Khakee The Bengal Chapter Review: आदिल और रित्विक ने जमाई जय-वीरू सी जोड़ी, प्रोसेनजीत बने कोलकाता के नए गब्बर

किसी भी फिल्म या वेब सीरीज को देखने के बाद उसकी पूरी कहानी दर्शक को भले याद न रहे, लेकिन इसके कुछ दृश्य ऐसे होते हैं तो देखने वाले के जेहन में छप से जाते हैं। ऐसा ही एक सीन वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ का है। कहानी पश्चिम बंगाल की राजनीति की है। कहानी के एक दृश्य में मुख्यमंत्री सबके सामने पार्टी के एक कद्दावर नेता पर चिल्लाता है। नेता अपने मुख्यमंत्री से दो मिनट अकेले में बात करने का निवेदन करता है। मुख्यमंत्री अपने कमरे में आते हैं। नेता अंदर से सिटकनी लगाता है। और, मुख्यमंत्री की तरफ पलटते ही उन्हें एक झन्नाटेदार झापड़ रसीद करता है। कमाल का सीन है। ये सारे कमजोर कान वालों के लिए सबक है कि ऐसा उनके साथ भी बंद कमरे में कभी भी सकता है। मुख्यमंत्री बने हैं शुभाशीष मुखर्जी और झापड़ मारने वाले दबंग नेता का किरदार किया है प्रोसेनजीत चटर्जी ने। दोनों कमाल के अभिनेता भी हैं।

कमजोर मुख्यमंत्री, दबंग महिला नेता
नीरज पांडे रचित वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ उनकी पिछली वेब सीरीज ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ की दूसरी कड़ी है। कहानियां ये खाकी वर्दी पहनने वालों की हैं। कुछ कुछ असल घटनाओं से मिलती जुलती लेकिन चोला इनका काल्पनिक ही रखा गया है। यहां कहानी उस दौर की है जब विपक्ष की एक महिला नेता ने सत्ताधारी दल की नाक में दम कर दिया है। हंसिया हथौड़ा तो यहां सियासी दलों में चुनाव निशान के तौर पर नहीं दिखता है और न ही नजर आती है हंसिया, हथौड़ा और बाली। हां, मुट्ठी बांधते दो हाथ हैं। हथौड़ा है और हैं कुछ ऐसे किरदार जो आपका ध्यान कभी बुद्धदेव भट्टाचार्य की तरफ ले जाते हैं तो कभी ममता बनर्जी की तरफ। सूबे में लोग गायब हो रहे हैं। उनकी लाशें तक नहीं मिल पा रही हैं। मामला जब भी खुलने को होता है, पुलिस अफसर निपटा दिया जाता है। ऐसे ही एक आईपीएस अफसर से ये सीरीज शुरू होती है। वह लोगों से सूचनाएं मांगता है। देर रात मोटरसाइकिल लेकर अपने खबरी से मिलने निकल पड़ता है और निपटा दिया जाता है। एपिसोड दर एपिसोड कहानी का कोई न कोई बड़ा किरदार अप्रत्याशित रूप से मरता है और अगले एपिसोड को देखने का रोमांच पैदा करता जाता है। सीरीज दर्शकों को चौंकाने का सारा इंतजाम साथ लेकर चलती है। सीरीज के हीरो की एंट्री देर से होती है, उसके लिए मजबूत मंच सजने के बाद।

पुलिस की कार्यशैली पर तमाम फिल्में और वेब सीरीज देश-विदेश में बनती रही हैं। राज कुमार संतोषी की फिल्म ‘खाकी’ अगर आपको याद हो तो उसमें सियासत और समाज से जूझती पुलिस को अपने भीतर छुपे गद्दारों से भी जूझते रहना होता है। वेब सीरीज ‘खाकी’ का डीएनए भी यही है। जो सीने के सबसे करीब है, वही सबसे बड़ा धोखा जीवन में देता है, ये बात जीवन में बार बार दोहराई जाती है। अदालती चक्करों से बचने के लिए पुलिस का सबसे सीधा हथकंडा है एनकाउंटर लेकिन मामला अगर खादी के नीचे से आता हो तो खाकी के लिए भी सब कुछ इतना स्याह और सफेद नहीं रहता। यहां भी पुलिस कमिश्नर अपनी ही एसटीएफ के पकड़े अपराधी को छुड़ाने खुद पहुंच जाता है। और, ऐसा इसलिए कि एसटीएफ का अफसर इतना दबंग है कि कमिश्नर के फोन की भी अनसुनी कर देता है। ईमानदारी और बेईमानी के बीच घिसती वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ में कुछ भी स्याह-सफेद नहीं है। साम, दाम, दंड, भेद सब यहां विजय के साधन हैं और जो जीत गया वही सिकंदर है।

बिंज वॉच के लिए परफेक्ट वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ का असली हीरो तो इसकी देबात्मा मंडल और सम्राट चक्रवर्ती की लिखी कहानी ही है, पुलिस कार्यप्रणाली को करीब से जानने का नीरज पांडे का अपना अनुभव भी सीरीज बनाने के खूब काम आया है। शुरू के एपिसोड्स में प्रति एपिसोड एक बड़े कलाकार का कत्ल दिखाकर नीरज ने अपने परंपरागत प्रशंसकों को चौंकाया है। इस सीरीज की कोई खास हाइप नेटफ्लिक्स की मार्केटिंग टीम ने बनाई नहीं हैं। इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर की ब्राडिंग पर करोड़ों खर्च करने के बावजूद फिल्म ‘नादानियां’ का हुआ, उससे करण जौहर भी दुखी हैं। लेकिन, इस सीरीज के दो सितारों रित्विक भौमिक और आदिल जफर खान ने बिना किसी प्रचार के अपनी ब्रांडिंग अपनी मेहनत से इस सीरीज में बनाई है। आदिल जफर खान इस सीरीज की ऐसी खोज हैं, जिन पर आने वाले दिनों में कई बड़े दांव लगने हैं। जय-वीरू सी दिखती इस कहानी में भाभी को बहन मानने वाला जब उसके ही खून से अपने हाथ रंग लेता है, तो कहानी का दोस्ताना, याराना सब ‘भोले ओ भोले’हो जाता है।

वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ के मुख्य नायक के किरदार में वैसे तो बंगाली अभिनेता जीत मदनानी ही हैं और जींस पहने, कोहनी तक आस्तीनें चढाए जीत ने काम भी शानदार किया है। इस सीरीज की कास्टिंग के लिए विकी सदाना खासतौर से तारीफ के हकदार हैं। छोटे से छोटे किरदार के लिए उन्होंने बढ़िया से बढ़िया कलाकार चुना है। गोल्फ खेलते उद्योगपति के रूप में राजेश तिवारी का चयन इसकी बस एक बानगी भर है। एपिसोड भर को दिखे परमब्रत, दो एपिसोड भर को दिखे शाश्वत और एपिसोड दर एपिसोड कुछ कुछ देर के लिए दिखती रहीं चित्रांगदा इस सीरीज का धरातल तैयार करने का बढ़िया काम करती हैं। जीत के सहायक के रूप में महाक्षय और आकांक्षा ने सीरीज का सस्पेंस बखूबी संभाला है। कहानी के आखिर तक संदेह की सुई इन्हीं दोनों पर टिकी रहती है और जब मामला खुलता है तो वह भी थोड़ा बहुत तो चौंकाता ही है। सीरीज की असल आमद रित्विक और आदिल के अलावा प्रोसेनजीत भी रहे हैं। उन्होंने खुद को एक दमदार खलनायक के रूप में पेश किया है और आने वाले समय में ऐसे कुछ और किरदार उन्हें हिंदी सिनेमा में मिल सकते हैं। श्रुति दास, जॉय सेनगुप्ता और पूजा चोपड़ा भी जब भी परदे पर दिखते हैं, अपना असर महसूस कराते ही हैं।

वेब सीरीज ‘खाकी द बंगाल चैप्टर’ की अधिकतर शूटिंग कोलकाता में हुई है और लेखक मंडली शहर की आबोहवा को कहानी की पृष्ठभूमि बनाने में सफल रही है। आदिल जफर खान के संवाद सीरीज में बंगाल के सीमावर्ती इलाकों की महक घोलते हैं। पूरी सीरीज को हकीकत के करीब रखते हुए फिल्माने में इसके सिनेमैटोग्राफरों तुषार कांति रे, अरविंद सिंह, ताराश्री साहू और सौविक बासु ने भी अच्छा काम किया है। अब्बास अली मुगल अपनी पूरी टीम के साथ हर एक्शन सीन में सौ में सौ नंबर पाते हैं। सीरीज का संपादन भी चुस्त है। प्रवीण काठीकुलोठ को इसमें देबाशीष मिश्रा की साउंड डिजाइनिंग से भी मदद मिलती है। सीरीज का शीर्षक गीत इसकी सबसे कमजोर कड़ी है, दूसरी कमजोरी इसका पार्श्व संगीत है। क्या ही अच्छा होता अगर इस पूरी सीरीज में रबींद्र संगीत, बाउल संगीत आदि का भी भरपूर इस्तेमाल होता और कोठों पर कुछ सुर पूरब के संगीत के भी बिखरते।