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Farm Laws Repeal Bill: कृषि कानूनों को खत्म करने के लिए सोमवार को पेश होगा विधेयक, पार्टियों ने सांसदों के लिए जारी किया व्हिप

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली। Published by: प्रतिभा ज्योति Updated Sat, 27 Nov 2021 07:30 PM IST
सार

कैबिनेट मीटिंग में तीनों कानून को वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद अब इसके लिए एक विधेयक सोमवार को सदन में पेश करने की तैयारी है। सत्ताधारी दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने यह सुनिश्चित किया है सोमवार को उनके सभी सांसद सदन में मौजूद रहें। 

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agriculture minister narendra singh tomar to table farm laws repeal bill in Lok Sabha on Nov 29, bjp and congress  issued whip for mps
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (फाइल फोटो) - फोटो : ANI
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विस्तार
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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को तीनों विवादस्पद कृषि कानून को खत्म करने की घोषणा की थी। उसके बाद सरकार इस कानून को समाप्त करने के लिए विधेयक ला रही है। सोमवार से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पहले दिन इस विधेयक को पेश किया जाएगा। लोकसभा की वेबसाइट पर कार्यसूची में यह उल्लेख किया गया है कि नरेंद्र सिंह तोमर तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विधेयक पेश करेंगे।

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कृषि मंत्री आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए भी विधेयक पेश करेंगे। बताया जा रहा है कि इस विधेयक में कहा गया है कि इन कानूनों के खिलाफ "किसानों का केवल एक छोटा समूह विरोध कर रहा है", समावेशी विकास के लिए सभी को साथ लेकर चलना समय की मांग है।
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विपक्ष ने की तैयारी
सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने सांसदों को उस दिन उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है। चूंकि विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर घेरने की योजना बना रही है, इसलिए कांग्रेस ने भी इसके लिए चाक-चौबंद रणनीति बनाई है और ज्यादा से ज्यादा सांसदों को बहस में हिस्सा लेने को कहा गया है। इसी तरह टीएमसी और सपा के भी सांसद सरकार पर हमले के लिए पूरी तैयारी करके बैठे हैं।  

दूसरी तरफ किसानों ने एमएसपी के गारंटी कानून लागू नहीं होने तक अपने आंदोलन को जारी रखने का फैसला किया है। किसान संगठनों ने कहा है कि हमने 29 नवंबर को संसद तक होने वाली ट्रैक्टर मार्च को स्थगित कर दिया है लेकिन अपना आंदोलन जारी रखेंगे। किसानों ने मांगे माने जाने के लिए सरकार को चार दिसंबर तक का समय दिया है।

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पीएम मोदी और अमित शाह - फोटो : पीटीआई
किसानों का भरोसा जीतने के लिए पहले ही दिन विधेयक ला रही सरकार
पीएम की घोषणा के बाद तीनों कृषि कानून को रद्द करने के लिए सरकार की सक्रियता दरअसल आगामी पांच राज्यों में होने वाले चुनाव को लेकर है। जिस वजह से यह कानून खत्म होने का फैसला किया गया, उसी वजह से जल्द से जल्द इसकी प्रक्रिया भी पूरी की जा रही है। सरकार की कोशिश है कि जल्दी इस प्रक्रिया को पूरी कर ली जाए ताकि किसानों का भरोसा जीत जा सके।

दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी नहीं चाहता कि अब इस मामले में देरी हो, क्योंकि ऐसा होने से तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने के फैसले का वो असर नहीं होगा जिसकी पार्टी को उम्मीद है। हालांकि जानकार बताते पीएम की घोषणा के बाद भी किसानों का आंदोलन जारी है इसलिए जिस मंशा से सरकार ने इन कानूनों को वापस लिया उसका वैसा प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है।

क्या सरकार ने सियासी नुकसान के डर से कृषि सुधार से मुंह मोड़ लिया?  
भाजपा और सरकार को लंबे समय से कवर करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक मोदी सरकार किसानों के अविश्वास को दूर करने में कामयाब हुई या नहीं यह तो केवल विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। यदि कृषि कानून मूल रूप से कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए था जैसा कि कई मंत्रियों ने बार-बार कहा है, तो हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि मोदी सरकार ने सियासी नुकसान के डर से इस सुधार से मुंह मोड़ लिया है। तो क्या इसी तरह क्रिप्टोकरेंसी या व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानूनों पर भी सरकार यू-टर्न करेगी? 

 

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गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का एक साल - फोटो : Agency
तीन कृषि कानून क्या है जो निरस्त होंगे

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून 2020

2. कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 

इन्हीं कानूनों को लागू करने के लिए जून 2020 में मोदी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई थी। किसानों ने तभी से सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध किया और किसान आंदोलन शुरू हो गया। इसकी शुरुआत पहले पंजाब से हुई जो फैलते हुए हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक पहुंच गई। शुक्रवार को इस आंदोलन ने एक साल पूरा कर लिया। माना जा रहा है कि किसानों का यह आंदोलन ऐतिहासिक रहा और आगामी विधानसभा चुनावों में भारी सियासी नुकसान के डर से सरकार कानूनों को वापस लेने पर बाध्य हुई। 
 

 
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