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'मनोज बाजपेयी ही हमारी पहली पसंद थे', विपुल शाह ने की तारीफ; बड़े एक्टर्स के साथ काम करने पर भी बोले फिल्ममेकर
सार
Vipul Amritlal Shah Exclusive Interview: फिल्ममेकर विपुल अमृतलाल शाह इन दिनों अपनी नई फिल्म 'गवर्नर' को लेकर चर्चा में हैं। इस पॉलिटिकल थ्रिलर फिल्म में मनोज बाजपेयी मुख्य भूमिका में नजर आएंगे।
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विपुल शाह
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
अमर उजाला से बातचीत में विपुल ने फिल्म, पूरी टीम के अनुभव और अपनी प्रोडक्शन कंपनी के नए सफर पर खुलकर बात की। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…
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मनोज बाजपेयी को ही फिल्म के लिए क्यों चुना?
यह जो कहानी है न, वो भारत के इतिहास का एक ऐसा ‘सुनहरा पन्ना’ है, जो आज तक लोगों तक पहुंची ही नहीं। यह एक ऐसे इंसान के संघर्ष की दास्तां है जिसने भारत को एक बहुत बड़ी मुसीबत से बाहर निकाला। वह एक कॉमन मैन था और उसी कॉमन मैन का प्रतिनिधित्व इस कहानी में RBI के गवर्नर के रूप में दिखाया गया है। वह कोई बड़े राजनेता नहीं थे, न ही कोई ऐसे नेता जिनके पास बहुत ज्यादा ताकत हो। लेकिन अपनी सीमाओं के भीतर रहते हुए उन्होंने जितना संघर्ष किया, वह अपने आप में प्रेरणादायक है। आम आदमी से जुड़ी इस कहानी के लिए हमारी पहली और एकमात्र पसंद मनोज बाजपेयी थे। हमें खुशी है कि उन्होंने इस फिल्म के लिए हामी भरी। फिल्म में उन्होंने बेहद शानदार काम भी किया है।
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विपुल शाह-मनोज बाजपेयी
- फोटो : एक्स
फिल्म की तैयारी और वर्कशॉप कितनी गहराई से की गई?
हर फिल्म की तरह इस फिल्म के लिए भी हमने लगभग 15 से 20 दिन की वर्कशॉप की। इसके अलावा डेढ़ महीने की और तैयारी चली। एक्टर के साथ हम अलग से भी काफी वर्कशॉप करते हैं। हमारी फिल्म की शूटिंग अभी सिर्फ एक हफ्ते पहले ही खत्म हुई। अब हम रिलीज के लिए तैयारियां कर रहे हैं। पूरी फिल्म एक मैराथन शेड्यूल में शूट की गई। इसकी वजह यह थी कि हम नहीं चाहते थे कि एक्टर्स एक मिनट के लिए भी अपने रोल से बाहर आएं।
आपने दो नए वर्टिकल लॉन्च किए हैं। वजह क्या है?
हमने सनशाइन म्यूजिक और सनशाइन पिक्चर्स डिजिटल शुरू किए हैं क्योंकि लोगों के कंटेंट देखने का तरीका बदल गया है। भारत में हर मौके पर म्यूजिक मौजूद रहता है। इसलिए एक अलग म्यूजिक लेबल बनाना स्वाभाविक लगा। डिजिटल वर्टिकल इसलिए बनाया गया क्योंकि लोग अब दिनभर में छोटे-छोटे ब्रेक में, ज्यादातर मोबाइल पर कंटेंट देखते हैं। इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया गया है।
यह खबर भी पढ़ें: शादी के चार दिन बाद काम पर लौटीं सामंथा रुथ प्रभु, पोस्ट शेयर कर दी जानकारी; छूटी नहीं हाथों की मेहंदी
हर फिल्म की तरह इस फिल्म के लिए भी हमने लगभग 15 से 20 दिन की वर्कशॉप की। इसके अलावा डेढ़ महीने की और तैयारी चली। एक्टर के साथ हम अलग से भी काफी वर्कशॉप करते हैं। हमारी फिल्म की शूटिंग अभी सिर्फ एक हफ्ते पहले ही खत्म हुई। अब हम रिलीज के लिए तैयारियां कर रहे हैं। पूरी फिल्म एक मैराथन शेड्यूल में शूट की गई। इसकी वजह यह थी कि हम नहीं चाहते थे कि एक्टर्स एक मिनट के लिए भी अपने रोल से बाहर आएं।
आपने दो नए वर्टिकल लॉन्च किए हैं। वजह क्या है?
हमने सनशाइन म्यूजिक और सनशाइन पिक्चर्स डिजिटल शुरू किए हैं क्योंकि लोगों के कंटेंट देखने का तरीका बदल गया है। भारत में हर मौके पर म्यूजिक मौजूद रहता है। इसलिए एक अलग म्यूजिक लेबल बनाना स्वाभाविक लगा। डिजिटल वर्टिकल इसलिए बनाया गया क्योंकि लोग अब दिनभर में छोटे-छोटे ब्रेक में, ज्यादातर मोबाइल पर कंटेंट देखते हैं। इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया गया है।
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विपुल शाह-मनोज बाजपेयी
- फोटो : एक्स
फिल्म 'हिसाब' भी आ रही है। उससे क्या उम्मीद हैं?
'हिसाब' एक मनी-हीस्ट फिल्म है। 'आंखें' के बाद मैं पहली बार इस जॉनर में लौटा हूं। मेरी जरूरत थी कि कहानी साफ हो और ट्विस्ट मजबूत हों। साथ ही, एक्टर्स को करने के लिए ठोस रोल मिलें। शेफाली और जयदीप ने बहुत सधा हुआ काम किया है।
आज के ऑडियंस तक पहुंचना कितना मुश्किल है?
चुनौती वही है - कंटेंट अच्छा होना चाहिए। अगर कहानी या गाना पकड़ नहीं बनाता, तो लोग तुरंत आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन अच्छा कंटेंट अपना रास्ता बना लेता है। हाल ही में गुजराती फिल्म 'लालो: कृष्ण सदा सहायते' ने बहुत छोटे स्तर से शुरू होकर बड़ी सफलता हासिल की। यह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। आज के 15-30 साल के ऑडियंस बहुत स्पष्ट हैं। जो पसंद नहीं आता, उसे कुछ सेकंड में छोड़ देते हैं। और जो पसंद आ जाए, उसे लंबे समय तक देखते रहते हैं। यही बदलाव अब कहानी कहने में ध्यान में रखना पड़ता है।
क्या आप बड़े स्टार्स के साथ फिल्में करने में संकोच महसूस करते हैं?
नहीं, मैं किसी भी बड़े एक्टर के साथ काम करने से नहीं बचता। बड़े एक्टर्स ने दर्शकों के साथ 20-30 साल में बहुत गहरा रिश्ता बनाया है। उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रिस्क एक्टर्स से नहीं आता। अगर प्रोड्यूसर या डायरेक्टर गलत फिल्म चुन ले, तो रिस्क वहीं से शुरू होता है। इस पर कई तरह की बहसें होती रहती हैं। लेकिन मेरा मानना है कि हर फिल्म का अपना एक मैच और अपनी एक गणित होती है। अगर वह सही तरीके से सेट हो जाए, तो बड़े एक्टर्स फिल्म में बहुत मूल्य जोड़ते हैं। वह फिल्म को बहुत बड़ी ऑडियंस तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं। इसे कभी कम नहीं आंकना चाहिए। और नहीं, मैंने बड़े एक्टर्स के साथ काम करना बंद नहीं किया है। बहुत जल्द आप मेरी ओर से बड़े सितारों के साथ नए प्रोजेक्ट्स की घोषणाए सुनेंगे।
'हिसाब' एक मनी-हीस्ट फिल्म है। 'आंखें' के बाद मैं पहली बार इस जॉनर में लौटा हूं। मेरी जरूरत थी कि कहानी साफ हो और ट्विस्ट मजबूत हों। साथ ही, एक्टर्स को करने के लिए ठोस रोल मिलें। शेफाली और जयदीप ने बहुत सधा हुआ काम किया है।
आज के ऑडियंस तक पहुंचना कितना मुश्किल है?
चुनौती वही है - कंटेंट अच्छा होना चाहिए। अगर कहानी या गाना पकड़ नहीं बनाता, तो लोग तुरंत आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन अच्छा कंटेंट अपना रास्ता बना लेता है। हाल ही में गुजराती फिल्म 'लालो: कृष्ण सदा सहायते' ने बहुत छोटे स्तर से शुरू होकर बड़ी सफलता हासिल की। यह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। आज के 15-30 साल के ऑडियंस बहुत स्पष्ट हैं। जो पसंद नहीं आता, उसे कुछ सेकंड में छोड़ देते हैं। और जो पसंद आ जाए, उसे लंबे समय तक देखते रहते हैं। यही बदलाव अब कहानी कहने में ध्यान में रखना पड़ता है।
क्या आप बड़े स्टार्स के साथ फिल्में करने में संकोच महसूस करते हैं?
नहीं, मैं किसी भी बड़े एक्टर के साथ काम करने से नहीं बचता। बड़े एक्टर्स ने दर्शकों के साथ 20-30 साल में बहुत गहरा रिश्ता बनाया है। उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रिस्क एक्टर्स से नहीं आता। अगर प्रोड्यूसर या डायरेक्टर गलत फिल्म चुन ले, तो रिस्क वहीं से शुरू होता है। इस पर कई तरह की बहसें होती रहती हैं। लेकिन मेरा मानना है कि हर फिल्म का अपना एक मैच और अपनी एक गणित होती है। अगर वह सही तरीके से सेट हो जाए, तो बड़े एक्टर्स फिल्म में बहुत मूल्य जोड़ते हैं। वह फिल्म को बहुत बड़ी ऑडियंस तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं। इसे कभी कम नहीं आंकना चाहिए। और नहीं, मैंने बड़े एक्टर्स के साथ काम करना बंद नहीं किया है। बहुत जल्द आप मेरी ओर से बड़े सितारों के साथ नए प्रोजेक्ट्स की घोषणाए सुनेंगे।