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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश: नौ साल तक आदेश न मानने पर अफसरों पर 5 लाख जुर्माना, वसूली सचिव से होगी

संवाद न्यूज एजेंसी, शिमला। Published by: अंकेश डोगरा Updated Sat, 20 Dec 2025 06:00 AM IST
सार

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नौ साल पुराने मामले में आदेश लागू न करने पर संबंधित विभाग के अधिकारियों पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। पढ़ें पूरी खबर...

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HP High Court order Officials fined Rs 5 lakh for not complying with the order for nine years
कोर्ट का आदेश
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विस्तार
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों की तामील में देरी करने वाले अधिकारियों को कड़ा संदेश दिया है। नौ साल पुराने मामले में आदेश लागू न करने पर अदालत ने संबंधित विभाग के अधिकारियों पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने कहा कि शुरुआत में बागवानी विभाग के प्रधान सचिव सी पालरासू को यह जुर्माना राशि याचिकाकर्ता को अदा करना होगी। इसके बाद सचिव उन अधिकारियों की पहचान करेंगे, जिनकी लापरवाही से यह देरी हुई और उनसे यह राशि वसूली जाएगी।

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न्यायालय ने इस बात पर नाराजगी जताई कि एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को अपने हक के लिए 2025 के अंत तक इंतजार करना पड़ रहा है। वर्ष 2016 का आदेश 2025 तक लागू नहीं किया गया, जो न्याय प्रणाली का मखौल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों या कर्मचारियों को सामूहिक रूप से जुर्माना भरना होगा। अदालत ने आदेश को लागू करने के लिए सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है।

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अदालत ने यह आदेश गेजम राम बनाम जेसी शर्मा मामले की सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ता गेजम राम को बागवानी विभाग में 1994 में चतुर्थ श्रेणी दैनिक वेतन भोगी के तौर पर नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता ने 2011 में 8 साल पूरी होने के बाद वर्क चार्ज स्टेटस और नियमितीकरण की मांग को लेकर रिट याचिका दायर की। ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता की सेवाओं को 2002 से नियमितीकरण के आदेश दिए, लेकिन विभाग ने इस आदेश की पालना नहीं की। इसके बाद सरकार ने इस आदेश के खिलाफ एलपीए दायर की, जिसे डबल बेंच ने खारिज कर दिया।

याचिकाकर्ता ने आदेश की अनुपालना न करने पर 2016 में अवमानना याचिका दायर की। लेकिन 9 वर्षों के बीत जाने के बाद भी सरकार ने याचिकाकर्ता की सेवाओं को नियमित नहीं किया। याचिकाकर्ता बिना पेंशन के 2016 में सेवानिवृत हो गया। अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने 31 मार्च 2016 को एक आदेश पारित किया था। विभाग को निर्देश दिया गया था कि याचिकाकर्ता की 8 साल की सेवा पूरी होने पर उसे नियमित करने के मामले पर विचार किया जाए और सभी परिणामी लाभ दिए जाएं। यह विवाद केवल 4 साल के सेवा लाभों का था, लेकिन विभाग ने इसे 9 वर्षों से लटकाए रखा।

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