CAG Report: कर्नाटक मजदूर बोर्ड में गड़बड़ी का दावा; रेलवे की सफाई और पानी व्यवस्था पर यात्रियों में असंतोष
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कर्नाटक मजदूर कल्याण बोर्ड की कार्यप्रणाली में वित्तीय गड़बड़ियों और योजना क्रियान्वयन में कमियों का खुलासा किया। वहीं, एक अन्य रिपोर्ट में सीएजी ने बताया कि भारतीय रेलवे में 2022-23 में एक लाख से अधिक पानी और सफाई की शिकायतें आईं, जिनमें से एक तिहाई का समाधान देरी से हुआ।
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कर्नाटक मजदूर कल्याण बोर्ड और भारतीय रेलवे में गंभीर लापरवाहियों को लेकर बड़े खुलासे किए है। इसके तहत सीएजी की रिपोर्ट में कर्नाटक में निर्माण श्रमिकों की भलाई के लिए बनी कर्नाटक भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्यप्रणाली में गंभीर खामियां और भारतीय रेलवे में लंबी दूरी की ट्रेनों में सफाई और पानी की व्यवस्था को लेकर कई बड़ी बातें और ज्यादातर यात्रियों की असंतुष्टि का जिक्र किया गया है।
बात अगर कर्नाटक भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की कार्यप्रणाली की करें तो विधानसभा में पेश की गई सीएजी की रिपोर्ट ने बोर्ड में सेस संग्रह, लाभार्थियों के पंजीकरण और योजनाओं के क्रियान्वयन में कई गड़बड़ियों की ओर इशारा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड के पास निर्माण लागत का मूल्यांकन करने की कोई तय प्रक्रिया नहीं है। अधिकारी केंद्रीय मूल्यांकन समिति के बनाए रजिस्ट्रेशन रेट्स पर निर्भर थे, जो केवल मार्गदर्शक के रूप में उपयोग होने चाहिए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018-19 से 2022-23 के बीच ₹10,154.45 करोड़ का बजट था, जिसमें से सिर्फ ₹6,198.34 करोड़ खर्च किए गए। हालांकि, कुल भुगतान (जमा सहित) ₹12,535.54 करोड़ रहा।
रिपोर्ट में बोर्ड द्वारा की गई गड़बड़ियों की ओर इशारा
रिपोर्ट में बताया गया है कि बोर्ड ने लेबर वेलफेयर सेस की वसूली और जमा करने में बड़ी गड़बड़ियां की हैं। इसके तहत 2007-08 से 9,654 चेक और डिमांड ड्राफ्ट तकनीकी गड़बड़ी के कारण लौटाए गए, जिसकी कीमत ₹18.12 करोड़ थी। वहीं कर्नाटक स्लम डेवलपमेंट बोर्ड से ₹5.27 करोड़ का सेस अभी तक ट्रेस नहीं हो पाया है। इसके साथ ही बंगलौर मेट्रो ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (बीएमटीसी) ने ₹6.06 करोड़ की राशि दो साल तक अपने पास रखी, उसे बोर्ड को नहीं भेजा।
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लाभार्थी पंजीकरण में भी भारी गड़बड़ी पर जोर
इसके साथ ही रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि सेवा सिंधु पोर्टल पर 42.5 लाख श्रमिकों का पंजीकरण किया गया, लेकिन उसमें जानकारी की जांच नहीं हुई। नतीजतन, दर्जी, क्लर्क और बुनकर जैसे गैर-निर्माण क्षेत्र के लोग भी लाभार्थी बन गए। बोर्ड ने 25 कल्याणकारी योजनाएं चलाईं, लेकिन कई मामलों में नियमों का पालन नहीं किया गया। वहीं मृतक श्रमिकों की पेंशन पर कोई स्पष्ट नीति नहीं थी। ₹433.80 करोड़ की राशि स्लम डेवलपमेंट बोर्ड और ₹8.74 करोड़ राजीव गांधी हाउसिंग कॉर्पोरेशन को बिना लाभार्थियों की सूची मांगे जारी कर दी गई। इसके साथ ही एक स्वास्थ्य योजना के 30 भागों में कार्य विभाजित कर कैबिनेट की मंजूरी से बचने का प्रयास किया गया और ₹258.80 करोड़ की अनियमित खर्च किया गया।
निगरानी और पारदर्शिता की भारी कमी
रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड ने आंतरिक ऑडिट विंग नहीं बनाई और सोशल ऑडिट भी शुरू नहीं किया। राज्य स्तरीय निगरानी समिति की अब तक एक भी बैठक नहीं हुई। इसके साथ ही बोर्ड ने साल में अनिवार्य चार बैठकें नहीं की, जिससे योजनाओं के निर्णय और कार्यान्वयन में देरी हुई। CAG ने यह भी बताया कि 2021-22 में जो शिक्षा सहायता दर सरकार के तय न्यूनतम से अधिक थी, उसे अक्तूबर 2023 में बिना ठोस वजह के घटा दिया गया, जो मॉडल कार्य योजना के खिलाफ था।
भारतीय रेलवे में पानी की कमी पर एक लाख से ज्यादा शिकायतें- रिपोर्ट
वहीं दूसरी बात सीएजी की रिपोर्ट में भारतीय रेलवे की बात करें तो रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय रेलवे को वित्तीय वर्ष 2022-23 में शौचालयों और वाश बेसिन में पानी की कमी के कारण कुल 1,00,280 शिकायतें मिलीं। इन शिकायतों में से लगभग 34 प्रतिशत मामलों में समस्या का समाधान तय समय से ज्यादा समय में किया गया। रिपोर्ट में साफ-सफाई और स्वच्छता पर 2018-19 से 2022-23 तक के पांच वर्षों का ऑडिट किया गया है। इसमें बताया गया है कि यात्रियों की संख्या ज्यादा होने के कारण स्वच्छता बनाए रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे न केवल स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं कम होती हैं बल्कि सफाई से यात्रियों का अनुभव भी बेहतर होता है।
इसके साथ ही लंबी दूरी की ट्रेनों में बायो-टॉयलेट की सफाई पर एक सर्वे किया गया जिसमें 2,426 यात्रियों से राय ली गई। पांच रेलवे जोन में यात्री संतुष्टि 50 प्रतिशत से ज्यादा रही, जबकि दो जोनों में यह मात्र 10 प्रतिशत से भी कम थी। शिकायतों का मुख्य कारण पानी की कमी बताया गया, जो कि रेलवे स्टेशनों पर पानी भरने में देरी या कमी के कारण होती है। इसे सुधारने के लिए रेलवे बोर्ड ने सितंबर 2017 में क्विक वाटरिंग अरेंजमेंट (QWA) की शुरुआत की। रिपोर्ट के अनुसार, 109 स्टेशनों में से 81 पर QWA चालू है, लेकिन बाकी 28 स्टेशनों पर फंड की कमी, ठेकेदार की धीमी गति और काम के स्थगित होने की वजह से 2 से 4 साल की देरी हो रही है।
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स्वच्छता पर खर्च और बजट का हिसाब
रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे की स्वच्छता और सफाई के लिए जो बजट तय किया गया था, कुछ जोनों ने उससे ज्यादा खर्च किया, जबकि कुछ ने पूरा बजट इस्तेमाल नहीं किया। खासकर लिनन प्रबंधन और कोच की सफाई में खर्च ज्यादा हुआ। COVID-19 महामारी की वजह से कुछ जोनों ने बजट का कम इस्तेमाल किया। इसके साथ ही ऑटोमैटिक कोच वाशिंग प्लांट्स (ACWPs) का भी ऑडिट हुआ, जिसमें पाया गया कि ये प्लांट्स पूरी तरह से काम नहीं कर रहे। 24 प्लांट्स में से 8 खराब या रिपेयर में थे। इसकी वजह से 1,32,060 कोच बाहर के कॉन्ट्रैक्ट के जरिए धोए गए।