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सजा की कुल अवधि नहीं, अधिकतम सजा होगी अपील की सुनवाई का आधार: हाईकोर्ट
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चंडीगढ़। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपील या रिवीजन को सिंगल बेंच या डिवीजन बेंच में सूचीबद्ध करने के लिए ट्रायल कोर्ट की ओर से दी गई सभी सजाओं के जोड़ को नहीं, बल्कि दी गई सबसे अधिक सजा को आधार माना जाएगा। साथ ही अदालत ने कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट एक से अधिक सजा देते समय यह स्पष्ट नहीं करता कि वे साथ-साथ चलेंगी या एक के बाद एक तो इसका लाभ आरोपी को दिया जाएगा और सजाओं को प्रथम दृष्टया साथ-साथ चलने वाली माना जाएगा।
जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि यदि अदालतें इस पहलू पर ध्यान न दें तो यह उनके कर्तव्य में चूक होगी। पीठ ने रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) से अनुरोध किया कि इस मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जाए। सुझाव दिया कि जहां दोष सिद्धि के फैसले में यह उल्लेख न हो कि सजाएं समवर्ती होंगी या क्रमिक, वहां रजिस्ट्री को प्रारंभिक तौर पर सजाओं को समवर्ती मानते हुए मामला सूचीबद्ध करना चाहिए।
अदालत ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां वर्तमान मामले तक सीमित हैं और रजिस्ट्री के लिए बाध्यकारी निर्देश नहीं हैं। लिस्टिंग से जुड़े प्रशासनिक निर्णय लेना मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है। इसके साथ ही आदेश की प्रति रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) को भेजने के निर्देश दिए गए ताकि इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रशासनिक पक्ष पर विचार के लिए रखा जा सके।
यह टिप्पणियां गुरुग्राम की सेशन कोर्ट से दोष सिद्ध आरोपी विक्की गिरी उर्फ विक्की कुमार गिरी की याचिका पर की गईं। सेशन कोर्ट ने 20 अक्तूबर 2025 के निर्णय और 27 अक्तूबर 2025 के सजा आदेश के तहत उसे आईपीसी की धारा 392 और 397 में सात-सात वर्ष की सश्रम कैद, धारा 506 सहपठित धारा 34 में एक वर्ष की सश्रम कैद और आर्म्स एक्ट की धारा 25(1बी)(ए) में दो वर्ष की सश्रम कैद की सजा सुनाई थी। सभी सजाओं के साथ जुर्माना भी लगाया था। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया था कि ये सजाएं साथ-साथ चलेंगी या क्रमिक रूप से।
आरोपी की ओर से सीमित दलील दी गई कि जब सजा आदेश में इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है तो सजाओं को समवर्ती माना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के कई अहम फैसलों का उल्लेख करते हुए कानून का विस्तृत विश्लेषण किया।
अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 के तहत पहले यह धारणा थी कि यदि स्पष्ट आदेश न हो तो सजाएं क्रमिक रूप से चलेंगी। लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 25 में इस धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। नई व्यवस्था में क्रमिक सजा की वह भाषा हटा दी गई है जिससे यह पूर्वधारणा समाप्त हो जाती है। ऐसे में यदि कानून यह अपेक्षा करता है कि सजा का स्वरूप स्पष्ट किया जाए और अदालत ऐसा नहीं करती तो लाभ अभियोजन को नहीं बल्कि आरोपी को मिलेगा।
पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में आरोपी को दी गई अधिकतम सजा सात वर्ष है जो वर्तमान में सिंगल बेंच के अधिकार क्षेत्र में आती है। इसलिए यह अपील सिंगल बेंच के समक्ष सूचीबद्ध की जाएगी। अदालत ने कहा कि यदि आरोपी सजा निलंबन के लिए आवेदन करता है तो उस पर विचार करते समय सजाओं को प्रथम दृष्टया समवर्ती मानकर ही निर्णय लिया जाएगा।
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जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि यदि अदालतें इस पहलू पर ध्यान न दें तो यह उनके कर्तव्य में चूक होगी। पीठ ने रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) से अनुरोध किया कि इस मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जाए। सुझाव दिया कि जहां दोष सिद्धि के फैसले में यह उल्लेख न हो कि सजाएं समवर्ती होंगी या क्रमिक, वहां रजिस्ट्री को प्रारंभिक तौर पर सजाओं को समवर्ती मानते हुए मामला सूचीबद्ध करना चाहिए।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां वर्तमान मामले तक सीमित हैं और रजिस्ट्री के लिए बाध्यकारी निर्देश नहीं हैं। लिस्टिंग से जुड़े प्रशासनिक निर्णय लेना मुख्य न्यायाधीश का विशेषाधिकार है। इसके साथ ही आदेश की प्रति रजिस्ट्रार (लिस्टिंग) को भेजने के निर्देश दिए गए ताकि इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रशासनिक पक्ष पर विचार के लिए रखा जा सके।
यह टिप्पणियां गुरुग्राम की सेशन कोर्ट से दोष सिद्ध आरोपी विक्की गिरी उर्फ विक्की कुमार गिरी की याचिका पर की गईं। सेशन कोर्ट ने 20 अक्तूबर 2025 के निर्णय और 27 अक्तूबर 2025 के सजा आदेश के तहत उसे आईपीसी की धारा 392 और 397 में सात-सात वर्ष की सश्रम कैद, धारा 506 सहपठित धारा 34 में एक वर्ष की सश्रम कैद और आर्म्स एक्ट की धारा 25(1बी)(ए) में दो वर्ष की सश्रम कैद की सजा सुनाई थी। सभी सजाओं के साथ जुर्माना भी लगाया था। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया था कि ये सजाएं साथ-साथ चलेंगी या क्रमिक रूप से।
आरोपी की ओर से सीमित दलील दी गई कि जब सजा आदेश में इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है तो सजाओं को समवर्ती माना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के कई अहम फैसलों का उल्लेख करते हुए कानून का विस्तृत विश्लेषण किया।
अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 के तहत पहले यह धारणा थी कि यदि स्पष्ट आदेश न हो तो सजाएं क्रमिक रूप से चलेंगी। लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 25 में इस धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। नई व्यवस्था में क्रमिक सजा की वह भाषा हटा दी गई है जिससे यह पूर्वधारणा समाप्त हो जाती है। ऐसे में यदि कानून यह अपेक्षा करता है कि सजा का स्वरूप स्पष्ट किया जाए और अदालत ऐसा नहीं करती तो लाभ अभियोजन को नहीं बल्कि आरोपी को मिलेगा।
पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में आरोपी को दी गई अधिकतम सजा सात वर्ष है जो वर्तमान में सिंगल बेंच के अधिकार क्षेत्र में आती है। इसलिए यह अपील सिंगल बेंच के समक्ष सूचीबद्ध की जाएगी। अदालत ने कहा कि यदि आरोपी सजा निलंबन के लिए आवेदन करता है तो उस पर विचार करते समय सजाओं को प्रथम दृष्टया समवर्ती मानकर ही निर्णय लिया जाएगा।