Logout Movie Review: बाबिल खान की 90 मिनट की धांसू एक्टिंग शो रील, इरफान के आभामंडल से बाहर निकलना ही उनकी जीत


सोशल मीडिया से पैसे कमाना अब एक नया करियर बन चुका है। रंग लगे न फिटकरी रंग भी आवे चोखा, जैसी कहावतें सच हो रही हैं। एक मोबाइल, घर में वीडियो एडिट का एक छोटा सा सिस्टम और बन गए आप सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर। अपनी रीच और अपने फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए कोई पैंट उतारकर नाच रहा है तो कोई दूसरों की पोस्ट पर फेक अकाउंट के जरिये कमेंट्स करके अपने दिल की भड़ास निकाल रहा है। नैतिकता और अनैतिकता को भूल चुकी एक पूरी आबादी की फिल्म है ‘लॉगआउट’। बस दिक्कत इस फिल्म के साथ ये है कि इसमें जिस आबादी पर मोबाइल फोन के असर की बात की जा रही है, वही फिल्म में नहीं है।

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जिस एक वजह से ये फिल्म आप शुरू से आखिर तक देख सकते हैं, वह है इसमें बाबिल खान की एक्टिंग। उनका अभिनय इस फिल्म का प्लस प्वाइंट है। पूरी फिल्म में अधिकतर चूंकि वह ही परदे पर दिखते हैं, लिहाजा चुनौती उनके सामने ये है कि वह नाट्यशास्त्र के नौ के नौ रस निभाकर दर्शकों को सिर्फ अपनी मौजूदगी से बांधे रखें। 90 मिनट के करीब की ये फिल्म है। और, सस्पेंस थ्रिलर के चोले में ठीक ठाक फिट बैठती है। निर्माता जोड़ी सौरभ खन्ना और समीर सक्सेना का मामला ‘मामला लीगल है’ से जम चुका है। यशराज फिल्म्स के साथ उनकी ‘डील’ हो चुकी है और ‘लॉगआउट’ जैसी फिल्म बनाकर वह ओटीटी पर रिलीज कर चुके हैं, ये ही इस पूरी कथा का सबसे सही उपसंहार है। फिल्म में पूजा गुप्ते की सिनेमैटोग्राफी नोटिस करने लायक है। हारून गेविन ने फिल्म का टैम्पो बनाए रखने के लिए म्यूजिक ठीक ठाक रचा है, वहां प्रयोग की हालांकि गुंजाइश रही। अमित गोलानी से ‘काला पानी’ के बाद ऐसा ही कुछ रचने की उम्मीद की भी जा रही थी। लेकिन, पोशम पा पिक्चर्स के लिए ये मामला कुछ ज्यादा ही डार्क होता जा रहा है, इसमें बहुत आगे तक की रोशनी दिख नहीं रही, फिलहाल।