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Himachal Pradesh: ब्यास नदी में खतरनाक स्तर पर प्लास्टिक के कण, पारिस्थितिकी जोखिम सूचकांक उच्च स्तर पर

अमर उजाला ब्यूरो, शिमला। Published by: अंकेश डोगरा Updated Mon, 17 Feb 2025 11:07 AM IST
सार

विभिन्न संस्थानों के अध्ययनकर्ताओं ने ब्यास नदी के पानी और तलछट के नमूनों में 300 किलोमीटर के क्षेत्र में माइक्रोप्लास्टिक (एमपी) की मौजूदगी की जांच की। इसका निष्कर्ष पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बढ़ते खतरे की चिंताजनक तस्वीर के रूप में सामने आया है।

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Himachal Pradesh Plastic particles at dangerous levels in Beas river ecological risk index at high level
ब्यास नदी। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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ब्यास नदी में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के खतरनाक स्तर का पता चला है। नदी में प्लास्टिक के कण खतरनाक स्तर पर पहुंच गए हैं। सोने के कणों के लिए मशहूर रही ब्यास नदी पश्चिमी हिमालय में एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है। विभिन्न संस्थानों के अध्ययनकर्ताओं ने नदी के पानी और तलछट के नमूनों में 300 किलोमीटर के क्षेत्र में माइक्रोप्लास्टिक (एमपी) की मौजूदगी की जांच की। इसका निष्कर्ष पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बढ़ते खतरे की चिंताजनक तस्वीर के रूप में सामने आया है।

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इन्वायरनमेंट पॉल्यूशन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि ब्यास नदी में माइक्रोप्लास्टिक व्यापक मात्रा में हैं। पानी के नमूनों में प्रति लीटर 46 से 222 आइटम थे, जबकि तलछट के नमूनों में इससे भी अधिक सांद्रता थी, जो 36 से लेकर चौंका देने वाले 896 आइटम प्रति किलोग्राम तक थे। सबसे अधिक सांद्रता अधिक आबादी वाले और अधिक शहरी गतिविधि वाले क्षेत्रों में पाई गई। कुल्लू शहर मानव गतिविधि और प्रदूषण के स्तर के बीच सीधे संबंध को उजागर करता है। पहचाने गए माइक्रोप्लास्टिक के सबसे आम प्रकार फाइबर थे, जो एक मिमी से छोटे थे और मुख्य रूप से पॉलीइथिलीन से बने थे। यह विभिन्न उत्पादों में इस्तेमाल होने वाला एक आम प्लास्टिक है। इससे पता चला कि कपड़ा अपशिष्ट और प्लास्टिक पैकेजिंग जैसे स्रोत प्रदूषण के बड़े कारक हैं।

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इन्होंने किया शोध अध्ययन
यह शोध अध्ययन कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी स्टैनिस्लास वन यूनिवर्सिटी सर्कल यूएसए के बायोलॉजिकल विज्ञान विभाग से रितिंद्र एन भादुड़ी, एंजेलिना एम ग्युरेरो, सोनजा एल जैक्सन, रसायन विज्ञान विभाग के एल्विन ए एलेमन और पुडुचेरी विश्वविद्यालय के पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के शुभंकर चटर्जी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कमांद (मंडी) के स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज से सौगाता सिन्हा ने संयुक्त रूप से किया।

पारिस्थितिकी जोखिम सूचकांक उच्च स्तर पर 
माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को मापने के अलावा अध्ययन में पर्यावरण के लिए उनके संभावित जोखिमों का भी आकलन किया गया। विभिन्न सूचकांकों का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि समग्र प्रदूषण भार सूचकांक अपेक्षाकृत कम था, लेकिन पॉलिमर खतरा सूचकांक और संभावित पारिस्थितिक जोखिम सूचकांक कुछ स्थानों पर उच्च स्तर पर पहुंच गए। यह जलीय जीवन और संभावित रूप से मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने की एक महत्वपूर्ण क्षमता को इंगित करता है। कई समुदाय पीने के पानी के लिए ब्यास नदी पर निर्भर हैं।
 
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