{"_id":"6866d443ef15d77e8a09adc9","slug":"possession-of-shamlat-land-cannot-be-transferred-from-father-to-son-rohtak-news-c-17-roh1019-683665-2025-07-04","type":"story","status":"publish","title_hn":"Rohtak News: शामलात भूमि पर कब्जा नहीं हो सकता पिता से बेटे को स्थानांतरित","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Rohtak News: शामलात भूमि पर कब्जा नहीं हो सकता पिता से बेटे को स्थानांतरित
संवाद न्यूज एजेंसी, रोहतक
Updated Fri, 04 Jul 2025 12:34 AM IST
विज्ञापन


रोहतक। शामलात भूमि पर अगर पिता का कब्जा था तो उसके बाद बेटों का कब्जा नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह ऐसी प्रॉपर्टी या दस्तावेज नहीं है, जिसे स्थानांतरित किया जाए। एडीजे (अतिरिक्त एवं जिला सत्र न्यायाधीश) रजनी यादव की अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए निचली अदालत की ओर से जारी स्टे ऑर्डर न केवल रद्द कर दिया, बल्कि नगर निगम की कार्रवाई की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।
नगर निगम के रिकाॅर्ड के मुताबिक, लाढ़ोत रोड निवासी धर्मबीर सिंह ने अदालत में 2019 में अर्जी दायर की कि वह और उनके पूर्वजों का 1997-98 की जमाबंदी के तहत दो बीघा 6 बिस्वा जमीन पर 50 साल से कब्जा था। उन्होंने इसमें से 660 वर्ग गज जमीन की चहारदीवारी करवाई।
नगर निगम ने जमीन के कुछ हिस्से पर सामुदायिक केंद्र केे भवन का निर्माण कर दिया। इतना ही नहीं 2019 में बिना नोटिस दिए चहारदीवारी का एक हिस्सा तोड़ दिया। निगम को इस तरह की कार्रवाई करने से रोका जाए। अदालत ने स्टे ऑर्डर जारी करके और दीवार गिराने से रोक दिया।
निगम की तरफ से एडीजे ट्रायल कोर्ट ने वादी के स्थगन आवेदन को स्वीकार कर लिया और प्रतिवादी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान वादी को बेदखल करने और दीवार को गिराने से रोक दिया गया। निगम ने एडीजे रजनी यादव की अदालत में अपील की।
अदालत में निगम के वकील ने कहा कि धर्मबीर ने खुद को गैर मारुसी दिखाया हुआ है, जबकि कब्जा उसके पिता से उसे स्थानांतरित नहीं हो सका। न ही निगम को नोटिस देकर कार्रवाई करने से रोका गया। अदालत ने दोनों पक्षों की बहस व तथ्यों के बाद निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया।
विज्ञापन
Trending Videos
नगर निगम के रिकाॅर्ड के मुताबिक, लाढ़ोत रोड निवासी धर्मबीर सिंह ने अदालत में 2019 में अर्जी दायर की कि वह और उनके पूर्वजों का 1997-98 की जमाबंदी के तहत दो बीघा 6 बिस्वा जमीन पर 50 साल से कब्जा था। उन्होंने इसमें से 660 वर्ग गज जमीन की चहारदीवारी करवाई।
विज्ञापन
विज्ञापन
नगर निगम ने जमीन के कुछ हिस्से पर सामुदायिक केंद्र केे भवन का निर्माण कर दिया। इतना ही नहीं 2019 में बिना नोटिस दिए चहारदीवारी का एक हिस्सा तोड़ दिया। निगम को इस तरह की कार्रवाई करने से रोका जाए। अदालत ने स्टे ऑर्डर जारी करके और दीवार गिराने से रोक दिया।
निगम की तरफ से एडीजे ट्रायल कोर्ट ने वादी के स्थगन आवेदन को स्वीकार कर लिया और प्रतिवादी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान वादी को बेदखल करने और दीवार को गिराने से रोक दिया गया। निगम ने एडीजे रजनी यादव की अदालत में अपील की।
अदालत में निगम के वकील ने कहा कि धर्मबीर ने खुद को गैर मारुसी दिखाया हुआ है, जबकि कब्जा उसके पिता से उसे स्थानांतरित नहीं हो सका। न ही निगम को नोटिस देकर कार्रवाई करने से रोका गया। अदालत ने दोनों पक्षों की बहस व तथ्यों के बाद निचली अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया।