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Explained: क्या हैं वो विधेयक, जिनसे गंभीर अपराध में फंसे पीएम-सीएम को हटाया जा सकेगा, विपक्ष क्यों विरोध में?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Wed, 20 Aug 2025 06:07 PM IST
सार
लोकसभा में केंद्र सरकार की तरफ से पेश तीन विधेयकों पर विवाद के बाद कई सवाल खड़े हो गए। मसलन- इन विधेयकों में ऐसा क्या है, जिसे लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो गई है? इन विधेयकों को लाने के पीछे सरकार का क्या तर्क है? विपक्ष इस पर हंगामा क्यों कर रहा है? और संसद में किस नेता ने इस विधेयक पर क्या कहा है? आइये जानते हैं...
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Centre introduces Constitution 130th Amendment Bill 2025 with others PM CMs removal for arrest Serious offence
अमित शाह पर फेंकी गईं विधेयक की प्रतियां। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार (20 अगस्त) को लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश किए। इनमें एक संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, दूसरा- केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025 और तीसरा- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 शामिल है। संसद सत्र के खत्म होने से महज दो दिन पहले लाए गए इन विधेयकों को लेकर लोकसभा में जबरदस्त हंगामा हुआ। विपक्ष ने इस विधेयक पर सवाल उठाने के साथ बिल की प्रतियां फाड़कर भी फेंकी। हालांकि, सदन में इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई। 


लोकसभा में हुए इस पूरे घटनाक्रम के बाद केंद्र की तरफ से पेश विधेयकों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो गए। मसलन- आखिर इन विधेयकों में ऐसा क्या है, जिसे लेकर विवाद की स्थिति पैदा हो गई है? इन विधेयकों को लाने के पीछे सरकार का क्या तर्क है? विपक्ष इस पर हंगामा क्यों कर रहा है? और संसद में किस नेता ने इस विधेयक पर क्या कहा है? आइये जानते हैं...

पहले जानें- क्या हैं ये तीन विधेयक, जिन पर हो रहा बवाल?
केंद्र सरकार की तरफ से लोकसभा में पेश किए गए प्रमुख विधेयकों के जरिए सरकार संविधान के अनुच्छेद 75, अनुच्छेद 164 और अनुच्छेद 239एए में संशोधन करना चाहती है। 

1. संविधान (130वां) संशोधन विधेयक, 2025
संविधान संशोधन विधेयक के जरिए संविधान के अनुच्छेद 75 में बदलाव किया जाएगा। इसमें कहा गया है- "एक मंत्री, जो कि पद पर रहने के दौरान किसी ऐसे गंभीर अपराध के मामले में आरोपी हो, जिसमें जेल की सजा पांच साल या इससे ज्यादा हो सकती हो। अगर ऐसे मंत्री को 30 दिन के लिए लगातार गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है, तो उन्हें प्रधानमंत्री की सलाह के आधार पर कस्टडी के 31वें दिन तक राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया जा सकता है।" विधेयक के मुताबिक, 31वें दिन तक पीएम की तरफ से सलाह न मिलने की स्थिति में भी मंत्री खुद ही पद पर रहने के लिए अयोग्य हो जाएंगे।

विधेयक में आगे कहा गया है कि अगर कोई प्रधानमंत्री खुद ऐसे गंभीर अपराध के मामले में आरोपी है, जिसमें पांच साल या इससे ज्यादा की सजा हो सकती है और उन्हें 30 दिन के लिए लगातार गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है तो उन्हें कस्टडी के 31वें दिन तक खुद ही अपना इस्तीफा देना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करते तो इसके अगले दिन से खुद ही प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य हो जाएंगे। 

संविधान संशोधन विधेयक में जो प्रावधान केंद्र सरकार के मंत्रियों-प्रधानमंत्री के लिए हैं, वैसे ही प्रावधान राज्य सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के लिए बनाने का प्रावधान भी है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 164 में संशोधन का प्रस्ताव है। 

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2. केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक के नियमों को केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी), जैसे- दिल्ली, पुदुचेरी, आदि में लागू करने के लिए सरकार यह संशोधन विधेयक लेकर आई है। इसके तहत अगर केंद्र शासित प्रदेश का कोई मंत्री ऐसे गंभीर अपराध के मामले में गिरफ्तार होता है, जिसमें सजा पांच साल या इससे ज्यादा हो सकती है। ऐसे मंत्री को अगर कम से कम 30 दिन के लिए गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है तो उसे मुख्यमंत्री की सलाह पर 31वें दिन तक उपराज्यपाल द्वारा पद से हटाया जा सकता है। 

संविधान 130वें संशोधन विधेयक में जिस तरह के नियम प्रधानमंत्री के लिए हैं, कुछ उसी तरह के नियम केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री पर भी लागू होंगे। 

3. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक के नियमों को जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर लागू करने के लिए ही केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 लेकर आई है। इसके तहत अगर जम्मू-कश्मीर का कोई मंत्री ऐसे गंभीर अपराध के मामले में गिरफ्तार होता है, जिसमें सजा पांच साल या इससे ज्यादा हो सकती है। ऐसे मंत्री को अगर कम से कम 30 दिन के लिए गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है तो उसे मुख्यमंत्री की सलाह पर 31वें दिन तक उपराज्यपाल द्वारा पद से हटाया जा सकता है। 

संविधान 130वें संशोधन विधेयक में जिस तरह के नियम प्रधानमंत्री के लिए हैं, कुछ उसी तरह के नियम जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पर भी लागू होंगे। 

इन विधेयकों को लाने की वजह क्या है?
मौजूदा समय में चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाने के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 मौजूद है। इसके मुताबिक, अगर संसद या राज्य विधानसभाओं के सदस्य को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होती है तो उनकी सदस्यता चली जाती है। हालांकि, अगर सांसदों-विधायकों को भ्रष्टाचार, मादक पदार्थों की तस्करी, अन्य गंभीर अपराध के मामलों में दोषी पाया जाता है तो उन्हें बिना सजा की अवधि को ध्यान में रखे पद से हटाया जा सकता है। 

हालांकि, केंद्र सरकार अब जो नियम ला रही है, उनके तहत केंद्र-राज्यों-केंद्र शासित प्रदेश के मंत्रियों से लेकर सरकार के प्रमुख पदों पर आसीन- प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों को बिना दोषसिद्धी के ही पद से हटाया जा सकेगा। हालांकि, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को कस्टडी से बाहर आने के तुरंत बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा फिर पुनर्नियुक्त किया जा सकता है। 

विधेयक के साथ इसके लक्ष्य और इससे पूरी होने वाली वजह भी बताई गई है। इसके मुताबिक, कोई मंत्री जो कि गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहा हो और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है या हिरासत में ले लिया जाता है तो इससे संवैधानिक नैतिकता और अच्छे शासन के सिद्धांतों को ठेस पहुंचती है और जिम्मेदारी के कार्यान्वहन में बाधा आ सकती है। इससे आम लोगों का संबंधित मंत्री के प्रति संवैधानिक भरोसा भी कम हो सकता है।

इसमें आगे कहा गया है, "चुने हुए प्रतिनिधि भारत के लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह जरूरी है कि वे राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर सार्वजनिक हितों और लोगों के कल्याण के लिए काम करें। यह अपेक्षा की जाती है कि पद पर आसीन मंत्रियों का चरित्र और आचरण किसी भी संदेह से परे होना चाहिए।

वे हालिया मामले, जिनमें जेल जा चुके हैं मुख्यमंत्री
बीते साल दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जब आबकारी घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की तरफ से गिरफ्तार किया गया था, तब कई महीने जेल में रहने के बावजूद केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया था। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने खुद मुख्यमंत्री पद छोड़कर आतिशी को सीएम बनाया था।

इसके अलावा 2023 में तमिलनाडु की द्रमुक सरकार में मंत्री वी. सेंथिल बालाजी एक कथित धनशोधन मामले में गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद राज्यपाल आरएन रवि ने उन्हें पद से हटा दिया था। हालांकि, जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बालाजी को जमानत मिली थी, तब तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने उन्हें फिर से पद सौंप दिया। इसे लेकर बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जाहिर की थी और तमिलनाडु सरकार ने बालाजी को मंत्री परिषद से हटा दिया।     

ऐसा ही एक और मामला झारखंड से भी जुड़ा है, जहां बीते साल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय ने कथित भूमि घोटाले से जुड़े मामले में गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि, सोरेन ने गिरफ्तारी के पहले अपना इस्तीफा सौंपते हुए मुख्यमंत्री का पद चंपई सोरेन को दे दिया। जून में जेल से बाहर आने के बाद जुलाई में हेमंत सोरेन ने फिर सीएम पद ग्रहण किया। 

अब जानें- विपक्ष ने इन विधेयकों को लेकर क्या मुद्दा उठाया?
इन विधेयकों को लेकर विपक्ष के लगभग सभी दलों ने विरोध दर्ज कराया है। 


 

  • कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, "मैं इन तीनों विधेयकों को पेश किए जाने का विरोध करता हूं... यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है... यह विधेयक राज्य के उन संस्थानों द्वारा राजनीतिक दुरुपयोग का रास्ता खोलता है, जिनके मनमाने आचरण पर सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार आपत्ति जताई है। ये तीनों विधेयक भारत के संविधान के मूलभूत स्वरूप के विरुद्ध हैं। भारत का संविधान कहता है कि आप तब तक बेगुनाह हैं जब तक आपका गुनाह साबित नहीं होता। आप किसी जांच अधिकारी या SHO को हमारे प्रधानमंत्री का बॉस नहीं बना सकते हैं।"
  • सपा सांसद राम गोपाल यादव ने कहा कि अगर किसी पर कोई आरोप न भी हो, तो भी आरोप लगाए जा सकते हैं और इस सरकार में लगाए भी जा रहे हैं। लोगों को झूठे और गंभीर आरोपों में जेल में डाला जा रहा है। जिन राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं हैं, उन्हें सत्ता से हटाने का एक और तरीका इस सरकार द्वारा लाया जा रहा है। लोकतांत्रिक मानदंड अब बचे ही नहीं हैं। जो लोग यह विधेयक ला रहे हैं, उन्हें एक बात समझ नहीं आ रही है कि एक बार सत्ता से बाहर जाने के बाद वे वापस नहीं आएंगे। उनके अपने ही लोगों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया है। 
  • आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा, "सरकार के पुराने बिलों में जनता का हित कम और अपने विरोधियों को नुकसान पहुंचाने की मंशा ज्यादा दिखाई देती है... मैं स्पीकर साहब से मांग करूंगा कि हमें JPC का हिस्सा बनाया जाए।"
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भाजपा कैसे कर रही विधेयक का बचाव?

भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में हुए हंगामे पर कहा, "विपक्ष विरोध किस बात का कर रहा है, नैतिकता या भ्रष्टाचार का।  भ्रष्टाचार के खिलाफ और नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की बात और उसके बाद कानून बनाने की बात करते हैं तो विपक्ष इसका विरोध क्यों करता है? आज लड़ाई साफ है कौन भ्रष्टाचारियों के साथ है-वो विपक्ष है और कौन भ्रष्टाचार मुक्त है वो भाजपा है और ये विरोध और इस तरह की हरकतें जो संसद में हुईं उसने लोकतंत्र को शर्मसार किया और ये भी दिखा दिया कि विपक्ष भ्रष्टाचार के साथ खड़ा है और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए खड़ा है और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।"
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