कराहते पहाड़: बर्फ पिघलने से धंस रही लाहौल-स्पीति के लिंडूर गांव की जमीन, IIT मंडी के अध्ययन में बड़ा खुलासा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने उपग्रह आधारित अध्ययन में पुष्टि की है कि गांव के नीचे जमी बर्फ यानी पर्माफ्रॉस्ट पिघल रही है, जिससे जमीन कमजोर होकर बैठने लगी है। पढ़ें पूरी खबर...
विस्तार
हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले के लिंडूर गांव में जमीन धंसने का मामला अब केवल आशंका नहीं रहा, बल्कि इसका वैज्ञानिक प्रमाण सामने आ गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने उपग्रह आधारित अध्ययन में पुष्टि की है कि गांव के नीचे जमी बर्फ यानी पर्माफ्रॉस्ट पिघल रही है, जिससे जमीन कमजोर होकर बैठने लगी है। यह शोध प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है।
यह स्थिति हिमालय के अन्य ऊंचाई वाले गांवों के लिए भी चेतावनी है। यदि समय रहते निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किए गए तो भविष्य में ऐसे मामलों का खतरा बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं ने अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 के बीच सेंटिनल-1 उपग्रह के आंकड़ों का विश्लेषण किया। अध्ययन में पाया गया कि लिंडूर गांव के कुछ हिस्सों में जमीन 6.8 से 7.9 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से धंस रही है।
केवल सात महीनों में ही गांव के उत्तर-पूर्वी हिस्से में करीब 16 सेंटीमीटर तक जमीन नीचे चली गई, जो पहाड़ी क्षेत्र के लिए गंभीर चेतावनी मानी जा रही है। लिंडूर गांव समुद्र तल से लगभग 3328 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह इलाका ठंडा रेगिस्तानी क्षेत्र माना जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले 70 वर्षों में यहां का औसत तापमान लगातार बढ़ा है। वर्ष 1950 में औसत तापमान माइनस 8.4 डिग्री सेल्सियस था, जो 2024 तक बढ़कर माइनस 5.87 डिग्री सेल्सियस हो गया। तापमान में यह बढ़ोतरी हर साल लगभग 0.02 डिग्री सेल्सियस की दर से दर्ज की गई है।
तापमान बढ़ने से जमीन के नीचे जमी बर्फ पिघलने लगी है। इससे मिट्टी और पत्थरों का सहारा खत्म हो रहा है और जमीन बैठ रही है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि गांव के आसपास मौजूद रॉक ग्लेशियर और ढीली चट्टानी संरचना इस धंसाव को और तेज कर रही है।
पर्माफ्रॉस्ट जमीन की वह परत है जो कम से कम दो साल या उससे ज्यादा समय तक 0 डिग्री सेल्सियस उससे नीचे के तापमान पर जमी रहती है, जिसमें मिट्टी, चट्टानें और पानी शामिल होते हैं। यह आर्कटिक, अंटार्कटिक और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। लाहौल घाटी में भी तापमान शून्य डिग्री से कम रहता है। इस कारण यह स्थिति यहां बनती है।