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India-Pakistan Ceasefire: करारी हार के बाद भी नहीं घटेगी पाकिस्तान की मुसीबत, भारत उठाएगा ये कदम

Amit Sharma Digital अमित शर्मा
Updated Mon, 12 May 2025 01:51 PM IST
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सार

भारत ने साफ कर दिया है कि सीजफायर के बाद भी सिंधु नदी जल समझौते पर अब उसके रुख में परिवर्तन आने वाला नहीं है। दोनों देशों के बीच सीजफायर के बाद होने वाली महत्त्वपूर्ण बैठक के पहले भारत का यह रुख यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वह किसी के दबाव में आकर सिंधु नदी जल समझौते पर पुनर्विचार करने वाला नहीं है।

Ceasefire: Pakistan troubles will not reduce even after a crushing defeat India will take this step
ऑपरेशन सिंदूर - फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
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भारतीय सेना की कार्रवाई में पड़ोसी देश पाकिस्तान को करारी हार और भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान ने न केवल अपने 35 से 40 जवानों को खोया है, बल्कि उसके अनेक एयरबेस कूड़े के ढेर में तब्दील हो चुके हैं। इनके पुनर्निर्माण में पाकिस्तान को काफी धन,  समय और ऊर्जा की खपत करनी होगी। आर्थिक तौर पर लगभग दिवालिया हो चुके पाकिस्तान के लिए यह आसान नहीं होने वाला है। दोनों देशों के बीच  सीजफायर पर सहमति हो चुकी है, लेकिन जानकार मानते हैं कि इसके बाद भी उसकी मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं। यदि आतंकी संगठन फिर कोई गतिविधि करते हैं तो भारत की तरफ से उसके ऊपर कठोर कार्रवाई का खतरा बरकरार रहेगा।  

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भारत ने साफ कर दिया है कि सीजफायर के बाद भी सिंधु नदी जल समझौते पर अब उसके रुख में परिवर्तन आने वाला नहीं है। दोनों देशों के बीच सीजफायर के बाद होने वाली महत्त्वपूर्ण बैठक के पहले भारत का यह रुख यह बताने के लिए पर्याप्त है कि वह किसी के दबाव में आकर सिंधु नदी जल समझौते पर पुनर्विचार करने वाला नहीं है। सिंधु जल समझौता भारत की तरफ से रद्द ही रहेगा और सिंधु नदी के जल के उपयोग को लेकर वह पूरी तरह स्वतंत्र होगा।
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'पाकिस्तान की लाइफ लाइन भारत के हाथ'
भारतीय नदी परिषद के संरक्षक और जल मामलों के विशेषज्ञ मनु गौर ने अमर उजाला से कहा कि पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत की 90 प्रतिशत खेती सिंधु नदी के पानी के ऊपर टिकी हुई है। यदि भारत सिंधु के जल को नियंत्रित करने में सफल रहता है तो इससे पाकिस्तान न केवल गहरे आर्थिक संकट में फंस जाएगा, बल्कि यह उसके जीवन-मरण का प्रश्न बन जाएगा। 

गर्मियों में बढ़ सकती है पाकिस्तान की मुसीबत
मनु गौर ने कहा कि सिंधु नदी का जल रोकने के लिए भारत को इस इलाके में बड़ा बांध बनाने की आवश्यकता होगी जिसमें बहुत समय और पैसा लगेगा। सिंधु नदी के जल के पूरे उपयोग के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नदियों को जोड़ने के स्वप्न को साकार करना होगा। इसके बाद ही वह सिंधु के जल का सही उपयोग कर पाएगा। लेकिन फौरी तौर पर वह इसके जल को नियंत्रित कर पाकिस्तान को मुश्किल में डाल सकता है। जैसे इस समय जब गर्मियां अपने चरम पर होंगी, सिंधु नदी में जल बहाव काफी कम होगा। थोड़े से प्रयास से इस सीमित जल को दूसरी तरफ का बहाव देना संभव है। लेकिन भारत का यह काम इन गर्मियों में पाकिस्तान के लिए भारी परेशानी का कारण बन सकता है। 

पानी के मामले में टाइमिंग का खेल बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। जिस तरह भारत ने चिनाब नदी के जल के मामले में किया, वह किसी महत्त्वपूर्ण समय में सिंधु के पानी का बहाव प्रभावित कर सकता है तो किसी समय में पानी का पूरा बहाव पाकिस्तान की तरफ कर उसे मुश्किल में डाल सकता है। पाकिस्तान के पास फिलहाल भारत के इस प्राकृतिक हथियार का कोई जवाब नहीं है।

'आर्थिक संकट की चुनौती'
ब्रिगेडियर डीएस त्रिपाठी (रिटायर्ड) ने अमर उजाला को बताया कि पाकिस्तान इस समय बुरी मुसीबत में फंसा हुआ है। एक तरफ वह आर्थिक तौर पर कंगाल हो चुका है और कोई देश उसे कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है तो वहीं उसकी आंतरिक सीमा में हो रहे आतंकवाद के कारण वहां कोई निवेश करने के लिए तैयार नहीं है। आईएमएफ से मिली वित्तीय सहायता को भी वह दूसरे मदों में उपयोग नहीं कर पाएगा क्योंकि विश्व समुदाय इसकी पूरी निगरानी रखते हैं। ऐसे में इससे उसकी आर्थिक तरक्की की संभावनाएं बहुत कमजोर पड़ती दिखाई दे रही हैं।

आंतरिक मोर्चे पर निपटना बड़ी चुनौती
पाकिस्तान आंतरिक मोर्चे पर भी संकट में फंसा हुआ है। उसके एक तरफ तालिबान का खतरा है तो दूसरी ओर बलूचिस्तान में अलगाववादी सुर लगातार तेज हो रहे हैं। पीओके में भी पाकिस्तान के लिए समर्थन नहीं है तो खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में भी वर्तमान सरकार के खिलाफ विद्रोह की स्थिति बनी हुई है। इमरान खान के समर्थक पाकिस्तान की सरकार पर लगातार उनकी रिहाई के दबाव बनाए हुए हैं। अस्थिरता के बीच पाकिस्तान में एक बार फिर सैन्य तख्ता पलट की गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान कई मोर्चों पर घिरा हुआ है जिससे निपटना उसके लिए आसान नहीं है। 

'आतंकी संगठनों को रोक पाना पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत'
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकवाद पाकिस्तान की युद्ध नीति और विदेश नीति का अभिन्न अंग रहा है। पाकिस्तान सरकार और वहां की सेना इसके जरिए अपने मंसूबों को अंजाम देते रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान सेना में आतंकियों के समर्थकों और आम जनता से मिल रहे पैसे के बल पर अब ये आतंकी संगठन पाकिस्तान सरकार के कब्जे में भी नहीं रह गए हैं। इससे यह खतरा लगातार बना रहेगा कि वे फिर कभी भी भारत के खिलाफ कोई कदम उठा सकते हैं। 

भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि दोबारा कोई आतंकी हमला होता है तो वह इसे भारत के खिलाफ छेड़े गए युद्ध की तरह देखेगा। ऐसे में यदि कोई आतंकी घटना घटी तो पाकिस्तान पर फिर सैन्य कार्रवाई होने का खतरा बरकरार रहेगा। पाकिस्तान के लिए यह दुविधा की स्थिति होगी।  

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