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Himachal Pradesh: क्लॉड अर्पी बोले- बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा के पुनर्जन्म की घोषणा से चीन परेशान
अमर उजाला ब्यूरो, शिमला।
Published by: अंकेश डोगरा
Updated Sun, 29 Jun 2025 11:10 AM IST
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सार
शनिवार को आरट्रैक शिमला में भारतीय सेना की ओर से आयोजित सेमिनार के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान फ्रांसीसी मूल के लेखक, पत्रकार और तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ क्लॉड अर्पी ने कहा कि तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत में पुनर्जन्म लेंगे, चीन में बिल्कुल नहीं।

शिमला के आरट्रैक में भारत और तिब्बत के बीच साझा विरासत को लेकर आयोजित सेमिनार
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
विस्तार
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा अपने पुनर्जन्म को लेकर जल्द घोषणा करने जा रहे हैं, जिससे चीन बेहद परेशान है। दलाई लामा अपनी पुस्तकों के माध्यम से भी बता चुके हैं कि एक स्वतंत्र देश में उनका पुनर्जन्म होगा और इसकी सबसे अधिक संभावना है कि वह भारत में पुनर्जन्म लेंगे, चीन में बिल्कुल नहीं।
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फ्रांसीसी मूल के लेखक, पत्रकार और तिब्बत मामलों के विशेषज्ञ क्लॉड अर्पी ने यह बात शनिवार को आरट्रैक शिमला में भारतीय सेना की ओर से आयोजित सेमिनार के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही। सेमिनार का विषय था ‘साझा भारत-तिब्बती विरासत की अंतरसंबंधित जड़ें‘। अर्पी ने कहा कि दलाई लामा पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका पुनर्जन्म चीन में नहीं होगा और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अगर इस आध्यात्मिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोशिश करती है तो यह अस्वीकार्य होगी। दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के मौके पर 2 से 4 जुलाई तक धर्मशाला में तीन दिवसीय सम्मेलन होगा।
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सम्मेलन के समापन पर दलाई लामा पुनर्जन्म को लेकर अपना बहुप्रतीक्षित वक्तव्य दे सकते हैं। अर्पी ने याद दिलाया कि 2011 में भी धर्मशाला में दलाई लामा ने पुनर्जन्म की परंपरा की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह प्रक्रिया किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रहनी चाहिए। दलाई लामा ने कहा था कि जब वह 90 वर्ष के होंगे, तब वह स्पष्ट रूप से बताएंगे कि क्या वह पुनर्जन्म लेंगे या नहीं। उन्होंने कहा कि 2007 में चीन एक ऐसा कानून लाया, जिसमें कहा गया कि पुनर्जन्म के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति आवश्यक होगी। यह न तो आध्यात्मिक है और न ही धार्मिक। दलाई लामा कई बार यह बात सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि अगर बीजिंग की ओर से भविष्य का दलाई लामा घोषित किया जाता है, तो उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
भारतीय सेना अब सीमाओं की रक्षा अपने पराक्रम के साथ ऐतिहासिक समझ के साथ करेगी। इसी कड़ी में भारत और तिब्बत के बीच साझा विरासत और रणनीतिक समझ पर शनिवार को शिमला में सेमिनार हुआ। भारतीय सेना मध्य कमान की ओर से आरट्रैक में सेमिनार में सेना और आईटीबीपी के अधिकारियों सहित विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में भारत और तिब्बत के बीच सभ्यता पर आधारित पुरातन संबंधों की समीक्षा के आधार पर वर्तमान समय में सीमा प्रबंधन के लिए विद्वानों, रणनीतिकारों और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने चर्चा की।
कार्यक्रम की शुरुआत में सेंट्रल कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता नेने राष्ट्रीय रणनीति में सांस्कृतिक कूटनीति के महत्व पर जोर दिया और भारत की क्षेत्रीय और सभ्यता पर आधारित अखंडता बनाए रखने के लिए सेना के प्रयासों की जानकारी दी। सेना रक्षा और विकास दोनों अग्रिम मोर्चों पर काम कर रही है। डॉ. अपर्णा नेगी ने शिपकी-ला सहित अन्य पारंपरिक व्यापार मार्गों की वर्तमान प्रासंगिकता पर चर्चा की। मेजर जनरल जी जयशंकर (सेवानिवृत्त) की अगुवाई में हुई पैनल चर्चा में चीन की ग्रे-जोन रणनीतियों, भारत के सीमा सिद्धांत, मनोवैज्ञानिक, सूचना युद्ध व कूटनीतिक समन्वय पर चर्चा हुई। पैनलिस्ट में लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला (सेवानिवृत्त), डॉ अमृता जश, डॉ. दत्तेश डी परुलेकर, अंतरा घोषाल सिंह और राजदूत अशोक के कंठ शामिल रहे। समापन भाषण में उत्तर भारत क्षेत्र के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल डीजी मिश्रा ने सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा में सांस्कृतिक महत्व को रणनीतिक दूरदर्शिता के साथ जोड़कर आगे बढ़ने पर बल दिया।