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Son Of Sardaar 2 Movie Review: घर छोड़ दिया दिमाग, तो हंसाएगी ‘सन ऑफ सरदार 2’; फिल्म में सब पर भारी एक बिहारी

Akash Khare आकाश खरे
Updated Fri, 01 Aug 2025 10:01 AM IST
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सार

Son of Sardaar 2 Movie Review and Rating in Hindi: अजय देवगन की फिल्म ‘सन ऑफ सरदार’ 2012 में रिलीज हुई थी। अब 13 साल बाद अजय इसका सीक्वल लेकर आए हैं, जिसका पिछली फिल्म से कोई लेना-देना नहीं है। बिना स्पॉइलर यहां जानिए कैसी है फिल्म…

Son of Sardaar 2 Review and Rating in Hindi Ajay Devgn Mrunal Thakur Ravi Kishan Sanjay Mishra Comedy Film
सन ऑफ सरदार 2 रिव्यू - फोटो : अमर उजाला
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Movie Review
सन ऑफ सरदार 2
कलाकार
अजय देवगन , मृणाल ठाकुर , रवि किशन , दीपक डोबरियाल और संजय मिश्रा आदि
लेखक
जगदीप और मोहित
निर्देशक
विजय कुमार अरोड़ा
निर्माता
अजय देवगन , ज्योति देशपांडे , प्रवीण तलरेजा और एनआर पचीसिया
रिलीज
1 अगस्त 2025
रेटिंग
2/5

विस्तार
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इस साल ‘हाउसफुल 5’ जैसी कॉमेडी फिल्म देखने के बाद बड़ी हिम्मत करके ‘सन ऑफ सरदार 2’ देखने गया था। इसे देखने से पहले ही मैंने यह तय कर लिया था कि इसे रिव्यूअर के तौर पर दिमाग लगाकर नहीं देखूंगा बल्कि एक दर्शकों की तरह देखूंगा, जो सिर्फ फिल्म एंजॉय करने जाता है। 
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शुरू के 15 मिनट जब तक फिल्म डेवलप होती है तब तक कोई कॉमेडी सीन आया ही नहीं। फिर टुकड़ों-टुकड़ों में कुछ कॉमेडी सीन आए, कुछ अच्छे लगे तो कुछ फूहड़.. पर मैं भी कब तक खुद को समझाता? जब तक दर्शक की तरह देखता रहा सब इग्नोर करता रहा पर जैसे ही रिव्यूअर की तरह सोचना शुरू किया तो जानिए क्या-क्या मिला… 
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बिना स्क्रीनप्ले वाली फिल्म, फंसे हुए दीपक डोबरियाल और संजय मिश्रा का टैलेंट बर्बाद करते निर्देशक।
हां, अगर किसी ने इस फिल्म को देखने लायक बनाया तो वो थे- रवि किशन। यह कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म में वो संजय दत्त की कमी महसूस नहीं होने देते और अजय देवगन से ज्यादा उन्हें देखने और सुनने की इच्छा होती है। चलिए आपको बताते कैसी है फिल्म…

कहानी
कहानी पंजाब के रहने वाले जस्सी (अजय देवगन) की है जिसकी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) शादी के बाद लंदन जाकर नौकरी करने लगती है। जस्सी यहां अपनी मां के साथ रहता है और वीजा लगने का इंतजार कर रहा है। जस्सी का वीजा लगता है और वो लंदन पहुंचता है, जहां मिलते ही उसकी पत्नी उससे तलाक और प्रॉपर्टी में हिस्सा मांग लेती है। दूसरी तरफ राबिया (मृणाल ठाकुर) और उनके साथी दानिश (चंकी पांडे), गुल (दीपक डोबरियाल), महवश (कुब्रा सैत) और सबा (रोशनी वालिया) भी लंदन में रह रहे हैं। अब जस्सी की इन सबसे मुलाकात कैसे होती है और सब मिलकर राजा (रवि किशन) के परिवार से कैसे जुड़ते हैं? यह सब आप फिल्म देखकर जानिएगा। 



एक्टिंग 
अजय देवगन पूरी फिल्म में हमेशा की तरह ही लगे हैं। उनके काम में कुछ नया नहीं है। मृणाल की जब एंट्री होती है तो वो पंजाबी के साथ-साथ धड़ाधड़ गालियां दे रही होती हैं। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को कंट्रोल किया और ठीक-ठाक एक्टिंग की है।
रवि किशन को लेकर सबका कहना था कि बिहारी एक्टर कैसे पंजाबी का रोल करेगा। अरे भाई, फिल्म की जान है ये आदमी। खुशी है कि देर सवेर.. उनके टैलेंट का बॉलीवुड में बेहतर इस्तेमाल किया जा रहा है। टोनी-टीटू (मुकुल देव और विंदू दारा सिंह) को देखकर मजा आता है। खास तौर पर दिवंगत मुकुल देव को देखकर अच्छा लगता है। उन्होंने इस किरदार को बड़ी मासूमियत से निभाया है।
‘सैयारा’ वाले अहान पांडे के चाचा चंकी पांडे और कुब्रा सैत इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। ये बिल्कुल भी नहीं झेले जाते। पूरी फिल्म में किसी पर दया आती है तो वो दीपक डोबरियाल हैं। उन्हें चंकी, कुब्रा, रोशनी के साथ गलत फंसा दिया गया। फिर भी उन्होंने कमाल की एक्टिंग की है और पूरी फिल्म में क्या तो स्टाइलिश लगे हैं। बाकी नीरू बाजवा, शरत सक्सेना और डॉली अहलूवालिया का काम ठीक है।



निर्देशन
फिल्म का निर्देशन विजय कुमार अरोड़ा ने किया है जो पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम हैं। साल 2018 में इन्होंने फिल्म 'हरजीता' डायरेक्ट की थी जिसने नेशनल अवॉर्ड जीता था। कई बड़ी हिंदी फिल्मों की सिनेमेटोग्राफी भी कर चुके हैं और अब पहली बार किसी हिंदी फिल्म का निर्देशन किया है।
पूरी फिल्म में सिर्फ एक सीन अच्छा कॉमिक बना है जहां निर्देशक ने भारतीय दर्शकों की नब्ज पकड़ी है और पाकिस्तान की बेइज्जती करके तालियां और सीटियां बटोरी हैं। हालांकि, फिल्म में भारत-पाकिस्तान मामले पर उन्होंने एक बार नहीं कई बार रोटियां सेकने की कोशिश की क्योंकि उन्हें कहानी से ज्यादा इसी एंगल पर भरोसा हाेगा।
विजय के पास इस फिल्म में इतनी बड़ी स्टारकास्ट थी कि कुछ किरदार तो जबरदस्ती ठूंसे हुए लग रहे थे। वो ना भी होते तो फिल्म पर कोई असर नहीं पड़ता। इसकी बजाय विजय कहानी पर थोड़ा काम कर लेते तो बेहतर था। वो पूरी फिल्म में खुद ही कन्फ्यूज रहे कि दिखाना क्या है? क्लाइमैक्स सीन में समझ ही नहीं आता कि निर्देशक सिर्फ सेंसलेस कॉमेडी करना चाहते हैं? या कोई संदेश देना चाहते हैं? संदेश है तो क्या है ? हर किरदार के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को दिखाने के चक्कर में वो इतने कन्फ्यूज हुए कि अंत में भूल ही गए कि दिखाना क्या है?



संगीत
फिल्म में जो थोड़ी बहुत काॅमेडी चल रही है उस पर इसके गाने ब्रेक लगा देते हैं। ये सुनने में तो कुछ खास हैं नहीं, विजुअली भी बर्बाद हैं। लगभग 200 विदेशी बैकग्राउंड आर्टिस्ट को लेकर शूट किया गया गाना ‘पहला तू.. दूजा तू..’ तो इतना फनी लगता है कि पूछिए ही मत। इस गाने में न तो अजय डांस कर रहे और न ही बैकग्रांउड आर्टिस्ट। बस टाइटल सॉन्ग ही थोड़ा सुनने लायक है, जो ओरिजिनल फिल्म से लिया गया है।



देखें या न देखें
दिमाग घर पर छोड़कर थिएटर में फिल्म देखने का टैलेंट है तो यह फिल्म आपके लिए ही है। आप इसे भरपूर एंजॉय करेंगे। कुछ सीन पर तो तालियां और सीटी भी बजाएंगे। परिवार के साथ देखें या न देखें ये फैसला इस आधार पर करें कि आपके पैरेंट्स और बच्चे कितने मॉर्डन हैं।
बाकी, जो फिल्म एक साल में शूट और एडिट होकर रिलीज हो जाए उससे आप कम ही उम्मीद रखें तो बेहतर। अच्छा हां, फिल्म के अंत में (क्रेडिट सीन से पहले) एक सरप्राइज कैमियो है.. जल्दी थिएटर से बाहर मत निकलियेगा।
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