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L2 Empuraan Review: मोहनलाल को रजनीकांत बनाने के फेर में फंसे पृथ्वीराज, बेबीलोन का राजा नहीं बन पाया लुसिफर

Pankaj Shukla पंकज शुक्ल
Updated Thu, 27 Mar 2025 08:55 PM IST
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L2 Empuraan Review in Hindi by Pankaj Shukla Lucifer 2 Mohanlal Prithviraj Sukumaran Abhimanyu Tovino Manju
एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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Movie Review
एल 2 एम्पुरान
कलाकार
मोहनलाल , पृथ्वीराज सुकुमारन , अभिमन्यु सिंह , टोविनो थॉमस और मंजू वारियर
लेखक
मुरली गोपी
निर्देशक
पृथ्वीराज सुकुमारन
निर्माता
एंटनी पेरुम्बवूर , गोकुलम गोपालन और सुभाषकरण अलीराजा
रिलीज
27 मार्च 2025
रेटिंग
2/5

साल 2019 को मलयालम सिनेमा का इस मायने में एक संक्रमण साल माना जा सकता है कि इसने इस भाषा के दर्शकों को पहली बार एक ऐसी मसाला फिल्म से रू ब रू कराया जो किसी भी मायने में किसी ब्लॉकबस्टर हिंदी फिल्म से कम नहीं थी। ये कहानी थी लुसिफर की। बाइबल जानने वालों को पता है कि इसका मतलब क्या होता है। कहने को तो ये बेबीलोन का राजा था लेकिन असल में ये प्रयोग होता है दानव के संदर्भ में। ये वो भ्रष्ट देवदूत है जिसने ईश्वर से बगावत करने का दुस्साहस किया। फिल्म ‘लुसिफर’ में आप देख चुके हैं कि स्टीफन नेदुमपल्ली की असलियत क्या है? वह एक साधारण विधायक भर नहीं है। राज्य के मुख्यमंत्री पी के रामदास के परिवार पर जब विपदा आती है, तो वह अपने असली रूप में आता है। आदतें इसकी भी कुछ कुछ सलमान खान जैसी ही हैं कि एक बार कमिटमेंट कर दी तो फिर ये अपने आप की भी नहीं सुनता। लेकिन, बीते छह साल में मलयालम सिनेमा ने अपनी कहानियों को नई धार दी है, अभिनय को नई बयार दी है और इसी के चलते लगातार खिलता ही रहा है मलयालम सिनेमा।

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एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

‘सिकंदर’ के पहले सलमान जैसी ही फिल्म
फिल्म ‘लुसिफर’ की सीक्वल ‘एल 2 एम्पुरान’ की असल दिक्कत यहीं से शुरू होती है कि ये फिल्म मलयालम सिनेमा के खांचे से निकलकर सलमान खान का सिनेमा बनना चाहती है। पृथ्वीराज सुकुमारन जब ताल ठोक कर कहते हैं कि हां, मैं नेपोटिज्म की वजह से ही सिनेमा में आया हूं, तो वह उन लाखों, करोड़ों लोगों की भावनाओं का अपमान कर रहे होते हैं, जिन्होंने उन्हें ‘ड्राइविंग लाइसेंस’, ‘ब्रो डैडी’, ‘जन गण मन’ और ‘द गोट लाइफ’ जैसी फिल्मों में सिर आंखों पर बिठाया। हिंदी सिनेमा में वह आखिरी बार फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ में दिखे, विलेन के तौर पर। विलेन के किरदार वह परदे पर पहले भी कर चुके हैं, लेकिन इस बार वह अपनी खुद की बनाई फिल्म के ‘विलेन’ बनते नजर आ रहे हैं। फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ की कहानी की मैं यहां बात नहीं कर रहा, मैं संदर्भ बता रहा हूं उनके ओवर कॉन्फिडेंस में मुरली गोपी जैसे कलाकार की एक बेहतरीन कहानी का तिया पांचा करने का। कहानी पर कलाकारी जब जब भारी होने की कोशिश करती है, खामियाजा पूरी फिल्म को भुगतना ही होता है। ‘एल 2 एम्पुरान’ कमाल के विजुअल इफेक्ट्स वाली फिल्म है। चर्च वाला इसका सीन बार बार देखने को मन करता है लेकिन पूरी फिल्म?

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एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
ये पिक्चर है पूरी तीन घंटे की
पूरी फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ तीन घंटे की है, इसे शुरू से आखिर तक देखना अपने आप में कम चुनौती नहीं है। फिल्म की शुरुआत किसी आम मुंबइया फिल्म जैसी होती है। पृथ्वीराज सुकुमारन हालांकि इसका खुलासा ‘अमर उजाला’ को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पहले ही कर चुके हैं लेकिन फिल्म के हीरो मोहनलाल को जिस तरीके से वह फिल्म में पेश करते हैं, वह उनकी नादानी दर्शाता है। स्टीफन नेदुमपल्ली ही कुरैशी अबराम है, ये बात दर्शकों को पहले से पता है। दर्शक ये सीक्वल देखने इसलिए आए हैं कि आखिर ये दोनों किरदार अगर एक ही हैं तो फिर इस किरदार की दुनिया भर में फैली दहशत की जड़ें कहां तक फैली हैं और कौन है जिसके चलते एक आम इंसान को ईश्वर के सामने बगावत कर लुसिफर बनना पड़ा। लुसिफर का मतलब याद है ना, जो मैंने अभी शुरू में बताया। फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ की दिक्कत इसकी पटकथा में हैं। कहानी चूंकि तीन भागों में बुनी गई है तो इसके दूसरे भाग को ‘केजीएफ 2’ की तरह ही तीसरी कड़ी के लिए रंगमंच तैयार करना है, लेकिन विश्व रंगमंच दिवस पर रिलीज हुई फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ यहीं मात खा जाती है।

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एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
मोहनलाल को रजनीकांत बनाने की कोशिश
पृथ्वीराज सुकुमारन खुद मानते हैं कि मोहनलाल मलयालम सिनेमा के सबसे बड़े सितारे नहीं बल्कि मलयालम सिनेमा के तमाम मजबूत स्तंभों में से एक हैं, लेकिन फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ देखकर लगता है कि वह उनके आभामंडल से पूरी तरह चौंधियाए हुए निर्देशक हैं। पहली फिल्म में फिर भी वह खुद को काबू में रखने में सफल रहे थे लेकिन मोहनलाल की ही कंपनी आशीर्वाद सिनेमा के बैनर तले बनी इस सीक्वल फिल्म में पृथ्वीराज पूरी तरह फैनबॉय डायरेक्टर जैसे दिखते हैं। उनका पूरा जोर फिल्म में मोहनलाल को रजनीकांत बनाने पर रहा है। उनके जैसे ही स्लो मोशन वाले शॉट्स, वैसे ही चेहरे को घुमाने का अंदाज, वैसे ही हवा में उड़ते कपड़े और वैसे ही छोटे छोटे संवाद! और, ये सब कुछ केवल फिल्म में मोहनलाल के परदे पर आने पर पहली बार होता हो, ऐसा भी नहीं। कम से कम आधा दर्जन बार मोहनलाल की ये एक जैसी एंट्री फिल्म में होती दिखती है।

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एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
मुरली गोपी की कहानी पर अत्याचार
फिल्म की कहानी इतनी सी ही है केरल का मुख्यमंत्री बन चुके पीकेआर के बेटे ने अपनी पुश्तैनी पार्टी छोड़कर सूबे में नए रंग भरने आए दल के साथ मिलकर एक नई पार्टी बनाने का फैसला किया है। बेटी इससे आहत है, विचलित है और परेशान है। सूबे की मुसीबतों का हल या तो भगवान के पास है या फिर अबराम कुरैशी के पास। अबराम कुरैशी जिस रफ्तार से दुनिया घूमता दिखता है, उससे लगता यही है कि उसका एक पैर अपने प्राइवेट जेट में और दूसरा पैर केरल में रहता है। कहानी यहीं खटकने लगती है। कहानी के जो किरदार हम पिछली फिल्म में देख चुके हैं, वे कुछ नया करते दिखते नहीं है। अभिमन्यु सिंह जैसे जो कलाकार नए किरदारों में इस बार आए हैं, उनका काम बस इस यूनिवर्स की तीसरी कड़ी के लिए माहौल बनाने तक सीमित रहा। मंजू वॉरियर और टोविनो थॉमस जैसे मंजे हुए कलाकारों का भी सही प्रयोग नहीं हुआ है। अभिमन्यु सिंह का अपना एक तय खांचा है अभिनय का, उसे ही वह यहां भी दोहराते दिखे। टोविनो के किरदार के साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादती हो गई दिखती है।

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एल 2 एम्पुरान - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
टीम लीडर के तौर पर विफल दिखे पृथ्वीराज
तकनीकी रूप से देखें तो फिल्म में संगीत के नाम पर बस एक गाना है और बैकग्राउंड का शोर है। साउंड डिजाइन में ये फिल्म कतई प्रभावित नहीं करती है। दीपक देव का संगीत भी इसमें कोई मदद करता नहीं दिखता। अखिलेश मोहन का संपादन बेतरतीब है। दो घंटे की फिल्म के जमाने में तीन घंटे की फिल्म एडिट करना और वह भी इतने लंबे लंबे एक्शन सीन के साथ, बहुत जोखिम भरा हो सकता है। सुजीत वासुदेव ने जरूर कैमरे के साथ कुछ करिश्माई पल बिताए हैं और फिल्म में कहानी को अलग अलग वातावरणों से सींचने के लिए उनकी मेहनत भी साफ नजर आती है। पृथ्वीराज सुकुमारन बतौर टीम लीडर यहां कमजोर पड़ते इसलिए भी दिखते हैं कि उनका अपनी तकनीकी टीम में आपसी सामंजस्य नहीं दिखता है। पूरी फिल्म कोई एक सुर लेकर भी चलती नहीं दिखती। फिल्म ‘एल 2 एम्पुरान’ मलयालम दर्शकों के लिए जरूर एक धांसू फिल्म हो सकती है लेकिन जो हिंदी फिल्म दर्शक विदेशी सिनेमा भी देखते रहते हैं, उनके लिए ये एक्शन फिल्म नयनाभिराम तो है लेकिन इसमें इसकी आत्मा मिसिंग लगेगी।
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