्मीदें न रखें।