War 2 Movie Review: ग्लैमर और स्टार पावर में टॉप पर कहानी, ट्विस्ट और इमोशन में फ्लॉप; ऋतिक और NTR का बेजान शो

यशराज का स्पाई यूनिवर्स अब धीरे धीरे अपने ही जाल में फंसता नजर आ रहा है। 'वाॅर' 'पठान' और 'टाइगर' फ्रेंचाइज की शुरुआती फिल्मों ने ऑडियंस को रोमांच और स्टार पावर का सही बैलेंस दिया था। लेकिन अब लगता है कि यशराज फिल्म इस यूनिवर्स को बस बड़े-बड़े नाम और महंगे लोकेशन्स के दम पर खींच रहा है। हर नई फिल्म एक दूसरे की कॉपी जैसी लगने लगी है। जहां कहानी के नाम पर पुराने फॉर्मूलों को नए पैकेज में बेचने की कोशिश होती है। 'वाॅर 2' इसका ताजा उदाहरण है, जहां यूनिवर्स को आगे बढ़ाने के बजाय वही घिसे पिटे ट्विस्ट, कमजोर विलेन और दिखावे वाला एक्शन परोसा गया। फिल्म के पास सुनहरा मौका था- दो बड़े सुपरस्टार्स, ग्लैमरस लोकेशन और हाईटेक एक्शन पेश करने का लेकिन इसकी कहानी में दम नहीं, यह बस दिखावे का भारी भरकम पैकेज है।

कहानी में काेई जान ही नहीं
कहानी की शुरुआत रॉ एजेंट कबीर (ऋतिक रोशन) से होती है, जो काली कार्टेल को खत्म करने के मिशन पर है। मिशन के दौरान वह अपने ही मेंटर और रॉ चीफ लूथरा (अशुतोष राणा) की हत्या कर देता है। इसके बाद एजेंसी एक नया एजेंट विक्रम (जूनियर एनटीआर) भेजती है, जिसका काम है कबीर को पकड़ना। कागज पर यह सेटअप एक जबरदस्त थ्रिलर की गारंटी देता है, लेकिन स्क्रीन पर आते-आते सारा रोमांच हवा हो जाता है। शुरुआती आधा घंटा महंगी गाड़ियां, विदेशी लोकेशन और स्टाइलिश एंट्री में बीत जाता है, जबकि कहानी वहीं की वहीं अटकी रहती है।

ऋतिक चमके, बाकी सब फीके
ऋतिक रोशन फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं। स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी, आत्मविश्वास और अंदाज हर सीन को बड़ा बना देते हैं, लेकिन कमजोर कहानी की वजह से वह अपना पूरा हुनर नहीं दिखा पाते। कियारा आडवाणी विंग कमांडर काव्या लूथरा के रूप में ठीक हैं, लेकिन उनके और ऋतिक के बीच कोई केमिस्ट्री नहीं दिखती। रोमांटिक या इमोशनल सीन में भी ठंडापन रहता है। अशुतोष राणा एक छोटे कैमियो तक सीमित रहते हैं और बाद में उनकी जगह रॉ चीफ के तौर पर अनिल कपूर आ जाते हैं। वरुण बडोला और सोनी राजदान जैसे कलाकार बस नाम के लिए हैं और उनका कहानी पर कोई असर नहीं।

एनटीआर को मिली बॉलीवुड डेब्यू में निराशा
एनटीआर की एंट्री फिल्म शुरू होने के आधे घंटे बाद होती है और यह शायद भारतीय सिनेमा की सबसे कमजोर स्टार एंट्री में से एक है। फीके वीएफएक्स, जीरो स्क्रीन प्रेसेंज, कमजोर डायलॉग डिलीवरी और बेस्वाद डांस- सब मिलकर उनकी छवि को फीका कर देते हैं। एक घंटे बीस मिनट बाद होने वाला एक बड़ा खुलासा भी ठंडा पड़ जाता है, मानो फिल्म खुद अपने ट्विस्ट पर भरोसा नहीं कर रही हो।

सुंदर लोकेशन, लेकिन बेअसर
जर्मनी, स्पेन, एम्स्टर्डम, जापान और स्विट्जरलैंड जैसे खूबसूरत लोकेशन पर पैसा पानी की तरह बहाया गया है। हर फ्रेम पोस्टकार्ड जैसा दिखता है, लेकिन ये लोकेशन कहानी को आगे नहीं बढ़ाते। कई एक्शन सीन तो बस बैकग्राउंड बदलकर शूट किए गए लगते हैं जिनमें जान और खतरे का एहसास गायब है।
टॉर्चर एलिमेंट- स्लो मो और लाउड म्यूजिक का ओवरडोज
फिल्म में स्लो मोशन इफेक्ट और तेज बैकग्राउंड म्यूजिक इतनी बार इस्तेमाल किया गया है कि वह रोमांच के बजाय टॉर्चर जैसा लगने लगता है। हर एंट्री, हर एक्शन सीन में इनका ओवरडोज ऑडियंस की सहनशक्ति की परीक्षा लेता है।

संगीत और बैकग्राउंड स्कोर भी एवरेज
प्रीतम का संगीत ऐसा है जिसे आप जल्दी भुला देंगे। गाने कहानी में रुकावट की तरह लगते हैं, जबकि बल्हारा ब्रदर्स का बैकग्राउंड स्कोर कुछ जगह काम करता है लेकिन पूरी फिल्म को उठाने में नाकाम रहता है। एडिटिंग में भी कसावट की कमी है, जिससे फिल्म खिंचती हुई लगती है।
अयान का ग्रैंड लेकिन खोखला निर्देशन
अयान मुखर्जी ने फिल्म को विजुअली भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन एक अच्छी स्पाई थ्रिलर के लिए जरूरी कसावट, तनाव और नयापन गायब हैं। कहानी में उतार-चढ़ाव की बजाय लंबे-लंबे फ्लैट हिस्से हैं, जो ऑडियंस को पकड़कर नहीं रख पाते।
देखना है या नहीं
'वॉर 2' एक चमकदार लेकिन खोखली एक्शन थ्रिलर है। इसमें बजट और सितारों की कमी नहीं, लेकिन कहानी और इमोशन लगभग गायब हैं। अगर आपको सिर्फ बड़े सितारे, विदेशी लोकेशन और हाई स्टाइल एक्शन देखना है तो एक बार देख सकते हैं। लेकिन अगर आप थ्रिल, इमोशन और दमदार कहानी चाहते हैं तो यह सफर बीच में ही छोड़ना बेहतर होगा।