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SC: 'जो भी देश के लिए कर सकता था वो किया, इस संतुष्टि के साथ जा रहा', आखिरी कार्यदिवस पर भावुक हुए सीजेआई गवई

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 21 Nov 2025 04:25 PM IST
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Leaving with contentment having done what I could do for nation, says outgoing CJI B R Gavai
जस्टिस बीआर गवई - फोटो : PTI
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भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने शुक्रवार को कहा कि वह लगभग चार दशक लंबे अपने कानूनी और न्यायिक सफर के अंत में पूरे संतोष और तृप्ति के साथ 'न्याय के छात्र' के तौर पर इस संस्था को छोड़ रहे हैं। गौरतलब है कि सीजेआई गवई का सुप्रीम कोर्ट में आज आखिरी दिन था। वे इस दौरान विदाई समारोह के लिए गठित बेंच के साथ कार्यवाही पर बैठते हुए भावुक नजर आए। इस बेंच में उनके साथ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विनोद चंद्रन मौजूद थे। 
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सीजेआई गवई ने कहा, “आप सभी को सुनने के बाद, खासकर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और कपिल सिब्बल की कविताएं और आप सभी की गर्मजोशी से भरी भावनाएं सुनकर मेरी आवाज थम-सी गई है।” उन्होंने कहा, “जब मैं इस अदालत कक्ष से आखिरी बार बाहर जाऊंगा... मैं इस अनुभूति के साथ जाऊंगा कि मैंने इस देश के लिए जो कुछ कर सकता था, वह किया। धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद।”
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कार्यवाही के दौरान साथी जजों ने सीजेआई गवई के योगदान को याद किया। बता दें कि गवई जस्टिस केजी बालकृष्णन के बाद दूसरे दलित और पहले बौद्ध सीजेआई हैं। गवई ने कहा, “मैं हमेशा मानता हूं कि हमारा संविधान समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है, और मैंने अपनी जिम्मेदारियां इन्हीं चार दीवारों के भीतर रहकर निभाईं।”

इस साल 14 मई को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद की शपथ लेने वाले गवई 23 नवंबर 2025 को पद छोड़ देंगे और शुक्रवार उनका अंतिम कार्यदिवस था। अपने सफर को याद करते हुए उन्होंने कहा, “1985 में जब मैंने पेशे में प्रवेश किया, तब मैं कानून की पढ़ाई के लिए विद्यालय में आया था। आज जब मैं पद छोड़ रहा हूं, तो ‘न्याय का विद्यार्थी’ बनकर जा रहा हूं।” उन्होंने वकील, हाईकोर्ट के जज, सुप्रीम कोर्ट के जज और आखिरकार चीफ जस्टिस के पद तक की अपनी 40 वर्ष से ज्यादा की यात्रा को संतोषजनक बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी लोक पद को शक्ति का केंद्र न मानकर समाज और राष्ट्र की सेवा का अवसर समझना चाहिए।

डॉ. बीआर आंबेडकर के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और अपने पिता, जो बाबासाहेब के करीबी सहयोगी थे, का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी न्यायिक विचारधारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के प्रति आंबेडकर की प्रतिबद्धता से आकार लेती रही। उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया।”

पर्यावरण मामलों के प्रति अपने झुकाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे लंबे समय से पर्यावरण, पारिस्थितिकी और वन्यजीव मुद्दों से जुड़े रहे हैं और उन्होंने हमेशा नागरिकों के अधिकारों तथा पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट के प्रशासन पर उन्होंने कहा, “सीजेआई के रूप में लिए सभी निर्णय सामूहिक रूप से लिए गए। हम एक संस्था की तरह कार्य करें, यही मेरी धारणा रही।”

सहयोगियों ने भी याद किए साथ काम करने के अनुभव
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “वे मेरे लिए केवल सहकर्मी नहीं, भाई और विश्वासपात्र हैं। बेहद ईमानदार व्यक्ति।” उन्होंने बताया कि गवई मामलों को धीरज और गरिमा के साथ संभालते थे और युवा वकीलों को प्रोत्साहित करते थे। दूसरी तरफ भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने ‘भूषण’ शब्द के मराठी अर्थ आभूषण का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका को ‘सुशोभित’ किया है। दरअसल, बीआर गवई का पूरा नाम भूषण रामकृष्ण गवई है। उनके साथ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गवई की सादगी की तारीफ करते हुए कहा कि वे कभी नहीं बदले। 

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने गवई की सादगी का उदाहरण देते हुए बताया कि वे अक्सर कहते थे कि अपने गांव में उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता नहीं। उन्होंने सीजेआई के कथन का जिक्र करते हुए कहा, “अगर कोई मुझे मेरे ही गांव में मार देता है, तो मैं जीने का अधिकारी नहीं।” उधर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनका सफर इस देश में हुए जबरदस्त सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है, और यह भी कि कोई व्यक्ति न्यायपालिका के शीर्ष पद तक पहुंचकर भी सामान्य नागरिक जितना सरल रह सकता है।

ऐसा रहा है वकालत-न्यायाधीश के तौर पर गवई का सफर
उन्होंने 16 मार्च 1985 को बार में प्रवेश किया और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में कार्य किया। बाद में वे 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त हुए। 12 नवम्बर 2005 को उन्हें स्थायी जज के तौर पर नियुक्ति मिली। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
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