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'न सिर्फ बनाएं, बल्कि दुनिया को बेचें': वायुसेना उपप्रमुख की निजी सेक्टर को सलाह- निचले क्षेत्रों पर दें ध्यान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Mon, 01 Dec 2025 06:31 PM IST
सार
VCAS Air Marshal Narmdeshwar Tiwari: भारतीय वायुसेना के उप प्रमुख एयर मार्शल नरमदेश्वर तिवारी ने सोमवार को रक्षा क्षेत्र से जुड़ी निजी कंपनियों को सलाह दी कि वे बहुत सारे क्षेत्रों में काम करने के बजाय सिर्फ उन विशेष क्षेत्रों पर ध्यान दें, जिनमें उनकी असली ताकत है।
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वायुसेना उपप्रमुख का निजी सेक्टर को सलाह
- फोटो : अमर उजाला ग्राफिक्स
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विस्तार
भारतीय वायुसेना के उप प्रमुख एयर मार्शल नरमदेश्वर तिवारी ने देश की निजी रक्षा उद्योग कंपनियों को सलाह दी है कि वे अपने काम को बहुत ज्यादा फैलाने के बजाय 'निश' यानी विशिष्ट क्षेत्रों पर फोकस करें, जहां उनकी असली ताकत है। दिल्ली में आयोजित एक सेमिनार में बोलते हुए उन्होंने कहा कि रक्षा निर्माण में लंबी योजना और विशेषज्ञता की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'बहुत सारे क्षेत्रों में हाथ डालने की कोशिश करने से ध्यान बंट जाता है और किसी एक दिशा में ठोस प्रगति नहीं हो पाती।'
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निजी उद्योग को दी स्पष्ट दिशा
एयर मार्शल एन. तिवारी ने कहा कि कंपनियों को अपने काम को लंबे समय के नजरिए से देखना चाहिए। उन्होंने कहा, 'बड़ी कंपनियों को हर तकनीक खुद विकसित करने की बजाय इंटीग्रेशन हाउस बनना चाहिए।' 'हर कंपनी अपने क्षेत्र में विशेष बनने की दिशा में काम करे।' उनके अनुसार, कई कंपनियां एक साथ बहुत सारी तकनीकों में काम करने की कोशिश करती हैं, जिससे दिशा और फोकस दोनों खो जाते हैं।
'एयरक्राफ्ट को भविष्य की तकनीक देना होगा'
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि मौजूदा वायुसेना के विमान और सिस्टम को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से अपग्रेड करना होगा, जिसमें अगली पीढ़ी के हथियार, डेटा लिंकिंग सिस्टम, मानव-रहित और मानव-संचालित मशीनों का संयुक्त संचालन शामिल हैं। उन्होंने कहा कि एआई, ड्रोन और लंबे रेंज वाली सटीक हथियार भविष्य की तकनीकी दिशा तय करेंगे।
भारत रक्षा निर्माण में 'सही समय' पर
एयर मार्शल ने कहा, 'ड्रोन तकनीक में आज भारत एक बेहतरीन स्थिति में है। हमारे पास स्थिर भू-राजनीतिक माहौल, मानव संसाधन और रिसोर्सेज हैं। हम अगली छलांग लगा सकते हैं।' उन्होंने कहा कि भारतीय उद्योग को ऐसे हथियार और रक्षा उत्पाद बनाने चाहिए, जो सिर्फ भारतीय सेनाओं के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी निर्यात योग्य हों। उन्होंने सुझाव दिया कि बड़ी कंपनियों का काम सभी तकनीकों और प्रणालियों को एक साथ लाना होना चाहिए, जबकि छोटे और स्टार्टअप स्तर की कंपनियां पंप, फ्यूल इंजेक्टर, सेंसर, गाइडेंस सिस्टम, प्रोपेलेंट्स, सॉफ्टवेयर जैसी टेक्नोलॉजी विकसित करें।
यह भी पढ़ें - ED: मोदी सरकार 1.0 में ईडी केस 791 तो दूसरे कार्यकाल में 5521 पर पहुंचे मामले, 10 साल में केवल 120 लोग दोषी
'आत्मनिर्भरता अंतिम लक्ष्य, शिक्षण संस्थानों से मजबूत साझेदारी'
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया, 'सच्ची सामरिक आजादी तब मिलेगी जब भारत अपनी जरूरतों का हर रक्षा उपकरण खुद बना सके, और दुनिया को सप्लाई कर सके।' उन्होंने कहा कि सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है, खासकर शोध और तकनीकी विकास में। एयर मार्शल एन तिवारी ने बताया कि भारतीय वायुसेना कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और रक्षा प्रणालियों पर काम कर रही है। उन्होंने आईडेक्स, टीडीएफ और 'मेक' प्रोजेक्ट्स की भी चर्चा की। एयर मार्शल तिवारी ने उद्योग जगत से फिर कहा, 'कृपया एक-दो क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें। जिन क्षेत्रों में आपकी असली क्षमता है, वहीं विशेषज्ञता विकसित करें। इससे भारत रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से आगे बढ़ेगा।'
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निजी उद्योग को दी स्पष्ट दिशा
एयर मार्शल एन. तिवारी ने कहा कि कंपनियों को अपने काम को लंबे समय के नजरिए से देखना चाहिए। उन्होंने कहा, 'बड़ी कंपनियों को हर तकनीक खुद विकसित करने की बजाय इंटीग्रेशन हाउस बनना चाहिए।' 'हर कंपनी अपने क्षेत्र में विशेष बनने की दिशा में काम करे।' उनके अनुसार, कई कंपनियां एक साथ बहुत सारी तकनीकों में काम करने की कोशिश करती हैं, जिससे दिशा और फोकस दोनों खो जाते हैं।
'एयरक्राफ्ट को भविष्य की तकनीक देना होगा'
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि मौजूदा वायुसेना के विमान और सिस्टम को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से अपग्रेड करना होगा, जिसमें अगली पीढ़ी के हथियार, डेटा लिंकिंग सिस्टम, मानव-रहित और मानव-संचालित मशीनों का संयुक्त संचालन शामिल हैं। उन्होंने कहा कि एआई, ड्रोन और लंबे रेंज वाली सटीक हथियार भविष्य की तकनीकी दिशा तय करेंगे।
भारत रक्षा निर्माण में 'सही समय' पर
एयर मार्शल ने कहा, 'ड्रोन तकनीक में आज भारत एक बेहतरीन स्थिति में है। हमारे पास स्थिर भू-राजनीतिक माहौल, मानव संसाधन और रिसोर्सेज हैं। हम अगली छलांग लगा सकते हैं।' उन्होंने कहा कि भारतीय उद्योग को ऐसे हथियार और रक्षा उत्पाद बनाने चाहिए, जो सिर्फ भारतीय सेनाओं के लिए नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी निर्यात योग्य हों। उन्होंने सुझाव दिया कि बड़ी कंपनियों का काम सभी तकनीकों और प्रणालियों को एक साथ लाना होना चाहिए, जबकि छोटे और स्टार्टअप स्तर की कंपनियां पंप, फ्यूल इंजेक्टर, सेंसर, गाइडेंस सिस्टम, प्रोपेलेंट्स, सॉफ्टवेयर जैसी टेक्नोलॉजी विकसित करें।
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'आत्मनिर्भरता अंतिम लक्ष्य, शिक्षण संस्थानों से मजबूत साझेदारी'
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया, 'सच्ची सामरिक आजादी तब मिलेगी जब भारत अपनी जरूरतों का हर रक्षा उपकरण खुद बना सके, और दुनिया को सप्लाई कर सके।' उन्होंने कहा कि सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है, खासकर शोध और तकनीकी विकास में। एयर मार्शल एन तिवारी ने बताया कि भारतीय वायुसेना कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और रक्षा प्रणालियों पर काम कर रही है। उन्होंने आईडेक्स, टीडीएफ और 'मेक' प्रोजेक्ट्स की भी चर्चा की। एयर मार्शल तिवारी ने उद्योग जगत से फिर कहा, 'कृपया एक-दो क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें। जिन क्षेत्रों में आपकी असली क्षमता है, वहीं विशेषज्ञता विकसित करें। इससे भारत रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से आगे बढ़ेगा।'
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