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Secrets of Kohinoor Review: कोहिनूर के जाने पहचाने किस्से, मनोज बाजपेयी का तिलिस्म और कोशिश कौतूहल जमाने की

Virendra Mishra वीरेंद्र मिश्र
Updated Thu, 04 Aug 2022 07:51 AM IST
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Secrets of Kohinoor Review Manoj bajpayee web series on discovery plus
सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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Movie Review
सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर
कलाकार
मनोज बाजपेयी
लेखक
वैभव मुथा
निर्देशक
राघव जयरथ
निर्माता
नीरज पांडे और शीतल भाटिया
रेटिंग
2.5/5

कोहिनूर विश्व का सबसे कीमती हीरा है। बताया जाता है कि यह भारत की गोलकुंडा की खान से निकला और कई मुगल और फारसी शासकों से होता हुआ ब्रिटिश खजाने में शामिल हो गया। इतिहास को अगर समझें तो इस हीरे ने कई बार अपने स्वभाव से देशवासियों को अचंभित किया है। जब जब यह बेशकीमती हीरा भारत से अलग हुआ है, तब तब इसने वापस अपनी जन्मभूमि पर दस्तक दी है, भले ही देर सवेर। यह जानना महत्वपूर्ण है कि हम सबके लिए कोहिनूर के क्या मायने हैं? सदियों की विरासत, गौरवशाली इतिहास, भारत की पहचान, एक बेशकीमती हीरा, अभिशापित हीरा, या सिर्फ एक चमकता पत्थर। इस पर अलग अलग कालखंड की सोच क्या मायने रखती है? डिस्कवरी प्लस की डॉक्यूमेंट्री सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’ इसी की आभा का प्रतिबिंब है।

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मनोज बाजपेयी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

कोहिनूर के चौंकाने वाले राज

डॉक्यूमेंट्री सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’ दुनिया के सबसे खूबसूरत और सबसे बड़े तराशे गए हीरों में से एक कोहिनूर के बारे में है। डाक्यूमेंट्री  में कोहिनूर की उत्पत्ति और इसके स्वामित्व से जुड़ी सबसे विवादास्पद बहसों में से एक को प्रदर्शित करने की कोशिश की गई है। डॉ. शशि थरूर, इतिहासकार इरफान हबीब, डॉ. एड्रिएन म्यूनिख, प्रो. फरहत नसरीन, के. के. मुहम्मद, डॉ. मानवेंद्र कुमार पुंधीर, नवतेज सरना, जे साई दीपक, डॉ. डेनियल किन्से, डॉ. माइल्स टेलर और पॉलीन विलेम्से के नजरिये से कोहिनूर को परखती इस डॉक्यूमेंट्री में में हीरे के इतिहास के कुछ खास पहलुओं को उजागर किया गया है। कहा जाता है कि इसकी खोज के बाद से इतने वर्षों के दौरान इस हीरे का वजन इसके मूल वजन से छह गुना से भी कम हो गया है। और, वह कोहिनूर, जिसे हम अपना मानते हैं, वह शायद अब वैसा हीरा ना हो, जिसका उल्लेख बाबर ने अपने संस्मरण में किया था।

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मनोज बाजपेयी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

क्या वापस आएगा कोहिनूर

सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’  कई शासकों की कहानियों और कोहिनूर के लिए उनकी अधूरी ख्वाहिशों को भी उजागर करती है जिनके कारण महत्वपूर्ण और बेहद खूनी संघर्ष हुए। दर्दनाक दिमागी खेल खेले गए जिसने शासकों को ताकतवर बनाया और राजवंशों को तबाह कर दिया। साथ ही, यह उन शक्तिशाली सम्राटों की कहानियों की पड़ताल करती है जिनकी जिंदगियां इस हीरे के साथ गहराई से जुड़ी हुई थीं। सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’  में एक अहम सवाल यह भी सामने आता है कि क्या कोहिनूर वापस अपने वतन लौटेगा?

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मनोज बाजपेयी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

सूत्रधार मनोज बाजपेयी का तिलिस्म

इस डाक्यूमेंट्री को लेकर मनोज बाजपेयी पहले ही कह चुके है कि डाक्यूमेंट्री  में अभिनय करने जैसा कुछ नही होता है। सूत्रधार की भूमिका में उन्होंने अपना सौ प्रतिशत देने की पूरी कोशिश की है। सीरीज के प्रस्तुतीकरण में ग्राफिक्स का बेहतर इस्तेमाल किया गया है और ये कहानी को आगे ले जाने में मदद करने के लिए ही है लेकिन किस्से, कहानी और इतिहास में फर्क बनाए रखने के लिए इसकी पटकथा में थोड़े और दिलचस्प वाकये जोड़े जा सकते थे। हालांकि, सीरीज का शोध काफी गहरा नजर आता है लेकिन सच यह भी है कि इसमें कोई ऐसा राज खोलने की कोशिश नहीं की गई है जो दर्शकों को पहले से पता न हो या जिसके बारे में पहले से जानकारी मौजूद न हो।

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मनोज बाजपेयी - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई

इतिहास के पन्नों में खोया मनोरंजन

सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’ के दो एपीसोड के हिसाब से दर्शकों का विषय के साथ संबंध जोड़े रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। डिस्कवरी प्लस ने नीरज पांडे के साथ मिलकर भारतीय इतिहास के कुछ रोचक पन्नों को फिर से पलटने का जो बीड़ा उठाया है, उनकी कुछ और कहानियां अभी आगे भी देखने को मिलती रहेंगी। मनोज बाजपेयी कहते भी हैं, 'कोहिनूर की अब तक की कहानी खत्म हुई है, लेकिन सफर नही।' इस तरह की डॉक्यूमेंट्री की सबसे बड़ी चुनौती होती है दर्शकों का ध्यान लगातार अपनी तरफ बनाए रखना। इस मायने में सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’ अपनी स्क्रिप्ट और संगीत की वजह से कमजोर पड़ जाती है।

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मनोज बाजपेयी - फोटो : सोशल मीडिया

देखें कि न देखें 

कोहिनूर का रहस्य एक ऐसा तिलिस्म है। जिसके बारे में जानने की जिज्ञासा हर किसी को होती है। कोहिनूर से जुड़े अगर कुछ अनजाने रहस्य जानने को मिले तो सीरीज को देखने में जिज्ञासा होती है। सीरीज ‘सीक्रेट्स ऑफ कोहिनूर’  का प्रस्तुतीकरण देखकर कई बार यूं भी लगता है कि जैसे कहीं कोई आईएएस इम्तिहान की कोचिंग सी चल रही है। इतिहास में दिलचस्पी हो और कोहिनूर को करीब से समझना हो तो ये सीरीज एक बार देखी जा सकती है। खालिस मनोरंजन के लिए डॉक्यूमेंट्री सीरीज देखने का शौक रखने वालों को शायद ये सीरीज उतनी पसंद न आए।

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