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समान काम पर कम वेतन संविधान का गंभीर उल्लंघन : हाईकोर्ट

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कहा-आर्थिक मजबूरी के कारण शोषणकारी वेतन स्वीकार करना स्वैच्छिक सहमति नहीं
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इस प्रकार कार्य कर सरकार कर्मचारियों का वंचित व अधीनस्थ वर्ग नहीं तैयार कर सकती
अमर उजाला ब्यूरो

चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा-समान कार्य करने वाले कर्मचारियों को कम वेतन देना राज्य की सांविधानिक जिम्मेदारी का गंभीर उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि सरकार ऐसे कर्मचारियों का एक वंचित और अधीनस्थ वर्ग तैयार नहीं कर सकती जो नियमित कर्मचारियों की तरह ही काम करते हों। न्यायालय ने कहा कि आर्थिक मजबूरी के कारण शोषणकारी वेतन स्वीकार करना स्वैच्छिक सहमति नहीं माना जा सकता।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि श्रम की गरिमा बनाए रखना और शोषणकारी वेतन व्यवस्था को रोकना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसा न करना केवल प्रशासनिक त्रुटि नहीं बल्कि निष्पक्षता, गरिमा और समानता के मूल सिद्धांतों का गहरा उल्लंघन है। कर्मचारी ने याचिका दाखिल करते हुए बताया गया था कि वह नियमित रिक्ति पद पर अकाउंट असिस्टेंट के समान गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से समान कार्य कर रहा है, फिर भी उसे सिर्फ फिक्स्ड वेतन दिया जा रहा है। अदालत ने यह भी पाया कि हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी उसके काम और योग्यताओं में कोई अंतर नहीं बता सकी। अदालत ने राज्य की यह दलील भी खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता ने स्वयं शर्तें स्वीकार की थीं। न्यायालय ने कहा कि आर्थिक मजबूरी के कारण शोषणकारी वेतन स्वीकार करना स्वैच्छिक सहमति नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने टिप्पणी की कि समान काम के लिए असमान वेतन की अनुमति देना मनमाने भेदभाव को वैध ठहराने जैसा होगा, जो कमजोर श्रमिकों को असहाय होकर आत्मसम्मान और जीविका में से किसी एक को चुनने पर मजबूर करेगा। मानव गरिमा पर ऐसा आघात अस्वीकार्य है और अनुच्छेद 14 तथा 21 का सीधा उल्लंघन है।
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