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अमृत महोत्सव: लोगों ने ज्यादा दिनों तक नहीं स्वीकारी अंग्रेजों की सरपरस्ती, हिसार में ऐसे खोला था मोर्चा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, हिसार (हरियाणा) Published by: अमर उजाला ब्यूरो Updated Sun, 14 Aug 2022 05:47 PM IST
सार

वर्ष 1803 के एक सरकारी लेख पत्र के अनुसार वर्ष 1783 में हिसार क्षेत्र की कुल आबादी 400 से भी कम रह गई थी। यहां के लोग दूसरी जगह जाकर बसने लगे थे।

People did not accept  British supremacy for long had opened the front
आजादी का अमृत महोत्सव - फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार
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दिल्ली की हिफाजत के लिए हरियाणा का विशाल मैदानी क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। इसीलिए अंग्रेज जब दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू की। वर्ष 1803 में लगभग वीरान पड़ चुके हिसार क्षेत्र को युद्ध में जीता और फिर इसको नए सिरे से बसाना भी शुरू किया। परंतु अपने खास बगावती तेवर के लिए पहचाने जाने वाले डबवाली से दादरी तक फैले इस क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजों की सरपरस्ती को बहुत दिन तक स्वीकार नहीं किया। जश्न ए आजादी के इस खास मौके पर अमर उजाला ने आजादी की लड़ाई में हिसार के योगदान को शृंखलाबद्ध किया है। प्रस्तुत है इसकी पहली कड़ी...



मुगलकाल में ग्वालियर का हिस्सा रहे हिसार क्षेत्र (डबवाली से दादरी) में छोटी-बड़ी 42 रियासतें थीं। इनमें से कुछ पर मुगलों का कब्जा था तो कहीं सिख भी थे। यहां के किसान रियासतों की आपसी लड़ाई में फंसकर मर रहे थे।


वर्ष 1803 के एक सरकारी लेख पत्र के अनुसार वर्ष 1783 में हिसार क्षेत्र की कुल आबादी 400 से भी कम रह गई थी। यहां के लोग दूसरी जगह जाकर बसने लगे थे।

इधर, दिल्ली की गद्दी को सुरक्षित करने में लगी अंग्रेजी हुकूमत को पंजाब प्रांत की तरफ से खतरा महसूस हो रहा था। लिहाजा अंग्रेजी फौजों ने ग्वालियर के मराठा शासक दौलत राव सिंधिया से युद्ध कर हिसार क्षेत्र को जीत लिया।

30 दिसंबर 1803 को अंग्रेजों व ग्वालियर राजघराने के बीच सर्जी अर्जन गांव समझौता हुआ, जिसके चलते यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया।

बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्षेत्र को रानिया (सिरसा) के नवाब जाविता खान के सुपुर्द कर दिया। उस वक्त हांसी में सैन्य छावनी स्थापित की गई। (जैसा इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया)

घोड़े के व्यापारी ने खोला था कैटल फार्म
वीरान पड़े इस इलाके में खास प्रकार की घास अंजना पाई जाती है, जो घोड़ों को बहुत अधिक पसंद है। इलाके की जलवायु भी घोड़ों के अनुकूल है। अंग्रेज व्यापारी लुइस डम को जब इस खासियत के बारे में पता लगा तो उसने वर्ष 1815 में यहां विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कैटल फार्म खोल दिया। हालांकि शुरुआत में यह फार्म ऊंटों के लिए खोला गया था लेकिन बाद में यहां रखे गए अच्छी नस्ल के घोड़ों को अंग्रेज अंबाला, दिल्ली, मुल्तान और फिरोजपुर के सैनिक छावनी में भेजने लगे थे।

अंग्रेजी हुकूमत ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए व्यापारियों व अन्य लोगों को हिसार, हांसी, सिरसा, फतेहाबाद आदि जगहों पर बसाना शुरू कर दिया। वर्ष 1818 में नवाब जाविता खान और अंग्रेजी हुकूमत के बीच मतभेद हो गया और सरकार ने पूरा क्षेत्र अपने अधीन कर लिया।
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हिसार को जिला बनाया, हांसी बना मुख्यालय
1820 में ब्रिटिश हुकूमत ने हिसार को जिला घोषित कर दिया। उस वक्त डबवाली से दादरी (वर्तमान सिरसा से चरखी दादरी) तक का पूरा क्षेत्र इस जिले में शामिल किया। परंतु मुख्यालय हांसी को बनाया गया। वर्ष 1827 में हिसार स्थित कैटल फार्म में पहली बार सरकारी बिल्डिंग पीली कोठी का निर्माण कराया गया। इसी दौरान वर्ष 1832 में अंग्रेजों ने उत्तर पश्चिम प्रांत का गठन किया, जिसकी राजधानी आगरा बनाई गई, जबकि दिल्ली को डिवीजन घोषित किया गया।

इस नए राज्य में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली व वर्तमान हरियाणा का करीब-करीब पूरा क्षेत्र शामिल किया गया। हिसार को जिला बनाए रखा गया और पहली बार इसका मुख्यालय भी हांसी से हटाकर हिसार कर दिया गया। हांसी को सैन्य छावनी बनाए रखने के साथ ही सिरसा, फतेहाबाद, हिसार व भिवानी नगरों के विकास पर विशेष जोर दिया।

1832 तक हिसार का विकास तेज हो चुका था। यहां के किसान कपास व चने का अच्छा उत्पादन कर रहे थे। इसके अलावा पशुपालन भी वृहद पैमाने पर हो रहा था, जिसके चलते किसानों के घर में घी-दूध की प्रचुरता हो गई थी। ऐसे में अंग्रेजों ने भिवानी से जयपुर होते हुए कराची बंदरगाह तक रेल लाइन बिछाकर व्यापारियों को खुली छूट दे दी।

नतीजा यह हुआ कि यहां से कपास, चना व घी कम रेट में खरीदकर अंग्रेज व्यापारी कराची बंदरगाह के रास्ते इंग्लैंड भेजने लगे। इतना ही नहीं भू राजस्व वसूली के लिए महालवाड़ी व्यवस्था लागू कर दी। आदेश दिया गया कि सभी किसानों को अनिवार्य रूप से टैक्स देना होगा। अगर किसी किसान ने टैक्स देने से इंकार किया तो सभी किसानों से फिर से टैक्स वसूला जाएगा। इसके विरोध में किसानों ने मोर्चा खोल दिया था।

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