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Hindi News ›   Haryana ›   Chandigarh-Haryana News ›   It is wrong to consider the income of a licensed skilled driver and an unskilled worker equal to the minimum wage: High Court, Court News

लाइसेंस धारक कुशल ड्राइवर, अकुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के बराबर आय मानना गलत : हाईकोर्ट

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-मुआवजा निर्धारण कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं बल्कि पीड़ित परिवार को न्यायसंगत और यथोचित राहत देने का माध्यम
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-मोटर वाहन दुर्घटना में मृत युवक के परिजनों को दिए गए मुआवजे को बढ़ाते हुए हाईकोर्ट की टिप्पणी
-मुआवजे में संशोधन करते हुए कुल मुआवजा 18 लाख 16 हजार से बढ़ाकर 22 लाख 94 हजार किया

अमर उजाला ब्यूरो
चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना में हुई मौत के मामले में मोहम्मद शाकिर के परिजनों को दिए गए मुआवजे को 18 लाख 16 हजार 48 रुपये से बढ़ाकर 22 लाख 94 हजार 300 रुपये कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मुआवजा निर्धारण कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं बल्कि पीड़ित परिवार को न्यायसंगत और यथोचित राहत देने का माध्यम है। जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा कि रिकाॅर्ड पर मौजूद मृतक का ड्राइविंग लाइसेंस यह दर्शाता है कि वह कुशल चालक था। ऐसे में उसकी आय का आकलन अकुशल श्रमिक की बजाय कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन के आधार पर किया जाना चाहिए था।
29 दिसंबर 2018 को हुई सड़क दुर्घटना में नूंह निवासी शाकिर की मौत हो गई थी। परिजनों ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे की मांग की थी। ट्रिब्यूनल ने मृतक की आय को अकुशल श्रमिक मानते हुए मुआवजा तय किया था जिसे हाईकोर्ट ने अपर्याप्त माना। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालत ने हरियाणा सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी के आधार पर मृतक की मासिक आय नौ हजार 887 रुपये 99 पैसे मानते हुए इसे व्यावहारिक रूप से 10 हजार रुपये रुपये प्रतिमाह स्वीकार किया। अदालत ने कहा कि भविष्य की संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस आधार पर 40 प्रतिशत भविष्यगत वृद्धि जोड़ते हुए व्यक्तिगत खर्च के रूप में एक-चौथाई कटौती की गई और मृतक की आयु 32 वर्ष होने के कारण 16 का गुणांक लागू किया गया। संपत्ति हानि, अंतिम संस्कार खर्च और भावनात्मक (वैवाहिक-पैतृक) के मदों में भी बढ़ोतरी की गई।
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हाईकोर्ट ने कहा कि भावनात्मक नुकसान केवल पति-पत्नी तक सीमित नहीं है बल्कि माता-पिता और बच्चों के अधिकार भी इसमें शामिल हैं। इसी आधार पर पत्नी, बच्चों और माता-पिता को अलग-अलग भावनात्मक लाभ को वित्तीय रूप में प्रदान किया गया। ब्याज के संबंध में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि बढ़ी हुई मुआवजा राशि पर दावा याचिका दायर करने की तिथि से भुगतान तक नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिया जाएगा। कोर्ट ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह दो माह के भीतर बढ़ी हुई राशि ट्रिब्यूनल में जमा करे जिसे बाद में पीड़ित परिजनों के बैंक खातों में वितरित किया जाएगा।
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