Himachal Pradesh High Court: याचिकाकर्ताओं को 2003 से सहायक वन संरक्षक के पद पर पदोन्नत करने के आदेश
राज्य सरकार को हिमाचल हाईकोर्ट ने एचपीएफएस के पद पर वर्ष 2003 से पदोन्नत करने के आदेश दिए हैं। जानें पूरा मामला...

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं को सहायक वन संरक्षक (एचपीएफएस) के पद पर वर्ष 2003 से पदोन्नत करने के आदेश दिए हैं। वह उस समय से पदोन्नत होंगे, जब से उन्होंने रेंज फॉरेस्ट अधिकारी के रूप में सात साल की सेवा पूरी कर ली थी। अदालत ने कहा कि उस समय हिमाचल प्रदेश वन सेवा क्लास-एक राजपत्रित भर्ती और पदोन्नति नियम 2002 लागू थे। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने याचिकाकर्ताओं को वेतन निर्धारण, बकाया, पेंशन का पुनरीक्षण और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों सहित सभी परिणामी लाभों को भी देने के निर्देश दिए।

न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि याचिकाकर्ताओं ने 1997 से लगातार कानूनी लड़ाई लड़ी है और विभाग ने हर बार उनके पक्ष में आए आदेशों को चुनौती दी है। इससे उनके अधिकारों में देरी हुई। याचिकाकर्ता की उम्र 70 वर्ष से अधिक है। अदालत ने कहा कि कोर्ट के आदेशों को दो महीने के भीतर शीघ्रता से निपटाएं। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने अक्तूबर 2003 में पात्रता प्राप्त कर ली थी और उस समय सामान्य श्रेणी के सहायक वन संरक्षक के 8 पद उपलब्ध थे। न्यायालय ने सरकार के इस तर्क का भी खंडन किया कि याचिकाकर्ताओं ने विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है।
न्यायालय ने पाया कि अन्य व्यक्तियों को भी बिना विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण किए पदोन्नत किया गया था। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश विभागीय परीक्षा नियम 1997 के नियम 23 छूट खंड में 55 वर्ष से अधिक आयु के प्रथम श्रेणी अधिकारियों और 50 वर्ष से अधिक आयु के गैर-राजपत्रित पदोन्नत कर्मचारियों के लिए विभागीय परीक्षा से छूट का प्रावधान है। चूंकि याचिकाकर्ताओं को 2012 में रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर के रूप में पदोन्नत किया गया था। इसलिए उनके पास विभागीय परीक्षाओं की तैयारी और उन्हें उत्तीर्ण करने के लिए बहुत कम समय बचा था।
बता दें कि याचिकाकर्ता पवन शर्मा को 1978 में वन गार्ड के रूप में नियुक्त किया गया था। डिप्टी रेंजर के पद पर सीधी भर्ती न होने पर उन्होंने 1997 में याचिका दायर की, जो 2001 में उनके पक्ष में तय हुई। उसके बाद सरकार इस आदेश के खिलाफ पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट चली गई। 2011 में याचिकाकर्ता को 28 फरवरी 1979 से डिप्टी रेंजर के रूप में नियुक्त किया गया। हालांकि, लंबे समय तक मुकद्दमेबाजी में उलझे रहने के कारण उन्हें पदोन्नत नहीं किया गया, जबकि उनके कई कनिष्ठों को विभागीय परीक्षा पास किए बिना भी पदोन्नत कर दिया गया था।