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Pollution: क्या वायु प्रदूषण से मुक्ति पाना संभव है? सर्वोच्च न्यायालय की फटकार से जागेंगी एजेंसियां?

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Mon, 01 Dec 2025 06:53 PM IST
सार

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराना आसान है। विशेषकर यह देखते हुए कि वे अपना बचाव करने के लिए अदालत के सामने उपस्थित नहीं हैं।

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is it possible to get rid of air pollution? Will the Supreme Court's rebuke wake up agencies?
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : ANI
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विस्तार
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सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए किसानों द्वारा पराली जलाने की घटनाओं को अकेला जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि कोविड के दौरान किसान पराली जला रहे थे, लेकिन इसके बाद भी आसमान साफ था और रात में तारे देखे जा सकते थे। अदालत ने एजेंसियों को एक सप्ताह में प्रदूषण को समाप्त करने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक रणनीति पेश करने का आदेश दिया है।

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सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदूषण के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहराना आसान है। विशेषकर यह देखते हुए कि वे अपना बचाव करने के लिए अदालत के सामने उपस्थित नहीं हैं। पिछली सुनवाई के दौरान भी  अदालत ने कहा था कि प्रदूषण को दूर करने के लिए जादुई उपाय नहीं हो सकते, लेकिन विशेषज्ञों के द्वारा सुझाए गए ठोस उपायों पर विश्वास करना होगा।    
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अदालत के कड़े रुख ने यह साफ कर दिया है कि अब प्रदूषण के मामले पर दिखावटी उपायों से काम नहीं चलेगा। इसके लिए ठोस उपाय करने होंगे जिसके परिणाम सामने दिखाई देने चाहिए। बड़ा प्रश्न है कि क्या अदालत के कड़े रुख के बाद एजेंसियां जागेगी? ऐसे क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं जिससे दिल्ली-एनसीआर सहित देश के तमाम इलाकों को प्रदूषण से बचाया जा सके?

दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि डॉक्टर शहर छोड़ने की सलाह दे रहे हैं। गर्भस्थ शिशुओं के अपरिपक्व जन्म होने और यहां पल रहे बच्चों की दिमागी क्षमता कम होने के खतरे पैदा हो गए हैं। मुंबई जैसे शहर जो समुद्र के किनारे बसे हैं, वहां भी प्रदूषण का गंभीर स्तर दुनिया के सामने गंभीर चेतावनी है।   

दिल्ली के प्रदूषण में किसका कितना हिस्सा
दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में वाहनों का धुआं, सड़कों पर वाहनों के चलने और निर्माण कार्यों के दौरान पैदा होने वाली धूल, पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली, विवाह या अन्य समारोहों में जलाए जाने वाले पटाखे, राजधानी और आसपास की एरिया में चलने वाली औद्योगिक इकाइयों से होने वाला प्रदूषण प्रमुख हैं। समय और मौसम की परिस्थितियों से प्रदूषण के कारकों और इनकी हिस्सेदारी कम-अधिक होती रहती है, लेकिन प्रदूषण के प्रमुख कारकों के रूप में इन्हीं को जिम्मेदार माना जाता है। 

क्या विकल्प पेश करेगी सरकार 
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया है कि कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट दिल्ली और आसपास की एरिया में होने वाले प्रदूषण पर जानकारी एकत्र कर रहा है। वह प्रदूषण से निपटने के लिए विभिन्न उपायों पर भी विचार कर रहा है। इसमें प्रदूषण से निपटने के  तात्कालिक और दीर्घकालिक उपाय शामिल हैं। बाद में इन उपायों की एक जानकारी अदालत के सामने पेश की जा सकती है। 

क्या कदम उठा सकती है सरकार 
प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए अब तक पुराने पेट्रोल-डीजल वाहनों को सड़कों पर उतरने से रोकने, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने, सड़कों पर जल छिड़काव करने, निर्माण गतिविधियों को रोकने और स्कूलों-कार्यालयों को खोलने की अवधि सीमित करने जैसे उपाय आजमाए जाते हैं। औद्योगिक इकाइयों को भी सीमित अवधि के लिए बंद कर दिया जाता है। लेकिन व्यवहार में यही देखा गया है कि इन उपायों से प्रदूषण पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ता। इन गतिविधियों को सीमित करने के बाद भी लोगों को गंभीर प्रदूषण का सामना करना ही पड़ता है।

सरकार समझती है कि औद्योगिक इकाइयों को लंबे समय तक के लिए ठप नहीं किया जा सकता। इन उपायों के अपनाने से ऑटो-रिक्शा चालकों, निर्माण श्रमिकों की आजीविका पर नकारात्मक असर भी पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में सरकार के लिए कोई बड़ा क्रांतिकारी बदलाव कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। प्रश्न है कि ऐसे में सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए क्या उपाय कर सकती है?  

दीर्घकालिक रणनीति अपनाने की आवश्यकता
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'क्लाइमेट एक्शन लीडरशिप अवॉर्ड 2025' से सम्मानित किए गए पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. विनोद प्रसाद जुगलान ने अमर उजाला से कहा कि अब तक सरकारों के सभी उपाय प्रदूषण को समाप्त करने में असफल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यही रहा है कि सरकारें अस्थाई या दिखावटी उपाय अपनाती हैं, जिसका अपेक्षित असर नहीं होता। 

जनता को बनाएं हिस्सेदार
पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा असर जनता पर पड़ता है। जब तक जनता को इसके प्रति जागरूक नहीं बनाया जाएगा, उसे इस बीमारी को समूल नाश करने के प्रयास में गंभीरतापूर्वक शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक ऐसे उपाय प्रदूषण को समाप्त करने में सफल नहीं हो सकते। यदि देश की कुछ एजेंसियों के कुछ कर्मचारी प्रदूषण को कम करने के उपाय करेंगे, और देश के 140 करोड़ लोग प्रदूषण करने वाले कार्य करेंगे तो इसका परिणाम वही होगा जो आज हो रहा है। प्रदूषण की स्थिति बद से बदतर होती जाएगी। 

डॉ. विनोद प्रसाद जुगलान ने कहा कि पर्यावरण का सबसे बड़ा कारण ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत हैं। जब तक ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत जैसे सौर ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता, प्रदूषण से मुक्ति मिलना संभव नहीं है। हाइड्रोजन और नाभिकीय ऊर्जा बड़े कार्यों के लिए भारी ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं, जबकि घरेलू और छोटे स्तर के औद्योगिक कार्यों के लिए सौर ऊर्जा बेहतर उपाय हो सकती है।                  

हर बस में लगे एयर प्यूरीफायर
सड़कों पर हर व्यस्त चौराहे पर फव्वारा लगाना, सभी ऊंची बिल्डिंग पर स्मॉग गन लगाना, सड़कों के किनारे पाइप लाइन के द्वारा स्थाई छिड़काव की व्यवस्था बड़े बदलाव का कारण बन सकती है। अभी ऐसी कारों की कल्पना की जा रही है जो हाइड्रोजन से चलें और अपने पीछे धुआं नहीं, बल्कि भाप छोड़ें जो वातावरण को गंदा नहीं, बल्कि साफ करती हैं। इसी तरह सभी बसों के ऊपर अनिवार्य रूप से एयर प्यूरीफायर लगाना शहर को साफ करने की दिशा में बड़ा बदलाव हो सकता है।   

प्लास्टिक और पॉलिथीन प्रदूषण के बड़े कारक हैं। इन्हें जलाने से हानिकारक गैसें निकलती हैं जो पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। लेकिन प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का कोई भी कार्य अब तक प्रभावी नहीं हो पाया है। लोगों को इसका विकल्प देते हुए पॉलिथीन पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। 

व्यवहार में उतारने की आवश्यकता
प्रदूषण से मुक्ति के लिए अब भारत जैसे देशों को भी यह समझना होगा कि यदि अमेरिका और यूरोपीय देश अपने नागरिकों को साफ-स्वच्छ वातावरण उपलब्ध करा सकते हैं तो वे क्यों नहीं? इसके लिए उन आदर्शों को भी व्यवहार में लाना होगा जो यूरोपीय देशों में पाए जाते हैं। यदि वहां के राष्ट्राध्यक्ष और बड़े अधिकारी साइकिल चलाते, सार्वजनिक वाहनों से चलते हुए देखे जा सकते हैं तो यह हमारे यहां क्यों नहीं हो सकता? 

सार्वजनिक वाहनों के उपयोग को एक नैतिक जिम्मेदारी के तौर पर विकसित करना होगा। यदि समाज का एक वर्ग कारों में चलने को अपनी शान-शौकत की तरह पेश करेगा तो इससे दूसरे लोग भी निजी वाहन रखने के लिए प्रेरित होंगे। ऐसे में देश-समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करने के लिए समाज के ही बड़े लोगों को सामने आना होगा और उन्हें एक मिसाल पेश करनी होगी।  


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