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Malegaon Blast: हाईकोर्ट पहुंचे मालेगांव विस्फोट के पीड़ित परिजन, बरी सातों लोगों और एनआईए को नोटिस जारी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मुंबई Published by: नितिन गौतम Updated Thu, 18 Sep 2025 01:07 PM IST
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सार

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विशेष एनआईए अदालत द्वारा 31 जुलाई को पारित आदेश, जिसमें सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया, वह गलत और कानून की दृष्टि से भी गलत था और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।

2008 Malegaon blast High court issues notice to NIA seven acquitted persons on appeal by victims families
बॉम्बे हाईकोर्ट। - फोटो : ANI
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विस्तार
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बॉम्बे उच्च न्यायालय ने गुरुवार को साल 2008 के मालेगांव विस्फोट के पीड़ित परिजनों की याचिका पर एनआईए और इस मामले में बरी किए गए सातों लोगों को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अंखड़ की पीठ ने अभियोजन पक्ष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और महाराष्ट्र सरकार को भी नोटिस जारी किए। अपील पर सुनवाई छह सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।
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'दोषपूर्ण जांच आरोपियों को रिहा करने का आधार नहीं हो सकती'
मालेगांव विस्फोट में मारे गए छह लोगों के परिजनों ने आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद राजपुरोहित सहित मामले के सात आरोपियों को बरी किए जाने के अदालत के फैसले को चुनौती दी गई है। पिछले सप्ताह दायर की गई याचिका में दावा किया गया है कि दोषपूर्ण जांच या जांच में खामियां आरोपियों को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं। याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि साजिश गुप्त रूप से रची गई थी और इसलिए इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता।
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आरोपियों की रिहाई रद्द करने की मांग
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विशेष एनआईए अदालत द्वारा 31 जुलाई को पारित आदेश, जिसमें सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया, वह गलत और कानून की दृष्टि से भी गलत था और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर, 2008 को, महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और 101 अन्य घायल हो गए थे। अपील में कहा गया है कि निचली अदालत के न्यायाधीश को आपराधिक मुकदमे में 'डाकिया या मूकदर्शक' की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। जब अभियोजन पक्ष तथ्य उजागर करने में विफल रहता है, तो निचली अदालत प्रश्न पूछ सकती है और गवाहों को बुला सकती है।

अपील में कहा गया है, 'दुर्भाग्य से निचली अदालत ने केवल एक डाकघर की तरह काम किया है और अभियुक्तों को लाभ पहुंचाने के लिए एक गलत अभियोजन की अनुमति दी।' राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा मामले की जांच और सुनवाई के तरीके पर भी चिंता जताई गई और आरोपियों को दोषी ठहराने की मांग की गई है।

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याचिका में एनआईए पर लगाए गए आरोप
अपील में कहा गया है कि राज्य के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने सात लोगों को गिरफ्तार करके एक बड़ी साज़िश का पर्दाफाश किया था। इसमें दावा किया गया है कि एनआईए ने मामला अपने हाथ में लेने के बाद आरोपियों के खिलाफ आरोपों को कमजोर कर दिया। एनआईए अदालत ने अपने फैसले में अभियोजन पक्ष के मामले और की गई जांच में कई खामियों को उजागर किया था और कहा था कि आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित के अलावा मालेगांव विस्फोट मामले के अन्य आरोपियों में मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे।


 
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