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Una News: मधु ने मशरूम की खेती से बदली जीवन की दिशा
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मशरूम उत्पादक मधुबाला। संवाद
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स्पर्श शर्मा
नंदपुर (ऊना)। ठठल पंचायत के वार्ड तीन की गलियों में आज 35 वर्षीय मधु बाला की मेहनत रंग ला रही है। साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली मधु बाला ने अपने मजबूत इरादों और सरकारी योजनाओं के सही उपयोग से मशरूम की खेती को न केवल आजीविका का साधन बनाया, बल्कि इसे आत्मसम्मान और पहचान का जरिया भी बना दिया।
मधु बाला का परिवार खेती और निजी नौकरी पर निर्भर था, लेकिन सीमित आय के कारण घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। पहले की आमदनी इतनी कम थी कि घरेलू जरूरतें पूरी करना भी चुनौती बन जाता था। इसी दौरान उन्होंने कुछ नया करने का निर्णय लिया, ऐसा काम जो घर से जुड़ा हो, सीखने योग्य हो और भविष्य में स्थायी आमदनी दे सके।
मधु बाला स्वयं सहायता समूह ‘हरि ओम’ से जुड़ीं और यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। वर्ष 2024 में उन्होंने मशरूम की खेती की शुरुआत की। महिलाओं को कुछ नया सिखाने और आय का स्थायी स्रोत देने की सोच ने उन्हें प्रेरित किया। उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, आजीविका मिशन और उद्यान विभाग से प्रशिक्षण मिला।
प्रशिक्षण के बाद प्राप्त प्रमाण पत्र ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया। शुरुआत आसान नहीं थी। जगह की कमी, बिजली की समस्या और तकनीकी जानकारी का अभाव बड़ी चुनौतियां थीं। समाज की ओर से ताने भी सुनने पड़े, लेकिन मधु बाला डटी रहीं। आज वह एक चक्र में 60 बैग मशरूम और करीब 10 किलो उत्पादन कर रही हैं। 180 रुपये प्रति किलो की दर से बिकने वाले मशरूम से उन्हें लगभग 7,000 रुपये मासिक आय हो रही है, जो पहले की तुलना में बड़ा बदलाव है।
मधु बाला की सफलता केवल उनकी खुद की नहीं है। उनके प्रयासों से गांव की 10-12 महिलाएं भी मशरूम उत्पादन से जुड़ चुकी हैं। आज गांव की महिलाएं उन्हें प्रेरणा के रूप में देखती हैं। मधु बाला भावुक होकर कहती हैं, मशरूम की खेती ने मुझे आत्मसम्मान दिया। अब मैं घर खर्च में योगदान देती हूं और अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने का हौसला देती हूं।
ठठल पंचायत के उपप्रधान रोहित बाली मधु बाला की सराहना करते हुए कहते हैं -मधु बाला जैसी महिलाएं पंचायत की ताकत हैं। उन्होंने साबित किया है कि सरकारी योजनाओं का सही इस्तेमाल कर महिलाएं स्वरोजगार की मिसाल बन सकती हैं। पंचायत स्तर पर ऐसे प्रयासों को पूरा सहयोग दिया जाएगा। संवाद
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नंदपुर (ऊना)। ठठल पंचायत के वार्ड तीन की गलियों में आज 35 वर्षीय मधु बाला की मेहनत रंग ला रही है। साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाली मधु बाला ने अपने मजबूत इरादों और सरकारी योजनाओं के सही उपयोग से मशरूम की खेती को न केवल आजीविका का साधन बनाया, बल्कि इसे आत्मसम्मान और पहचान का जरिया भी बना दिया।
मधु बाला का परिवार खेती और निजी नौकरी पर निर्भर था, लेकिन सीमित आय के कारण घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। पहले की आमदनी इतनी कम थी कि घरेलू जरूरतें पूरी करना भी चुनौती बन जाता था। इसी दौरान उन्होंने कुछ नया करने का निर्णय लिया, ऐसा काम जो घर से जुड़ा हो, सीखने योग्य हो और भविष्य में स्थायी आमदनी दे सके।
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मधु बाला स्वयं सहायता समूह ‘हरि ओम’ से जुड़ीं और यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। वर्ष 2024 में उन्होंने मशरूम की खेती की शुरुआत की। महिलाओं को कुछ नया सिखाने और आय का स्थायी स्रोत देने की सोच ने उन्हें प्रेरित किया। उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, आजीविका मिशन और उद्यान विभाग से प्रशिक्षण मिला।
प्रशिक्षण के बाद प्राप्त प्रमाण पत्र ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया। शुरुआत आसान नहीं थी। जगह की कमी, बिजली की समस्या और तकनीकी जानकारी का अभाव बड़ी चुनौतियां थीं। समाज की ओर से ताने भी सुनने पड़े, लेकिन मधु बाला डटी रहीं। आज वह एक चक्र में 60 बैग मशरूम और करीब 10 किलो उत्पादन कर रही हैं। 180 रुपये प्रति किलो की दर से बिकने वाले मशरूम से उन्हें लगभग 7,000 रुपये मासिक आय हो रही है, जो पहले की तुलना में बड़ा बदलाव है।
मधु बाला की सफलता केवल उनकी खुद की नहीं है। उनके प्रयासों से गांव की 10-12 महिलाएं भी मशरूम उत्पादन से जुड़ चुकी हैं। आज गांव की महिलाएं उन्हें प्रेरणा के रूप में देखती हैं। मधु बाला भावुक होकर कहती हैं, मशरूम की खेती ने मुझे आत्मसम्मान दिया। अब मैं घर खर्च में योगदान देती हूं और अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने का हौसला देती हूं।
ठठल पंचायत के उपप्रधान रोहित बाली मधु बाला की सराहना करते हुए कहते हैं -मधु बाला जैसी महिलाएं पंचायत की ताकत हैं। उन्होंने साबित किया है कि सरकारी योजनाओं का सही इस्तेमाल कर महिलाएं स्वरोजगार की मिसाल बन सकती हैं। पंचायत स्तर पर ऐसे प्रयासों को पूरा सहयोग दिया जाएगा। संवाद