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ओडिशा में बढ़ रही हैं दलहन, तिलहन और चावल की पैदावार; किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने उठाए नए कदम
Media Solutions Initiative
Published by: मार्केटिंग डेस्क
Updated Tue, 13 Feb 2024 06:26 PM IST
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ओडिशा में पैदावार बढ़ाने पर जोर
- फोटो : सोशल मीडिया
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देश में कृषि पद्धतियों के लिए बड़े और सराहनीय कामों को करने में ओडिशा सरकार आगे हैं। ओडिशा के कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग ने रबी फसल 2023-24 सीजन के दौरान 'चावल परती प्रबंधन (सीआरएफएम) पर व्यापक परियोजना' शुरू की है। साथ ही दलहन और तिलहन की फसलों और उनकी पैदावार पर ध्यान केंद्रित करते हुए गैर धान फसलों के उत्पादन के लिए राज्य में विशाल चावल परती क्षेत्रों का उपयोग किया जा रहा हैं, जिससे इन फसलों की पैदावार में होने वाली कमी को पूरा किया जा सके।
ओडिशा में बढ़ रही हैं दलहन, तिलहन और चावल की पैदावार
विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 16 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से धान की खेती करने वाले भू-भाग लगभग 10 लाख हेक्टेयर है। रबी फसल सीजन के दौरान आमतौर पर कम समय और कम पानी की आवश्यकता होती हैं। ऐसे में दालों और तिलहनों की खेती के लिए इस भूमि का उपयोग किए जाने की संभावना है। इस भूमि को प्रभावी रूप से उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार ने राज्य भर में दालों और तिलहनों के फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों के जरिए इनका विस्तार करने की योजना बनाई है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत शामिल फसलों की सूची में हरा चना, काला चना, मटर, बंगाल का चना, मसूर, घास मटर, सरसों और तिल आदि शामिल हैं।

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ओडिशा में बढ़ रही हैं दलहन, तिलहन और चावल की पैदावार
विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 16 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से धान की खेती करने वाले भू-भाग लगभग 10 लाख हेक्टेयर है। रबी फसल सीजन के दौरान आमतौर पर कम समय और कम पानी की आवश्यकता होती हैं। ऐसे में दालों और तिलहनों की खेती के लिए इस भूमि का उपयोग किए जाने की संभावना है। इस भूमि को प्रभावी रूप से उपयोग में लाने के लिए राज्य सरकार ने राज्य भर में दालों और तिलहनों के फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों के जरिए इनका विस्तार करने की योजना बनाई है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत शामिल फसलों की सूची में हरा चना, काला चना, मटर, बंगाल का चना, मसूर, घास मटर, सरसों और तिल आदि शामिल हैं।
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कृषि को बढ़ावा देने पर जोर
- फोटो : सोशल मीडिया
योजना के तहत मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने पर भी जोर
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पानी का सही तरीके से इस्तेमाल करते हुए इन खाद्य फसलों की गहनता के साथ-साथ दलहन और तिलहन की खेती और इनके उत्पादन को बढ़ाना है। साथ ही इस योजना के जरिए मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना और किसानों की आजीविका को सुरक्षित करते हुए उनके पोषण को पूरा करना भी है। यह योजना ओडिशा के 30 जिलों में लागू की जा रही है और आगामी वर्षों में इसे दोबारा से लागू किए जाने की संभावना है। इस परियोजना के सफल संचालन में कृषि और खाद्य उत्पादन निदेशालय, और अन्य एजेंसियां जैसे सीजीआईएआर और अन्य राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थान जैसे बीज और कृषि-इनपुट आपूर्ति करने वाली एजेंसियां (ओएसएससी, ओएआईसी, एनआरआरआई, आईआईसीटी और सीबीओ) शामिल हैं।
इस परियोजना के लिए कार्य करने वाली प्रमुख पांच एजेंसियों जैसे आईआरआरआई कंसोर्टियम, अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी), एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ), कृषि विकास सहकारी समिति (केवीएसएस), और एएफसी इंडिया लिमिटेड के आपसी समझौते के बाद ही वर्ष 2023-24 के दौरान रबी फसल के लिए इस परियोजना को लागू करने के लिए, क्षेत्र स्तरीय गतिविधियां शुरू हो गई हैं।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पानी का सही तरीके से इस्तेमाल करते हुए इन खाद्य फसलों की गहनता के साथ-साथ दलहन और तिलहन की खेती और इनके उत्पादन को बढ़ाना है। साथ ही इस योजना के जरिए मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाना और किसानों की आजीविका को सुरक्षित करते हुए उनके पोषण को पूरा करना भी है। यह योजना ओडिशा के 30 जिलों में लागू की जा रही है और आगामी वर्षों में इसे दोबारा से लागू किए जाने की संभावना है। इस परियोजना के सफल संचालन में कृषि और खाद्य उत्पादन निदेशालय, और अन्य एजेंसियां जैसे सीजीआईएआर और अन्य राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थान जैसे बीज और कृषि-इनपुट आपूर्ति करने वाली एजेंसियां (ओएसएससी, ओएआईसी, एनआरआरआई, आईआईसीटी और सीबीओ) शामिल हैं।
इस परियोजना के लिए कार्य करने वाली प्रमुख पांच एजेंसियों जैसे आईआरआरआई कंसोर्टियम, अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी), एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ), कृषि विकास सहकारी समिति (केवीएसएस), और एएफसी इंडिया लिमिटेड के आपसी समझौते के बाद ही वर्ष 2023-24 के दौरान रबी फसल के लिए इस परियोजना को लागू करने के लिए, क्षेत्र स्तरीय गतिविधियां शुरू हो गई हैं।

खेत में काम करता मजदूर
- फोटो : सोशल मीडिया
पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों के इस्तेमाल को बढ़ावा
वित्तीय वर्ष 2022-23 में चावल परती प्रबंधन पर व्यापक परियोजना कार्य राज्य के 30 जिलों में लगभग 70,000 हेक्टेयर में लागू की गई थी। इस सफलता को आधार बनाते हुए इस वर्ष 2023-24 की योजना बनाई गई है, जिसे 4 लाख हेक्टेयर भूमि पर लागू करने का लक्ष्य है। इस परियोजना के दौरान तय मापदंडों के अनुसार, उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज, जैव-उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, खरपतवारनाशी और आईपीएम उपकरण जैसे आवश्यक इनपुट प्रदान किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, आयोजित कार्यक्रमों में "एसिड मृदा प्रबंधन" की एक गतिविधि जोड़ी गई है, जो 4 लाख हेक्टेयर में से लगभग 1.6 लाख हेक्टेयर को कवर करेगी। जिसका लक्ष्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना और उत्पादन को बढ़ावा देना है। कार्यक्रम का मुख्य फोकस गैर-सिंथेटिक रासायनिक सघन एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में चावल परती प्रबंधन पर व्यापक परियोजना कार्य राज्य के 30 जिलों में लगभग 70,000 हेक्टेयर में लागू की गई थी। इस सफलता को आधार बनाते हुए इस वर्ष 2023-24 की योजना बनाई गई है, जिसे 4 लाख हेक्टेयर भूमि पर लागू करने का लक्ष्य है। इस परियोजना के दौरान तय मापदंडों के अनुसार, उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज, जैव-उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, खरपतवारनाशी और आईपीएम उपकरण जैसे आवश्यक इनपुट प्रदान किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, आयोजित कार्यक्रमों में "एसिड मृदा प्रबंधन" की एक गतिविधि जोड़ी गई है, जो 4 लाख हेक्टेयर में से लगभग 1.6 लाख हेक्टेयर को कवर करेगी। जिसका लक्ष्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना और उत्पादन को बढ़ावा देना है। कार्यक्रम का मुख्य फोकस गैर-सिंथेटिक रासायनिक सघन एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर है।

प्रेम चंद्र चौधरी, कृषि एवं खाद्य उत्पादन निदेशक
- फोटो : सोशल मीडिया
कार्यक्रम के तहत 2.85 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को किया जा चुका कवर
कृषि एवं खाद्य उत्पादन निदेशक, प्रेम चंद्र चौधरी कार्यक्रम की प्रगति की निगरानी कर रहे हैं। सभी कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ हाल ही में हुए एक समीक्षा बैठक में उन्होंने लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्यक्रम को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने पर जोर दिया। आज तक, कार्यक्रम के तहत 2.85 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर किया जा चुका है और फसलों की बुआई प्रगति पर है। साथ ही इस पूरी प्रक्रिया को डिजिटल और दस्तावेजीकरण किया जा रहा है, जिसमें दूरस्थ प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके निगरानी तंत्र शामिल है और इसीलिए तीसरे चरण की मूल्यांकन का भी प्रावधान है।
इन ठोस प्रयासों के साथ, 'राइस फॉलो मैनेजमेंट परियोजना' का व्यापक उद्देश्य परती भूमि को उत्पादक संपत्तियों में बदलने की दिशा में योगदान दिया जा सके। साथ ही इसका उद्देश्य राज्य की कृषि क्षेत्र में वृद्धि, किसानों की आय में वृद्धि, और ओडिशा के कृषक समुदाय के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।
कृषि एवं खाद्य उत्पादन निदेशक, प्रेम चंद्र चौधरी कार्यक्रम की प्रगति की निगरानी कर रहे हैं। सभी कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ हाल ही में हुए एक समीक्षा बैठक में उन्होंने लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्यक्रम को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने पर जोर दिया। आज तक, कार्यक्रम के तहत 2.85 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर किया जा चुका है और फसलों की बुआई प्रगति पर है। साथ ही इस पूरी प्रक्रिया को डिजिटल और दस्तावेजीकरण किया जा रहा है, जिसमें दूरस्थ प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके निगरानी तंत्र शामिल है और इसीलिए तीसरे चरण की मूल्यांकन का भी प्रावधान है।
इन ठोस प्रयासों के साथ, 'राइस फॉलो मैनेजमेंट परियोजना' का व्यापक उद्देश्य परती भूमि को उत्पादक संपत्तियों में बदलने की दिशा में योगदान दिया जा सके। साथ ही इसका उद्देश्य राज्य की कृषि क्षेत्र में वृद्धि, किसानों की आय में वृद्धि, और ओडिशा के कृषक समुदाय के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।