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Hamirpur (Himachal) News: मैं खुद खनन माफिया हूं… अब शुक्कर की हालत देख होता है दुख
संवाद न्यूज एजेंसी, हमीरपुर (हि. प्र.)
Updated Tue, 30 Dec 2025 07:36 AM IST
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रजत धीमान निवासी शुक्कर खड्ड
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सचित्र
ग्राउंड रिपोर्ट
मोल्डर के बदले रेत बजरी का सौदा, कृषि ट्रैक्टर का खनन में अंधाधुंध प्रयोग
क्रशर को सप्लाई दे रहे छोटे खननकारी, मिट गया कुल्हों का अस्तित्व
कमलेश रतन भारद्वाज
दख्योड़ा (हमीरपुर)। खुद खनन माफिया हूं... लेकिन अब शुक्कर खड्ड की हालत देखकर दुख होता है। आखिर हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं? ये शब्द शुक्कर खड्ड में वर्षों से जारी वैध-अवैध खनन की उस सच्चाई को उजागर करते हैं, जिसे हर कोई आता-जाता देख तो रहा है, लेकिन स्वीकारने से कतराता है।
समय दोपहर 12:50 बजे। स्थान सीर खड्ड किनारे दख्योड़ा स्थित गोसदन। सूख चुकी शुक्कर खड्ड के किनारे खामोशी पसरी है, लेकिन सड़क से गुजरते खनन सामग्री से लदे वाहनों का शोर इस सन्नाटे को बार-बार तोड़ देता है। गोसदन में काम कर रहे कुछ लोग नाम बताने से बचते हैं। खनन का जिक्र होते ही पहले सवालों से बचते हैं, फिर एक अधेड़ व्यक्ति मायूसी भरे स्वर में स्वीकार करता है खड्ड से ट्रैक्टर के जरिये रेत-बजरी उठाता हूं.....यह भी गलत है।
वे कहते हैं कि कभी क्रशर को सप्लाई नहीं दी, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि शुक्कर खड्ड का दायरा समुद्र सा फैल गया है। चारों ओर सिर्फ बंजर जमीन बची है। वह खड्ड किनारे बने अमृत सरोवर की ओर इशारा करता है। कहते हैं कि इस सूखे सरोवर की तरह अब खेती की उम्मीदें भी सूख गई हैं। कुछ ही दूरी पर धान की खेती के लिए बनी पक्की कूहलों तक व्यक्ति ले जाता है। ये कूहलें खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं। एक तरफ से टूट चुकी कूहल और दूसरी ओर मलबे में दबी जल संरचनाएं खनन की कीमत बयां कर रही हैं। खुद को खनन माफिया कहने वाले अधेड़ व्यक्ति की बात एक ही जगह ठहरती है। यह खनन अब रुकना चाहिए।
मोल्डर का सौदा, बदले में रेत-बजरी
शुक्कर खड्ड में धंगोटा से लेकर बड़ाग्रां पंचायत तक महज सात किलोमीटर के दायरे में एक स्क्रीनिंग प्लांट और छह स्टोन क्रशर संचालित हैं। इससे पहले कुछ क्रशर बंद भी हो चुके हैं। वर्ष 2000 के बाद यहां स्टोन क्रशर स्थापित होने का सिलसिला शुरू हुआ, लेकिन पिछले एक–डेढ़ दशक में इनकी संख्या बेकाबू हो गई। अब यहां आठवां स्टोन क्रशर खोलने की तैयारी चल रही है। सबसे गंभीर पहलू यह है कि छोटे स्तर के खननकारी अवैध तरीके से खड्ड से मोल्डर निकालकर क्रशरों को सप्लाई कर रहे हैं और बदले में रेत-बजरी हासिल कर रहे हैं। इससे अवैध खनन को परोक्ष रूप से बढ़ावा मिल रहा है।
यही है असली वजह
-स्टोन क्रशर खोलने के लिए तय किए गए पैरामीटर लचीले
-खड्ड में क्रशरों के बीच न्यूनतम दूरी की कोई शर्त नहीं
-आबादी से 500 मीटर और स्कूल–अस्पताल से एक किमी की दूरी जरूरी
-शुक्कर खड्ड की चौड़ाई कई स्थानों पर एक किलोमीटर तक
-पहले मशीनरी से खनन की अनुमति नहीं थी, लेकिन लाखों रुपये चुका यह भी
कोट्स
महज सात किलोमीटर के दायरे में इतने क्रशर की अनुमति गलत है। क्रशरों का शोर और बोर के जरिये छनाई में इस्तेमाल होने वाला भारी पानी प्रदूषण बढ़ा रहा है।
-- रजत धीमान, निवासी शुक्कर खड्ड
सिर्फ शुक्कर खड्ड ही नहीं, आसपास के गांवों की बावड़ियां भी सूख गई हैं। सिंचाई और पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। अंधाधुंध खनन ने खेती खत्म कर दी और अब प्रदूषण से लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है।
-- सोमदत्त, निवासी महारल
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मोल्डर के बदले रेत बजरी का सौदा, कृषि ट्रैक्टर का खनन में अंधाधुंध प्रयोग
क्रशर को सप्लाई दे रहे छोटे खननकारी, मिट गया कुल्हों का अस्तित्व
कमलेश रतन भारद्वाज
दख्योड़ा (हमीरपुर)। खुद खनन माफिया हूं... लेकिन अब शुक्कर खड्ड की हालत देखकर दुख होता है। आखिर हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं? ये शब्द शुक्कर खड्ड में वर्षों से जारी वैध-अवैध खनन की उस सच्चाई को उजागर करते हैं, जिसे हर कोई आता-जाता देख तो रहा है, लेकिन स्वीकारने से कतराता है।
समय दोपहर 12:50 बजे। स्थान सीर खड्ड किनारे दख्योड़ा स्थित गोसदन। सूख चुकी शुक्कर खड्ड के किनारे खामोशी पसरी है, लेकिन सड़क से गुजरते खनन सामग्री से लदे वाहनों का शोर इस सन्नाटे को बार-बार तोड़ देता है। गोसदन में काम कर रहे कुछ लोग नाम बताने से बचते हैं। खनन का जिक्र होते ही पहले सवालों से बचते हैं, फिर एक अधेड़ व्यक्ति मायूसी भरे स्वर में स्वीकार करता है खड्ड से ट्रैक्टर के जरिये रेत-बजरी उठाता हूं.....यह भी गलत है।
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वे कहते हैं कि कभी क्रशर को सप्लाई नहीं दी, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि शुक्कर खड्ड का दायरा समुद्र सा फैल गया है। चारों ओर सिर्फ बंजर जमीन बची है। वह खड्ड किनारे बने अमृत सरोवर की ओर इशारा करता है। कहते हैं कि इस सूखे सरोवर की तरह अब खेती की उम्मीदें भी सूख गई हैं। कुछ ही दूरी पर धान की खेती के लिए बनी पक्की कूहलों तक व्यक्ति ले जाता है। ये कूहलें खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं। एक तरफ से टूट चुकी कूहल और दूसरी ओर मलबे में दबी जल संरचनाएं खनन की कीमत बयां कर रही हैं। खुद को खनन माफिया कहने वाले अधेड़ व्यक्ति की बात एक ही जगह ठहरती है। यह खनन अब रुकना चाहिए।
मोल्डर का सौदा, बदले में रेत-बजरी
शुक्कर खड्ड में धंगोटा से लेकर बड़ाग्रां पंचायत तक महज सात किलोमीटर के दायरे में एक स्क्रीनिंग प्लांट और छह स्टोन क्रशर संचालित हैं। इससे पहले कुछ क्रशर बंद भी हो चुके हैं। वर्ष 2000 के बाद यहां स्टोन क्रशर स्थापित होने का सिलसिला शुरू हुआ, लेकिन पिछले एक–डेढ़ दशक में इनकी संख्या बेकाबू हो गई। अब यहां आठवां स्टोन क्रशर खोलने की तैयारी चल रही है। सबसे गंभीर पहलू यह है कि छोटे स्तर के खननकारी अवैध तरीके से खड्ड से मोल्डर निकालकर क्रशरों को सप्लाई कर रहे हैं और बदले में रेत-बजरी हासिल कर रहे हैं। इससे अवैध खनन को परोक्ष रूप से बढ़ावा मिल रहा है।
यही है असली वजह
-स्टोन क्रशर खोलने के लिए तय किए गए पैरामीटर लचीले
-खड्ड में क्रशरों के बीच न्यूनतम दूरी की कोई शर्त नहीं
-आबादी से 500 मीटर और स्कूल–अस्पताल से एक किमी की दूरी जरूरी
-शुक्कर खड्ड की चौड़ाई कई स्थानों पर एक किलोमीटर तक
-पहले मशीनरी से खनन की अनुमति नहीं थी, लेकिन लाखों रुपये चुका यह भी
कोट्स
महज सात किलोमीटर के दायरे में इतने क्रशर की अनुमति गलत है। क्रशरों का शोर और बोर के जरिये छनाई में इस्तेमाल होने वाला भारी पानी प्रदूषण बढ़ा रहा है।
सिर्फ शुक्कर खड्ड ही नहीं, आसपास के गांवों की बावड़ियां भी सूख गई हैं। सिंचाई और पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। अंधाधुंध खनन ने खेती खत्म कर दी और अब प्रदूषण से लोगों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है।

रजत धीमान निवासी शुक्कर खड्ड

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