कानों देखी: कांग्रेस के कई नेताओं को सता रहा है राज्यसभा जाने का गम, तलाश रहे रास्ते
अखिलेश ने दो बड़े फैसले ले लिए हैं। पहला तो यह कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा सीट करहल का प्रतिनिधित्व करके प्रदेश की राजनीति को धार देंगे। दूसरा फैसला चाचा शिवपाल को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने का भी कर सकते हैं। अखिलेश यादव ने इसी क्रम में आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। वहां अब छह महीने के भीतर कभी भी उपचुनाव होगा...
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पांच राज्यों में कांग्रेस क्या पस्त हुई, इसके जमे जमाए नेताओं की परेशानी बढ़ गई है। कई नेताओं को राज्यसभा का कीड़ा काटने लगा है। राज्यसभा का दर्द और मर्म किसी से जानना हो तो जद(यू) के केसी त्यागी से मिल लीजिए। 70 के दशक से राजनीति को कई चश्मों से देख चुके केसी त्यागी अकसर कहा करते हैं कि यह जो राज्यसभा है, यह भी बड़ी खराब चीज है। आम आदमी पार्टी के संस्थापक नेताओं में एक और मशहूर कवि कुमार विश्वास से भी राज्यसभा न मिलने का दर्द सहज समझा जा सकता है। कांग्रेस के आनंद शर्मा हैं। वह राज्यसभा में उपनेता हैं। अब उनका भी कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है। समझ नहीं पा रहे हैं कि कहां से या फिर किस पार्टी से सदन में लौट सकते हैं। खबर है कि ममता बनर्जी की पार्टी में भी वे अपनी किस्मत अजमाना चाह रहे थे। लेकिन सफल नहीं हो पाए। पद्म पुरस्कार ग्रहण कर चुके गुलाम नबी आजाद भी एडजस्ट नहीं हो पाए हैं। इसी तरह से कुछ और भी नेता हैं, जिन्हें राज्यसभा में लौटने के रास्तों की तलाश है। इन सभी में सबके उस्ताद पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल हैं, जिन्हें फिलहाल इसकी परवाह नहीं है। बताते हैं कुछ यही फितरत कांग्रेस को और खाए जा रही है।
योगी जी इस बार रहेंगे यूपी के फुल पॉवर मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पिछला कार्यकाल उन्हें तमाम अनुभव दे गया। अब नए कार्यकाल में वह इसका जमकर फायदा उठाएंगे। योगी के कंधे पर मुख्यमंत्री पद की दूसरी बार शपथ लेने से पहले ही एक बड़ी जिम्मेदारी महसूस होने लगी है। वह है 2024 का लोकसभा चुनाव। गोरखपुर के माधव भवन में मुख्यमंत्री ने 40 मिनट तक संघ प्रमुख मोहन भागवत से भेंट की थी। बताते हैं तब दूसरे कार्यकाल, कामकाज और 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी चर्चा हुई थी। इस बीच एक और बदलाव हुआ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को ध्यान में रखकर लखनऊ में डेरा डाले संघ के दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय हसबोले नागपुर चले गए हैं। यह एक बड़ा मिशन पूरा होने का संकेत है। लखनऊ से उनका साजो-सामान भी नागपुर जा रहा है। चुनाव बाद योगी ने लबालब आत्मविश्वास दिखाया है। मोहन भागवत ने भी तथास्तु कह दिया है। यहीं से निकलकर यह खबर भी आ रही है कि निवर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दूसरा कार्यकाल निष्कंटक, फुल पॉवर वाला होगा। पहली बार की तरह योगी-केशव जैसा समीकरण भी नहीं चलेगा। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इससे सहमत है और इसके बाद से मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह को चार चांद लगाने की तैयारी हो रही है।
अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश में दो धरोहर, स्वामी प्रसाद और जयंत चौधरी
विधानसभा चुनाव-2022 समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को जितना पछतावा दे रहा है, उतना ही उन्हें अपनी धरोहरों की भी चिंता सता रही है। अखिलेश ने दो बड़े फैसले ले लिए हैं। पहला तो यह कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा सीट करहल का प्रतिनिधित्व करके प्रदेश की राजनीति को धार देंगे। दूसरा फैसला चाचा शिवपाल को विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने का भी कर सकते हैं। अखिलेश यादव ने इसी क्रम में आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। वहां अब छह महीने के भीतर कभी भी उपचुनाव होगा। इस उपचुनाव में वह बड़ा दांव खेलेंगे। इसके साथ-साथ अखिलेश यादव को दो चिंताओं का समाधान करना है। पहला स्वामी प्रसाद मौर्य। मौर्य अब समाजवादी पार्टी के नेता हैं। अखिलेश मौर्य को पार्टी का पूरा संरक्षण देकर मौर्य और पटेल बिरादरी का विश्वास जीतना चाह रहे हैं। हालांकि अपना दल (कमेरावादी) की कृष्णा पटेल की महत्वाकांक्षा भी हिलोरें ले रही हैं। दूसरी चिंता जयंत चौधरी की है। रालोद को एमएलसी की दो सीटें देने के बाद अखिलेश हर हाल में रालोद और समाजवादी पार्टी गठबंधन को बनाए रखना चाहते हैं। जयंत पर भाजपा भी डोरे डाल रही है। देखना है कि आगे क्या होता है?
'द कश्मीर फाइल्स' नहीं, कश्मीर में विधानसभा चुनाव की आहट है
'द कश्मीर फाइल्स' खूब तहलका मचा रही है। यह फिल्म जहां मोटी कमाई कर रही है, वहीं इसको लेकर कश्मीर से लेकर राजनीतिक गलियारों तक में हलचल काफी तेज है। कुछ लोग इस फिल्म के रिलीज होने की टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि भाजपा के सुधीर अग्रवाल जैसे नेता भी हैं। उनका कहना है कि फिल्म ऐसे ही नहीं आई है। यह एक दूरगामी एजेंडा सेट कर रही है। अग्रवाल कहते हैं कि कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं। अंदरखाने में तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। इस फिल्म की अहमियत गुजरात से लेकर कर्नाटक विधानसभा चुनाव तक है। अग्रवाल कहते हैं कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौर की भाजपा है। जहां बस आगे बढ़ने के फॉर्मूले तय होते हैं।