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Bihar Election & BJP's Chanakya: बिहार के चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया- अमित शाह ही हैं भाजपा के असली चाणक्य

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 14 Nov 2025 11:09 PM IST
सार

Amit Shah is a Game Changer for BJP: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तब भाजपा के मुख्य रणनीतिकार के रूप में उभरे, जब 2014 में उनके संगठनात्मक नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में पार्टी ने 71 लोकसभा सीटें जीतीं। बिहार चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया कि जब भी भाजपा चुनाव में उतरेगी, जीत की रणनीति के पीछे शाह ही रहेंगे।
 

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Bihar Election Result 2025 Amit Shah Chanakya of BJP know how he managed to get NDA to winning point news
बिहार विधानसभा चुनाव 2025। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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'बिहार में एनडीए को 160 से ज्यादा सीटें मिलेंगी... बचा-खुचा सब में बंटेगा...।' बिहार के चुनाव नतीजे आने से पहले एक बातचीत में भाजपा के चाणक्य यह बयान दे रहे थे। इस बयान के पीछे उनका भरोसा और चुनावी बिसात पर शह-मात के खेल में विपक्षियों को पटखनी देने की उनकी रणनीति बोल रही थी। बिहार चुनाव के नतीजों में जब एनडीए 200 पार पहुंच गई और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन गई तो यह साबित हो गया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही पार्टी के असली चाणक्य हैं। चुनावों में एक के बाद एक जीत को वे 'संकल्प सेवा' पर मुहर कहते हैं, लेकिन इसके पीछे उनकी मजबूत चुनावी रणनीति है। 
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1. चुनाव की घोषणा के बाद शाह ने काफी समय पटना में बिताया
एनडीए को जीत दिलाने की योजना के सूत्रधार खुद अमित शाह रहे। दरअसल, जब चुनाव को लेकर भाजपा के अंदर रणनीति बन रही थी, तभी यह फैसला हो गया कि इस बार अमित शाह राज्य में लंबा समय बिताएंगे और हर तरह के पहलू पर नजर रखेंगे। शाह ने बिहार में चुनाव की तैयारियों को परखने के लिए 19 दिन बिताए। इतना ही नहीं इस दौरान वे शाह ही थे, जिन्होंने चुनाव प्रचार अभियान की जिम्मेदारी संभाली और अलग-अलग क्षेत्रों में रैलियों, जनसभाओं और बैठकों में हिस्सा लेकर भाजपा के साथ-साथ एनडीए की बाकी पार्टियों के लिए लक्ष्य तय किए।
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2. रणनीति ऐसे बनाई कि बिहार में सत्ता विरोधी लहर की धारणा न बन पाए
बिहार में एनडीए को लेकर फैली एंटी-इन्कंबेंसी को खत्म करने के लिए अमित शाह ने सबसे पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का नारा दिया। इसके जरिए जदयू और भाजपा नेताओं के बीच समन्वय स्थापित किया गया और तय हुआ कि दोनों ही दल अपनी योजनाओं का जोर-शोर से प्रचार करेंगे। फिर चाहे नारी शक्ति से जुड़ी योजनाएं हों या युवा शक्ति की आवाज उठाने की बात। शाह ने तय किया कि इन योजनाओं के जरिए एनडीए एकजुट रहे और उसके खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर भी न बन पाए। 

3. सीटाें की गुत्थी सुलझाई
चुनाव से पहले भाजपा की सबसे बड़ी चिंता सीट बंटवारे की गुत्थी सुलझाने के साथ जदयू-लोजपा के नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय स्थापित कराने की थी। लोजपा आर, हम और आरएलएम को सीटों की संख्या पर मनाने के लिए शाह ने उनके नेताओं के साथ 12 बैठकें की। इसके अलावा बूथ प्रबंधन में भाजपा के साथ सभी सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं को जोड़ने की मुश्किल चुनौती का भी हल शाह ने निकाला। बिहार चुनाव में यह पहली बार हुआ जब सभी मतदान केंद्रों के बूथ प्रबंधन में सभी दलों के कार्यकर्ताओं को लगाया गया।

4. चिराग और बागियों को मनाया, एनडीए में सीट शेयरिंग को आसान बनाया
बताया जाता है कि इनमें से तीन दिन जब वे पटना में रुके थे, तब उन्होंने बागी नेताओं को मनाने के लिए अपने पूरे शेड्यूल को ही बदल दिया और किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। शाह की बागियों को मनाने की इस पहल ने तय किया कि भाजपा के खिलाफ उसके अपने ही नेता न खड़े हो जाएं और मुकाबले में पार्टी अपने लिए ही न मुश्किल खड़ी कर ले। उस दौरान उन्होंने 100 से ज्यादा बागियों के साथ बैठक की और सभी को बगावती तेवर खत्म करने के लिए मना लिया। शाह ने इसके लिए कई नेताओं से निजी तौर पर मुलाकात की और आगे की रणनीति तैयार करने पर ध्यान दिया।

इतना ही नहीं अमित शाह ने एनडीए की ही दो साथी पार्टियों जदयू और लोजपा (रामविलास) के बीच दूरियों को पाटने में भी अहम भूमिका निभाई, ताकि 2020 में जदयू को चिराग की वजह से हुए नुकसान की भरपाई की जा सके और एनडीए की सीटें बढ़ाई जा सकें। दरअसल, चिराग पासवान अपने लिए कम से कम 40 सीटों की मांग कर रहे थे, लेकिन शाह की बात मानते हुए लोजपा (आरवी) आखिरकार 29 सीटों के लिए मान गई। इस तरह हम के जीतनराम मांझी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के उपेंद्र कुशवाहा को साथ रखकर शाह ने गठबंधन को एक रखने में बड़ी भूमिका निभाई।

5. ताबड़तोड़ प्रचार किया
अधिसूचना जारी होने के बाद शाह ने बिहार में 19 दिन बिताए। प्रचार खत्म होने तक संभाग व जिला स्तर की दस बैठकें की। नाराज नेताओं-कार्यकर्ताओं के समूहों के साथ भी एक दर्जन बैठकें अलग से की। 35 जनसभा और एक रोड शो किया। प्रचार के पहले दिन से शाह लगातार व्यक्तिगत स्तर पर न सिर्फ निगरानी करते रहे, बल्कि इसमें आ रही कमियों को भी दूर किया।

6. जंगलराज और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले किसी भी भेष में आएं, उन्हें लूटने का मौका नहीं मिलेगा
ज्ञान, परिश्रम और लोकतंत्र की रक्षक बिहार भूमि की जनता को कोटि-कोटि नमन। एनडीए को यह प्रचंड जनादेश, बिहार में विकास, महिलाओं की सुरक्षा, सुशासन और गरीब कल्याण की एनडीए की संकल्प सेवा पर जनता की मुहर है। बीते 11 वर्षों में पीएम मोदी ने बिहार के लिए दिल खोलकर कार्य किए और नीतीश कुमार ने बिहार को जंगलराज के अंधेरे से बाहर निकालने का काम किया। यह जनादेश विकसित बिहार के संकल्प के लिए है। यह विकसित बिहार में विश्वास रखने वाले हर बिहारवासी की जीत है। जंगलराज और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले किसी भी भेष में आएं, उन्हें लूटने का मौका नहीं मिलेगा। जनता अब सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक प्रदर्शन के आधार पर जनादेश देती है। -अमित शाह

7. प्रबंधन प्रवासी मतदाताओं का
इस बार प्रवासी मतदाताओं ने जनादेश तय करने में अहम भूमिका निभाई। शाह ने करीब 30 लाख प्रवासी मतदाताओं को प्रवासी कार्यकर्ताओं के माध्यम से मतदान के लिए गृह राज्य भेजा। चुनाव के दौरान दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र से लाखों प्रवासी बिहार पहुंचे। चूंकि, दूसरे चरण का मतदान छठ पर्व के बाद था, इसलिए यह भी सुनिश्चित किया गया कि घर पहुंचे प्रवासी मतदान करने के बाद ही अपने कार्यस्थल पर लौटें।

8. अब पार्टी अध्यक्ष नहीं, लेकिन चुनावी रणनीति के सूत्रधार शाह ही होते हैं
अमित शाह की पहचान राजनीतिक गलियारों में उन नेताओं की है, जो कि हर वक्त सियासी तौर पर सक्रिय रहते हैं। उनका यही गुण भाजपा के लिए एक ऐसेट यानी संपत्ति के तौर पर देखा जाता है। 2019 में जब अमित शाह ने केंद्र सरकार में गृह मंत्री का पद संभाला, तब भी वे पार्टी के अंदरूनी मामलों पर करीब से नजर रखते रहे। इसी कड़ी में उन्होंने न सिर्फ मध्य प्रदेश, राजस्थान में, बल्कि दश्रिण में कर्नाटक, केरल से लेकर पूर्वोत्तर तक में चुनावों पर नजर रखी और पार्टी की रणनीतियां तय कीं।

शाह की चुनावी रणनीति का एक उदाहरण बिहार में हुए चुनाव से पहलेहरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में भाजपा को मिली जीत हैं। जहां महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व में महायुति ने न सिर्फ शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को न सिर्फ साथ रखना सुनिश्चित किया, बल्कि महा विकास अघाड़ी को सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने से रोका। कुछ इसी तरह का कारनामा शाह ने हरियाणा में किया, जहां कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने में नाकाम हुई और भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बना ली।

हर चुनावी जिम्मेदारी को मिशन मोड में लेने के लिए जाने जाने वाले शाह ने इन राज्यों में न केवल चुनाव प्रचार किया और सभी एनडीए सहयोगियों के साथ जमीनी रणनीति का समन्वय किया, बल्कि बिहार में तो उन्होंने विपक्ष के एसआईआर, रोजगार और अन्य मुद्दों पर बनाए गए नैरेटिव का सबसे प्रभावी जवाब कैसे दिया जाए, इस पर भी गहन विमर्श छेड़ दिया। उनके हर कदम ने विपक्ष के संदेश को काफी हद तक कमजोर कर दिया। आलम यह था कि बिहार चुनाव की शुरुआत में वोट चोरी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस भी बाद में इसे लेकर शांत नजर आए। 

9. उत्तर प्रदेश में आम चुनाव की जीत को विधानसभा चुनाव में दोहराने में निभाई भूमिका
अमित शाह ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौर से ही उत्तर प्रदेश को साधने की कोशिशें शुरू कर दी थीं। दरअसल, लोकसभा में सीटों के लिहाज से यूपी सबसे बड़ा राज्य है। यानी किसी भी पार्टी की जीत का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। ऐसे में शाह ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए एक बहुस्तरीय संगठित चुनावी रणनीति लागू की। उन्होंने सबसे पहले बूथ स्तर पर पन्ना प्रमुख मॉडल को मजबूत करने का काम किया। इसके तहत हर एक मतदाता सूची पर एक कार्यकर्ता को जिम्मेदारी दी गई। इससे भाजपा मतदाताओं तक सीधे और नियमित संपर्क बना सकी। 

शाह ने यूपी की जातीय राजनीति को बारीकी से समझते हुए सियासत को हिंदुत्व की तरफ बढ़ाने का भी काम किया। साथ ही गैर-यादव ओबीसी, गैर-जाटव दलित और अति-पिछड़ी जातियों को भाजपा के हिंदुत्व और विकास गठबंधन में शामिल करने पर ध्यान दिया। इससे पार्टी का सामाजिक आधार काफी बढ़ा।

इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी शाह ने चुनाव प्रचार का नैरेटिव दो स्तरों पर तैयार किया। पहला- हिंदुत्व और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे और दूसरा- केंद्र की योजनाओं को विकास मॉडल के रूप में पेश करना। विपक्ष के खिलाफ उन्होंने लाभार्थी योजनाओं, मोदी सरकार की लोकप्रियता और जातीय संयोजन के जरिए कमजोर करने की कोशिश जारी रखी। इस तरह यूपी में शाह ने भाजपा की लंबे समय तक खोई जमीन को दोबारा स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।

10. मध्य प्रदेश में कमलनाथ की जीती बाजी पलट दी
देशभर में जब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहे थे, उस दौरान अमित शाह मध्य प्रदेश में लंबे समय बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस को हटाने के लिए तैयारियों में जुटे थे। दरअसल, यह वह दौर था, जब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था, जिससे कुछ समय बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक नाराज दिखने लगे थे। कांग्रेस में इसी तनाव को पहचानते हुए शाह के नेतृत्व में भाजपा ने राज्य में फिर सरकार बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं। 

इसके बाद हुआ कुछ यूं कि सिंधिया से जुड़े 22 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ सरकार बहुमत खोने की कगार पर पहुंच गई। यह घटनाक्रम कांग्रेस सरकार के दिसंबर 2018 में सीमित बहुमत से सत्ता में आने के बाद से चर्चा में रही ऑपरेशन लोटस की अंतिम कड़ी माना जाता है। कहा जाता है कि इस पूरे ऑपरेशन की रणनीति अमित शाह ने खुद तैयार की थी। भाजपा अध्यक्ष पद से हटने के बावजूद शाह ने दलगत राजनीति में अपना दखल जारी रखा। कांग्रेस नेतृत्व में एक धड़े के खुद को उपेक्षित महसूस करने के बाद शाह ने सिंधिया से संपर्क साधा और अंततः सरकार गिराने में सफलता हासिल की। इस पूरे अभियान में शाह की मदद केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और नरेंद्र सिंह तोमर ने की। प्रधान ने सिंधिया खेमे से बातचीत की जिम्मेदारी संभाली, जबकि तोमर को विधायकों को साधने और संख्या जुटाने की जिम्मेदारी ली।

सिंधिया के भाजपा में आने से पार्टी नेतृत्व को राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश की पूर्व मंत्री यशोधरा राजे जैसे उनके परिवारजनों को राजनीतिक रूप से संतुलित रखने में भी मदद मिली है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया की राजनीतिक विरासत के कारण यह परिवार भाजपा में प्रभावशाली रहा है, जिसे शाह ने नए समीकरणों से भाजपा में जगह दी।
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