Kesari Movie Review: अक्षय कुमार और माधवन की कानूनी जंग से दमकी ‘केसरी 2’, मिट्टी पर मिटने वालों की मोहक फिल्म

अक्षय कुमार की नई फिल्म आई है, देश प्रेम पर आधारित फिल्में देखने वालों के लिए बस ये एक लाइन काफी है। ये और बात है कि अक्षय कुमार की अपनी खुद की ब्रांडिंग हाल के कुछ साल में बड़े परदे पर काफी कमजोर रही है। फिर भी अक्षय की इस बात के लिए तो तारीफ की ही जानी चाहिए कि जिन विषयों की तरफ टॉप 5 में शामिल सितारे नजर तक नहीं घुमाते, उन विषयों पर वह लगातार कम कर रहे हैं। किरदार में खुद को झोंक देने की उनकी कोशिशें विक्की कौशल जैसी कमाल की तो नहीं हैं, पर फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ में आजादी से ठीक पहले के कालखंड की इस कहानी को अक्षय ने पूरी जीवट के साथ जिया है।

‘शंकरा’ से ‘केसरी चैप्टर 2’ तक
ये फिल्म बननी शुरू हुई थी ‘शंकरा’ के नाम से, फिल्म खत्म होने तक भी इसका नाम यही रहा। लोगों में खास दिलचस्पी न दिखने के चलते रिलीज भी इसकी कई बार आगे पीछे हुई। लेकिन, फिल्म का नाम ‘केसरी 2’ होते ही इसके भाग खुल गए हैं। फिल्म ‘केसरी’ का गाना ‘तेरी मिट्टी’ बजने से पहले ही फिल्म के निर्देशक करण सिंह त्यागी ‘केसरी 2’ देखने आए दर्शकों के खून का तापमान बढ़ा चुके होते हैं। अगर आपने अमेरिका पर जापानी हमले की कहानी कहती फिल्म ‘पर्ल हार्बर’ में बिना निशाना साधे एक खास क्षेत्र में चलाई गई गोलियों की बौछार देखी है, और उससे विचलित हुए हैं। तो, फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ के शुरुआती 20 मिनट आपकी नींद अगले कई दिनों तक उड़ा रखेंगे।

फिल्म ‘छावा’ दर्शकों के मनोविज्ञान के साथ जो क्लाइमेक्स के आखिरी 20 मिनटों में करती है, वह फिल्म ‘केसरी 2’ शुरू होती ही कर जाती है। जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के इन दृश्यों को देख जैसे शंकरन नायर का दिल अपनी मालिक सरकार से टूटता है और एक बच्चे के नजरिये से हालात को समझते ही वह भीतर से टूटकर जिस तरह बिखरता है, वह अदाकारी हिंदी सिनेमा में निकली देशभक्ति वाली फिल्मों की नई नहर से पानी पाती है। सी शंकरन नायर को अंग्रेजी सरकार ने गले से लगाकर रखा। काउंसिल का सदस्य बनाया। उपाधियां दीं लेकिन जहां इंसान और कुत्तों का दर्जा एक जैसा हो, वहां किसी सच्चे भारतीय का खून कब तक शांत रहता। वह सब कुछ खूंटी पर टांग फिर से इंसाफ का लबादा पहनता है और ऐन इसी मौके पर अंग्रेज फेंकते हैं अपना तुरुप का पत्ता।

दो दिग्गज वकीलों की इंटरवल के बाद से शुरू होकर क्लाइमेक्स तक आने वाली जंग का नतीजा सबको पता है लेकिन यहां मामला ‘जॉली एलएलबी’ वाला नहीं है। यहां मामला बहुत सीरियस है और इस पूरी बहसबाजी से जो बात साफ होती है वो ये कि हिंदी सिनेमा की डायलॉगबाजी में दम अब भी बहुत ज्यादा है। फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ के लिए सुमित सक्सेना ने चुन चुनकर संवाद गढ़े हैं और निर्देशक करण सिंह त्यागी की अमृतपाल सिंह बिंद्रा के साथ लिकी पटकथा में इनको टांका भी करीने से गया है। कहानी में अनन्या पांडे का भी एक किरदार है लेकिन वकालत की शुरुआती सीढ़ियां चढ़ने वाले इस किरदार पर कृष राव का छोटा सा वो किरदार भारी है जो सी शंकरन नायर की जिंदगी बदल देता है।

फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ को जो बात दूसरी फिल्मों से अलग और आला बनाती है, वह है इसका विषय। जलियांवालाबाग कांड के बारे में शायद ही ऐसा कोई पढ़ा लिखा भारतीय हो जो न जानता हो। फिल्म की शुरुआत जिस तरह से होती है, वह दर्शक को भीतर तक झकझोरती भी है, लेकिन इसमें चूंकि ‘छावा’ जैसा किसी खास धर्म के प्रति विरोध नहीं है लिहाजा भावनाएं उफनाने के बाद उबलने की कगार तक तो आती हैं, लेकिन जैसा गुस्सा फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरल स्टोरी’ या ‘छावा’ देखकर वर्ग विशेष के विरुद्ध स्वाभाविक रूप से पनपता है, वैसा कुछ इस फिल्म को पूरा देखने के बाद दर्शक के साथ उसके घर तक नहीं जाता। फिल्म का नाम अच्छा ही हुआ कि ‘शंकरा’ नहीं रहने दिया गया, नहीं तो तब तो इस फिल्म को देखने शायद ही कोई सिनेमाहॉल तक आता। फिल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ को इसके निर्देशन और अक्षय कुमार व माधवन के अभिनय के लिए देखा जाना चाहिए।