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अरावली संरक्षण संघर्ष को बड़ी राहत: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर लगाई रोक, अब इस दिन होगी सुनवाई

संवाद न्यूज एजेंसी, भिवानी Published by: शाहिल शर्मा Updated Mon, 29 Dec 2025 03:12 PM IST
सार

सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली मामले में 20 नवंबर को दिए गए अपने ही फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ द्वारा सोमवार को पारित किया गया।

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Aravalli conservation struggle gets major relief from Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : पीटीआई
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अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर चल रहे जनसंघर्ष के बीच महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली मामले में 20 नवंबर को दिए गए अपने ही फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ द्वारा सोमवार को पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब तक प्रस्तावित हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी का गठन नहीं हो जाता, तब तक समिति की सिफारिशों और न्यायालय के पूर्व निर्देशों पर स्थगन प्रभावी रहेगा। इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 21 जनवरी को निर्धारित की गई है।

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सवालों की गहराई पर हो जांच: सुप्रीम कोर्ट 

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत यह आवश्यक मानती है कि रिपोर्ट का समग्र आकलन किया जाए और उठाए गए गंभीर सवालों की गहराई से जांच हो। इसके लिए एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया गया है। यह समिति उन क्षेत्रों की विस्तृत पहचान करेगी जिन्हें अरावली क्षेत्र से बाहर रखने का प्रस्ताव है। यह आकलन करेगी कि ऐसे किसी भी निर्णय से अरावली पर्वतमाला को पर्यावरणीय नुकसान या दीर्घकालिक खतरा तो नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि अरावली जैसी प्राचीन और संवेदनशील पारिस्थितिकी को लेकर किसी भी प्रकार का निर्णय वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और जनहित के व्यापक दृष्टिकोण से ही लिया जाना चाहिए।

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अरावली संरक्षण के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लोकेश भिवानी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जनता और पर्यावरण की बड़ी जीत बताया है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय साबित करता है कि यदि जनता जागरूक हो, तथ्य आधारित संघर्ष करे और संविधान व पर्यावरण के पक्ष में आवाज उठाए, तो व्यवस्था को भी  सोचना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम अरावली को बचाने की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ है। डॉ. लोकेश भिवानी ने कहा कि यह संघर्ष केवल एक पर्वतमाला का नहीं, बल्कि जल, हवा, जैव-विविधता और आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व का प्रश्न है।
 
डॉ. लोकेश ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक अस्थायी राहत है, अंतिम जीत नहीं। उन्होंने कहा कि जब तक अरावली को स्थायी और कानूनी संरक्षण नहीं मिलता, तब तक जन-जागरूकता, संवाद और लोकतांत्रिक दबाव बनाए रखना बेहद आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में किसी भी प्रकार के खनन, भूमि उपयोग परिवर्तन या अरावली की परिभाषा से छेड़छाड़ के प्रयासों पर समाज को सतर्क रहना होगा।
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