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Hisar News: नींद की कमी और फास्ट फूड का बढ़ता चलन बिगाड़ रहा हार्मोनल संतुलन
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हिसार। बदलती जीवनशैली और दिनचर्या में बदलाव का सीधा असर लड़कियों के शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करने के कारण नींद पूरी नहीं हो रही और फास्ट फूड का बढ़ता चलन समस्या को और बढ़ा रहा है।
पहले जहां 12 से 14 वर्ष की आयु में पीरियड्स की शुरुआत सामान्य मानी जाती थी वहीं अब 10 वर्ष की उम्र में ही पीरियड्स आने लगे हैं। इसे सिर्फ एक नैचुरल बदलाव मानकर नजरअंदाज करना ठीक नहीं है बल्कि यह आने वाले समय के लिए एक गंभीर संकेत है।
रेगुलर ओपीडी और स्टडी बेसिस पर देखा गया है कि अब लगभग 25 प्रतिशत केस ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमें 10 से 11 वर्ष की लड़कियों को ही पीरियड्स शुरू हो जाते हैं जबकि 8 और 9 वर्ष में पीरियड्स आना भले ही दुलर्भ है लेकिन ऐसे मामलों में अनियमितता और अधिक होती है। विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में हार्मोनल बदलाव की गति तेज होने का सबसे बड़ा कारण असंतुलित खानपान और फास्ट फूड है। आज की पीढ़ी घर का पौष्टिक भोजन कम और बाहर का तला-भुना, फैटी, स्पाइसी एवं जंक फूड ज्यादा खा रही है। ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर में फैट बढ़ाते हैं और हार्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं। इसके कारण कम उम्र में ही पीरियड्स आना शुरू हो जाता है।
सीसवाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में तैनात मेडिकल ऑफिसर डॉ. अस्मिता चौधरी ने बताया कि खराब लाइफस्टाइल भी इस समस्या को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। आज के बच्चे पर्याप्त नींद नहीं लेते (देर रात तक फोन देखते हैं और सुबह कमजोर दिनचर्या के साथ उठते हैं। नींद पूरी न होने से शरीर की हार्मोनल प्रणाली प्रभावित होती है जिससे पीरियड्स का समय बिगड़ जाता है। इसके अलावा फोन और सोशल मीडिया का अधिक उपयोग तनाव बढ़ाता है और शारीरिक गतिविधियां कम कर देता है जो लड़कियों के पीरियड्स साइकल को और प्रभावित करता है।
कम उम्र में आने वाले पीरियड्स अक्सर अनियमित होते हैं। सामान्य तौर पर पीरियड्स 3 से 7 दिन तक चलते हैं और शुरुआत में 5 दिन तक होना सामान्य माना जाता है लेकिन कम उम्र में शुरू होने वाले पीरियड्स में कई बार 2, 3 या 4 महीने तक का गैप आ जाता है। कुछ लड़कियों में यह अंतर 6 महीने तक भी पहुंच जाता है जो शरीर के हार्मोनल इनबैलेंस (असंतुलन) का स्पष्ट संकेत है।
इन बातों का रखें ध्यान
-गलत खानपान और रक्त की कमी (एनीमिया) पीरियड्स को अनियमित बनाने का बड़ा कारण है। कई बच्चे सुबह खाली पेट चाय पीते हैं, जिससे शरीर में आयरन की कमी बढ़ती है। जब खून की कमी होती है, तो पीरियड्स समय पर नहीं आते। बच्चों को चाय बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए।
-स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अभिभावकों को ध्यान देना होगा कि बच्चे रात में कम से कम 8 से 9 घंटे की नींद ले। उन्हें रात 10 से 11 बजे सोने और सुबह 6 से 7 बजे उठने की आदत डालनी चाहिए। बच्चों को दिन में तीन बार घर का बना पौष्टिक खाना देना चाहिए, जिसमें हरी सब्जियां, सलाद, दूध, दही और लस्सी शामिल हों। इससे खून की कमी दूर होगी और भूख भी बढ़ेगी।
-बच्चों की लाइफस्टाइल सुधारी जाए, फास्टफूड की मात्रा कम की जाए और शारीरिक गतिविधियां बढ़ाई जाएं तो कम उम्र में पीरियड्स आने की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। अभिभावकों की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, ताकि बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास स्वाभाविक रूप से हो सके।
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पहले जहां 12 से 14 वर्ष की आयु में पीरियड्स की शुरुआत सामान्य मानी जाती थी वहीं अब 10 वर्ष की उम्र में ही पीरियड्स आने लगे हैं। इसे सिर्फ एक नैचुरल बदलाव मानकर नजरअंदाज करना ठीक नहीं है बल्कि यह आने वाले समय के लिए एक गंभीर संकेत है।
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रेगुलर ओपीडी और स्टडी बेसिस पर देखा गया है कि अब लगभग 25 प्रतिशत केस ऐसे सामने आ रहे हैं जिनमें 10 से 11 वर्ष की लड़कियों को ही पीरियड्स शुरू हो जाते हैं जबकि 8 और 9 वर्ष में पीरियड्स आना भले ही दुलर्भ है लेकिन ऐसे मामलों में अनियमितता और अधिक होती है। विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों में हार्मोनल बदलाव की गति तेज होने का सबसे बड़ा कारण असंतुलित खानपान और फास्ट फूड है। आज की पीढ़ी घर का पौष्टिक भोजन कम और बाहर का तला-भुना, फैटी, स्पाइसी एवं जंक फूड ज्यादा खा रही है। ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर में फैट बढ़ाते हैं और हार्मोनल असंतुलन पैदा करते हैं। इसके कारण कम उम्र में ही पीरियड्स आना शुरू हो जाता है।
सीसवाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में तैनात मेडिकल ऑफिसर डॉ. अस्मिता चौधरी ने बताया कि खराब लाइफस्टाइल भी इस समस्या को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। आज के बच्चे पर्याप्त नींद नहीं लेते (देर रात तक फोन देखते हैं और सुबह कमजोर दिनचर्या के साथ उठते हैं। नींद पूरी न होने से शरीर की हार्मोनल प्रणाली प्रभावित होती है जिससे पीरियड्स का समय बिगड़ जाता है। इसके अलावा फोन और सोशल मीडिया का अधिक उपयोग तनाव बढ़ाता है और शारीरिक गतिविधियां कम कर देता है जो लड़कियों के पीरियड्स साइकल को और प्रभावित करता है।
कम उम्र में आने वाले पीरियड्स अक्सर अनियमित होते हैं। सामान्य तौर पर पीरियड्स 3 से 7 दिन तक चलते हैं और शुरुआत में 5 दिन तक होना सामान्य माना जाता है लेकिन कम उम्र में शुरू होने वाले पीरियड्स में कई बार 2, 3 या 4 महीने तक का गैप आ जाता है। कुछ लड़कियों में यह अंतर 6 महीने तक भी पहुंच जाता है जो शरीर के हार्मोनल इनबैलेंस (असंतुलन) का स्पष्ट संकेत है।
इन बातों का रखें ध्यान
-गलत खानपान और रक्त की कमी (एनीमिया) पीरियड्स को अनियमित बनाने का बड़ा कारण है। कई बच्चे सुबह खाली पेट चाय पीते हैं, जिससे शरीर में आयरन की कमी बढ़ती है। जब खून की कमी होती है, तो पीरियड्स समय पर नहीं आते। बच्चों को चाय बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए।
-स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अभिभावकों को ध्यान देना होगा कि बच्चे रात में कम से कम 8 से 9 घंटे की नींद ले। उन्हें रात 10 से 11 बजे सोने और सुबह 6 से 7 बजे उठने की आदत डालनी चाहिए। बच्चों को दिन में तीन बार घर का बना पौष्टिक खाना देना चाहिए, जिसमें हरी सब्जियां, सलाद, दूध, दही और लस्सी शामिल हों। इससे खून की कमी दूर होगी और भूख भी बढ़ेगी।
-बच्चों की लाइफस्टाइल सुधारी जाए, फास्टफूड की मात्रा कम की जाए और शारीरिक गतिविधियां बढ़ाई जाएं तो कम उम्र में पीरियड्स आने की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। अभिभावकों की भूमिका इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, ताकि बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास स्वाभाविक रूप से हो सके।