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Assam: असम विपक्ष का भाजपा पर हमला, गैर-मुस्लिमों को बिना दस्तावेज रहने देने के फैसले को बताया विश्वासघात
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुवाहाटी
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Wed, 03 Sep 2025 09:16 PM IST
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सार
असम के विपक्षी दलों ने कहा कि गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को बिना यात्रा दस्तावेजों के भारत में 2024 तक रहने की अनुमति देना राज्य के साथ 'विश्वासघात' है। विपक्षी दलों ने इस अधिसूचना को तुरंत वापस लिए जाने की मांग की है।

लुरिनज्योति गोगोई
- फोटो : एएनआई
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विस्तार
असम के विपक्षी दलों ने केंद्र और राज्य में भाजपा सरकारों पर हमला बोला। साथ ही कहा कि गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को बिना यात्रा दस्तावेजों के भारत में 2024 तक रहने की अनुमति देना राज्य के साथ 'विश्वासघात' है।

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गृह मंत्रालय (MHA) ने एक सितंबर को अधिसूचना जारी कर अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारत में रुकने की अनुमति दी है, भले ही उनके पास दस्तावेज न हों।
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10 साल और बढ़ाई गई समयसीमा
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 का प्रावधान है कि इन समुदायों के लोग यदि 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आ गए हों और यहां पांच साल रह चुके हों, तो उन्हें भारतीय नागरिकता दी जा सकती है। नई अधिसूचना में इस समयसीमा को 10 साल और बढ़ा दिया गया है।
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असमिया लोगों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही भाजपा: गोगोई
असम जातीय परिषद (AJP) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने आरोप लगाया कि भाजपा 'हिंदू बांग्लादेशी वोट बैंक' के लिए असमिया लोगों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है। उन्होंने कहा, 'सीएए की समयसीमा 10 साल और बढ़ाकर भाजपा ने असम का बोझ 43 साल से बढ़ाकर 53 साल कर दिया है। यह असमिया जनता के साथ गंभीर अन्याय है।'
यह असम समझौते और असमिया अस्मिता का अपमान: सैकिया
कांग्रेस नेता व विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने दावा किया कि इस आदेश से करीब पांच लाख 'गैरकानूनी विदेशी' असम में रह जाएंगे। उन्होंने कहा, 'यह असम समझौते और असमिया अस्मिता का अपमान है। हम मांग करते हैं कि इस अधिसूचना को तुरंत वापस लिया जाए या कम से कम असम को इससे बाहर रखा जाए।'
आप और माकपा ने भी अधिसूचना को वापस लेने की मांग की
आम आदमी पार्टी (आप) ने भी इसे 'तानाशाही' बताते हुए कहा कि यह अधिसूचना असम को बर्बाद कर देगी। भाजपा को इसे वापस लेना चाहिए। वहीं, माकपा ने भी सरकार से अधिसूचना तत्काल वापस लेने की मांग की।
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असम समझौता और विरोध
बता दें कि असम में 1979 से 1985 तक छह साल तक विदेशी नागरिकों के खिलाफ बड़ा आंदोलन चला था, जिसके बाद असम समझौता हुआ। इसमें 25 मार्च 1971 को नागरिकता तय करने की कट-ऑफ तिथि तय की गई थी। नई अधिसूचना से सबसे ज्यादा राहत पाकिस्तान से 2014 के बाद आए हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों को मिलेगी, जो अब तक अपने भविष्य को लेकर असमंजस में थे। असम में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में इस मुद्दे ने सियासत को गरमा दिया है।