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सभी हाईकोर्ट में बढ़ रहे हैं गर्भपात की इजाजत मांगने के मामले, एक रिपोर्ट में दावा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Jeet Kumar
Updated Wed, 23 Sep 2020 04:59 AM IST
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : Twitter
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एक रिपोर्ट में मंगलवार को दावा किया गया कि देश भर के हाईकोर्ट में गर्भपात के लिए इजाजत मांगने वाले मामले लगातार बढ़ रहे है।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक साल के दौरान सभी 14 हाईकोर्ट में अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए 243 महिलाओं ने गर्भपात की इजाजत दिए जाने की याचिका दाखिल की गई, जिनमें से 84 फीसदी मामलों में न्यायपालिका ने याची महिलाओं को गर्भ गिराने की इजाजत दे दी।
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‘असेसिंग द ज्युडिशियरी रोल इन एक्सेस टू सेफ अबॉर्शन-2’ रिपोर्ट में हाईकोर्ट में मई 2019 से अगस्त 2020 के बीच गर्भपात की इजाजत मांगने के लिए दाखिल की गई याचिकाओं का आकलन किया गया है।
यह रिपोर्ट भारत में महिला अधिकारों के संरक्षण और उनकी सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच बनाने के लिए काम करने वाले करीब 100 से ज्यादा व्यक्तियों और संगठनों के नेटवर्क प्रतिज्ञा ने तैयार की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट के सामने आए 243 मामलों में से 74 फीसदी ने भ्रूण परिपक्व होने की 20 सप्ताह यानी 5 महीने की अवधि पूरी होने के बाद उसे नष्ट कराने की इजाजत मांगी थी। लेकिन 23 फीसदी मामलों में 20 सप्ताह के अंदर ही यह याचिका दाखिल कर दी गई थी और इन मामलों में गर्भपात की इजाजत के लिए अदालत से इजाजत मांगने की आवश्यकता ही नहीं थी।
रिपोर्ट की लेखक अनुभा रस्तोगी का दावा है कि गर्भपात की कानूनी इजाजत मांगने के लिए बढ़ती याचिकाएं इस बात का सबूत हैं कि देश में सुरक्षित और कानूनी गर्भपात सेवा की आवश्यकता है।
रिपोर्ट को लांच करते समय प्रतिज्ञा अभियान के सलाहकार समूह के सदस्य वीएस चंद्रशेखर ने कहा, एमटीपी कानून 20 सप्ताह तक गर्भपात की इजाजत देता है। 20 सप्ताह से कम के मामलों की ज्यादातार संख्या यौन शोषण पीड़ितों की है और इससे केवल उनका मानसिक सदमा ही बढ़ता है।
उन्होंने लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में पहुंच चुके मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमेंडमेंट) बिल, 2020 में गर्भ विसंगतियों के लिए 20 सप्ताह की अवधि की सीमा हटाने की प्रशंसा करते हुए ऐसी ही छूट यौन शोषण या दुष्कर्म की शिकार महिलाओं के लिए भी देने की मांग की है।
दुष्कर्म से जुड़े थे 29 फीसदी मामले
रिपोर्ट के मुताबिक, भ्रूण परिपक्व होने के बाद यानी 20 सप्ताह पूरे होने पर दाखिल की गई 74 फीसदी याचिकाओं में से 29 फीसदी मामले दुष्कर्म या यौन शोषण के कारण गर्भधारण करने से जुड़े हुए थे, जबकि 42 फीसदी मामले भ्रूण विसंगतियों से जुड़े हुए थे।
भ्रूण परिपक्व होने से पहले के 23 फीसदी मामलों में से 18 फीसदी हिस्सेदारी दुष्कर्म या यौन शोषण के कारण ठहरे गर्भ से जुड़ा हुआ था, जबकि भ्रूण विसंगति के मामले में महज 6 फीसदी थी।