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Samwad: 'जिस देश में शांति होती है, वही प्रगति की ओर बढ़ता है', अमर उजाला संवाद के मंच पर बोले सुधांशु महाराज

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुरुग्राम / नई दिल्ली। Published by: कुमार विवेक Updated Wed, 17 Dec 2025 11:05 AM IST
सार

Amar Ujala Samwad: विश्व जागृति मिशन के संस्थापक सुधांशु जी महाराज अमर उजाला संवाद के मंच पर कहा- शांति के बिना प्रगति संभव नहीं। उन्होंने अमर उजाला की स्वर्णिम यात्रा की सराहना की और सार्थक जीवन का मंत्र दिया। पढ़ें पूरी खबर।

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संवाद - फोटो : amarujala.com
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विस्तार
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विश्व जागृति मिशन के संस्थापक सुधांशु जी महाराज ने सार्थक जीवन की राह पर बात की। उन्होंने कहा कि अमर उजाला महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए जिस स्वर्णिम शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, उसके लिए शुभकामनाएं और बधाई। इस समाचार पत्र ने लंबी यात्रा तय की है। जिन लोगों ने भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाई, वो लोग इससे प्रारंभ में जुड़े। वही सुगंध आज भी इस समाचार पत्र के विचारों में महसूस होती है। 

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जिस देश में शांति होती है, वह देश प्रगति की ओर जाता है। यदि किसी व्यक्ति के मन में शांति है तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट भी होगी। उसकी प्रगति निरंतर आगे बढ़ेगी। यदि किसी समाज में अशांति है तो वह समाज विकासशील नहीं हो पाएगा। किसी भी सुख के लिए आवश्यक है शांति।
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सुधांशु जी महाराज ने कहा, "हमारे अध्यात्म में शांति पाठ को बहुत महत्व दिया जाता है। देवलोक से शांति पृथ्वी पर उतरे। जल, औषधि से शांति मिले। दुनिया में शांति का संदेश वाहक भारत ही हो सकता है। भारत की संस्कृति के बारे में हमारे वैदिक संदेशों में कहा जाता है कि सा प्रथमा संस्कृति विश्ववारा। हम हरियाणा में हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से हमें भगवत गीता मिली। इसमें आदेश, उपदेश, संदेश हैं। आज के युग के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने तप के संबंध में कहा था कि जिसका मन शांत है और जिसके चेहरे पर प्रसन्नता है, जो स्वयं को नियंत्रित करना चाहता है, जिसकी भावनाएं शुद्ध हैं, वो व्यक्ति तपस्वी है।"

अमर उजाला हरियाणा के मंच पर सुधांशु जी महाराज ने कहा कि हमारा बोलना, हमारा व्यवहार शांति देने वाला हो, प्रेम करने वाला हो। उद्वेगकारी वाणी न हो। प्रत्येक कर्म में आनंद दिखाई दे, इसलिए कहा गया है कि मन: प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह:। इस बारे में उन्होंने एक किस्सा सुनाते हुए कहा, "35 वर्ष पहले हरियाणा के एक गांव में साधुओं का सम्मेलन था। गांव के अंदर झोपड़ी डालकर रहने वाले बाबा बोलने के लिए आगे आए। उन्होंने कोई मंत्र नहीं बोले। गांव की भाषा बोली, जो अद्भुत थी। उन्होंने कहा कि खाओ पीओ छको मत। देखो भालो, तको मत। चलो फिरो, लेकिन थको मत। बोलो चालो, बको मत। इसी के लिए कहा गया है- ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते। हर दिन इस तरह बिताओ कि रात को चैन की नींद सो सको और जागो तो चेहरे पर प्रसन्नता हो। जवानी को इस तरह बिताओ कि बुढ़ापे में पछताना न पड़े। बुढ़ापे को इस तरह बिताओ कि किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। फूल खिले पर उसके सड़ने की नौबत न आए।"



सुधांशु जी महाराज ने कहा कि वैदिक ज्ञान के अनुसार मनुष्य को मनुष्य बने रहने के लिए प्रयास करना चाहिए। हम अंदर से जैसे हैं हमें वैसे ही बाहर से हमें आचरण करना चाहिए। इससे बड़ी सुंदरता दुनिया में नहीं हो सकती। वैदिक संदेश में है कि मनुष्य तू है तो मनुष्य बना रहे। सांप नहीं बनना, बिच्छू नहीं बनना। तुम्हारा एनिमल ब्रेन तुम्हारे पास है उसे सुला देना और देवता वाले ज्ञान को जगा देना।



सुधांशु जी महाराज ने कहा, "जिब्रान ने अपनी कहानी में लिखा था कि मेरे पास सात मुखौटे थे, उन्हें लेकर मैं जी रहा था। जब कोई मेरे सातों मुखौटे चुराकर ले गया, उस दिन मैं जैसा था, वैसा दिखाई दिया। जैसे अंदर हो, वैसे बाहर हो जाओ, इससे बड़ी सुंदरता कोई नहीं हो सकती। हमारी संस्कृति भी कहती है कि असतो मा सद्गमय। जब चारों ओर से अशांति की बौछार हो रही तो, उदासी का वातावरण हो, तब भी इतनी कृपा कर देना कि मुस्कुराहट बरकरार रहे। हम किसी की मुस्कुराहट छीनने की इच्छा न करें। यही हमारा अध्यात्म है।"



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