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समुद्र: जलवायु संकट के बीच जैव विविधता की नई तस्वीर, वैज्ञानिकों ने गहराई में खोजीं जीवों की 200 नई प्रजातियां
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Mon, 22 Dec 2025 05:23 AM IST
सार
गुआम के समुद्री क्षेत्र में 130 से 490 फीट नीचे वैज्ञानिकों ने लगभग 2,000 समुद्री जीवों का अध्ययन किया है, जिनमें डीएनए विश्लेषण के बाद 200 तक नई प्रजातियों के सामने आने की संभावना है।
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वैज्ञानिकों ने जीवों की 200 नई प्रजातियां खोजीं
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
जलवायु परिवर्तन के बीच वैज्ञानिकों ने समुद्र की गहराइयों से जैव विविधता की एक नई तस्वीर सामने रखी है। गुआम के समुद्री क्षेत्र में 130 से 490 फीट नीचे वैज्ञानिकों ने लगभग 2,000 समुद्री जीवों का अध्ययन किया है, जिनमें डीएनए विश्लेषण के बाद 200 तक नई प्रजातियों के सामने आने की संभावना है।
जर्नल ऑफ बायोजियोग्राफी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार समुद्र की सतह के पास स्थित कोरल रीफ जलवायु परिवर्तन, समुद्री तापमान में वृद्धि और अम्लीकरण के कारण सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। इसके विपरीत, मेसोफोटिक या ट्वाइलाइट जोन में स्थित गहरे रीफ अब तक अपेक्षाकृत कम अध्ययन किए गए थे। शोध संकेत देता है कि समुद्री जैव विविधता का एक बड़ा हिस्सा अब भी इन गहराइयों में छिपा हो सकता है।
लुइज रोचा का कहना है कि गहरे समुद्र की ये प्रजातियां इसलिए सामने नहीं आ पाईं क्योंकि वहां तक पहुंचना बेहद कठिन और जानलेवा है। वैज्ञानिकों को नीचे काम करने के लिए औसतन केवल 15 मिनट का समय मिलता है, जबकि सतह पर लौटने में 4 से 5 घंटे का नियंत्रित डीकंप्रेशन आवश्यक होता है। एआरएमएस (ऑटोनॉमस रीफ मॉनिटरिंग स्ट्रक्चर्स) के जरिए की गई सैंपलिंग से यह भी सामने आया है कि गहरे रीफ में पाए जाने वाले कई जीव आनुवंशिक रूप से उथले रीफ की प्रजातियों से अलग हैं।
ये भी पढ़ें: जलवायु संकट: मौसमी घटनाओं से 1.74 करोड़ हेक्टेयर फसल तबाह...4,419 मौतें
स्टडी के अनुसार एक ही एआरएमएस संरचना पर 200 से अधिक अलग-अलग टैक्सोनोमिक यूनिट्स दर्ज की गईं, जिनमें मछलियां, क्रस्टेशियन, मोलस्क, स्पॉन्ज और ट्यूनिकेट्स शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि डीएनए बारकोडिंग पूरी होने के बाद इनमें से कई दर्जन नहीं, बल्कि सैकड़ों जीवों की टैक्सोनॉमिक पहचान बदल सकती है, जिससे वैश्विक समुद्री प्रजातियों की गिनती में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
ये भी पढ़ें: चेतावनी: सदी के अंत तक अमेजन के 38% जंगलों पर विलुप्ति का खतरा, पूरी जलवायु प्रणाली होगी प्रभावित
शोधकर्ताओं ने यह भी दर्ज किया कि ट्वाइलाइट जोन की कई प्रजातियां कम रोशनी में रंग बनाए रखने की जैविक क्षमता रखती हैं, जो मौजूदा समुद्री जीवविज्ञान के सिद्धांतों के लिए एक चुनौती मानी जा रही है। यही कारण है कि इस क्षेत्र को अब नेक्स्ट फ्रंटियर ऑफ मरीन साइंस कहा जा रहा है।
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जर्नल ऑफ बायोजियोग्राफी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार समुद्र की सतह के पास स्थित कोरल रीफ जलवायु परिवर्तन, समुद्री तापमान में वृद्धि और अम्लीकरण के कारण सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। इसके विपरीत, मेसोफोटिक या ट्वाइलाइट जोन में स्थित गहरे रीफ अब तक अपेक्षाकृत कम अध्ययन किए गए थे। शोध संकेत देता है कि समुद्री जैव विविधता का एक बड़ा हिस्सा अब भी इन गहराइयों में छिपा हो सकता है।
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लुइज रोचा का कहना है कि गहरे समुद्र की ये प्रजातियां इसलिए सामने नहीं आ पाईं क्योंकि वहां तक पहुंचना बेहद कठिन और जानलेवा है। वैज्ञानिकों को नीचे काम करने के लिए औसतन केवल 15 मिनट का समय मिलता है, जबकि सतह पर लौटने में 4 से 5 घंटे का नियंत्रित डीकंप्रेशन आवश्यक होता है। एआरएमएस (ऑटोनॉमस रीफ मॉनिटरिंग स्ट्रक्चर्स) के जरिए की गई सैंपलिंग से यह भी सामने आया है कि गहरे रीफ में पाए जाने वाले कई जीव आनुवंशिक रूप से उथले रीफ की प्रजातियों से अलग हैं।
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स्टडी के अनुसार एक ही एआरएमएस संरचना पर 200 से अधिक अलग-अलग टैक्सोनोमिक यूनिट्स दर्ज की गईं, जिनमें मछलियां, क्रस्टेशियन, मोलस्क, स्पॉन्ज और ट्यूनिकेट्स शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि डीएनए बारकोडिंग पूरी होने के बाद इनमें से कई दर्जन नहीं, बल्कि सैकड़ों जीवों की टैक्सोनॉमिक पहचान बदल सकती है, जिससे वैश्विक समुद्री प्रजातियों की गिनती में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
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शोधकर्ताओं ने यह भी दर्ज किया कि ट्वाइलाइट जोन की कई प्रजातियां कम रोशनी में रंग बनाए रखने की जैविक क्षमता रखती हैं, जो मौजूदा समुद्री जीवविज्ञान के सिद्धांतों के लिए एक चुनौती मानी जा रही है। यही कारण है कि इस क्षेत्र को अब नेक्स्ट फ्रंटियर ऑफ मरीन साइंस कहा जा रहा है।