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अब घरों को भी मिलेगी आधार जैसी आईडी: भारत डिजिटल एड्रेस सिस्टम क्या है, ये काम कैसे करेगा, इसकी जरूरत क्यों?

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Thu, 29 May 2025 07:54 PM IST
सार

डिजिटल एड्रेस सिस्टम क्या है? सरकार अब इस योजना पर क्यों काम कर रही है? यह डिजिपिन क्या है, जिसे हाल ही में लॉन्च किया गया है? यह काम कैसे करेगा और इसके फायदे क्या होंगे? आइये जानते हैं...

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Digital Address System Aadhaar like Identification system for Infrastructure and Locations Union Government
भारत में जल्द बनेगा डिजिटल एड्रेस सिस्टम। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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केंद्र सरकार ने 2009 में जब भारतीयों के लिए एक डिजिटल पहचान (आईडी)- आधार की शुरुआत की थी, तो इसका मकसद देश के हर एक व्यक्ति को उनकी ऐसी अलग पहचान देना था, जिस तक कभी भी और कहीं से भी पहुंच बनाई जा सके। इसी तरह जब देश में डिजिटल भुगतान के लिए एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस या यूपीआई) की शुरुआत की गई तो इसके जरिए हर व्यक्ति को उनकी बैंकिंग जरूरत के लिए एक खास डिजिटल आईडी मुहैया कराई गई, जिसके जरिए लोग न सिर्फ पैसे का आदान-प्रदान आसानी से कर सकें, बल्कि अपने अलग-अलग खर्चों का प्रबंधन भी कर सकें।
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अब इसी कड़ी में सरकार एक नया सिस्टम लाने जा रही है, जिसका नाम है डिजिटल एड्रेस सिस्टम। इसके जरिए सरकार अब देश में अलग-अलग जगहों पर मौजूद ढांचों को एक डिजिटल पहचान देने की योजना बना रही है। दरअसल, भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ा है, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों का डाटा अभी भी पूरी तरह से डिजिटल स्तर पर मौजूद नहीं है। ऐसे में सरकार अब भारत में अलग-अलग लोकेशन्स को एक डिजिटल नक्शे पर उतारना चाहती है। इसके जरिए और भी कई उद्देश्यों को पूरा किया जा सकेगा। 
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ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिरी यह डिजिटल एड्रेस सिस्टम क्या है? सरकार अब इस योजना पर क्यों काम कर रही है? यह डिजिपिन क्या है, जिसे हाल ही में लॉन्च किया गया है? सरकार पहले कब ऐसी कोशिशें कर चुकी है? आइये जानते हैं...

पहले जानें- क्या है योजना?
केंद्र ने जिसस तरह व्यक्तिगत पहचान तंत्र को आधार के जरिए मजबूत किया है, कुछ इसी तरह सरकार अब अलग-अलग पतों को एक अलग पहचान देना चाहती है। यह पूरी योजना भारत के 'डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर' (डीपीआई) डाटाबेस का हिस्सा होगी। 

मौजूदा समय में सरकार के पास देश में किसी घर या किसी बिल्डिंग (रिहायशी-औद्योगिक) या किसी पते की सही-सही जानकारी रखने का कोई सिस्टम नहीं है। इसका असर यह हुआ है कि कई निजी कंपनियां लोगों के पते से जुड़ी जानकारी हासिल कर लेती हैं और इन्हें बिना उस पते पर रहने वाले या मालिकाना हक रखने वालों की इजाजत के निजी या सार्वजनिक तौर पर साझा कर देती हैं। 

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इन सभी बातों को रोकने के लिए सरकार एक ऐसा सिस्टम बनाने की तैयारी कर रही है, जिसमें किसी पते की पूरी जानकारी एक सरकारी डाटाबेस में मौजूद हो। यह पूरा डाटाबेस आधार या यूपीआई की तरह ही होगा, लेकिन यह व्यक्ति आधारित न होकर पते (एड्रेस) पर आधारित होगा। डिजिटल एड्रेस सिस्टम या डीएएस में उस पते से जुड़ी सारी जानकारी मौजूद होगी। साथ ही इस पते का डाटा भी ज्यादा सुरक्षित होगा और उस पते के मालिक की मंजूरी के बिना इसे साझा नहीं किया जा सकेगा। 

अभी इस योजना पर क्या है प्रगति?
देश में एक डिजिटल एड्रेस सिस्टम बनाने के लिए ड्राफ्ट फ्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है। भारत का डाक विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट्स) इसके लिए एक प्रणाली तैयार कर रहा है, जिसमें सभी पतों को आधार और यूपीआई की तरह एक अलग पहचान दी जाएगी। यह पहचान सभी पतों के लिए अलग-अलग होगी, लेकिन इसका फॉर्मेट एकसमान ही होगा। बताया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) इस योजना की खुद निगरानी कर रहा है। 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस योजना का ड्राफ्ट अगले हफ्ते तक आ सकता है। इसके बाद आम लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकेंगे। इन प्रतिक्रियाओं पर काम करने के बाद सरकार इसी साल के अंत तक एक पूरी योजना को उतार सकती है। फिलहाल इससे जुड़े विधेयक को संसद के शीत सत्र तक लाने की योजना पर काम किया जा रहा है। 

भारत में इसकी जरूरत क्यों?
भारत में ऑनलाइन शॉपिंग, कूरियर सेवाएं और फूड डिलीवरी का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में इन सेवाओं से जुड़ी वेबसाइट और स्मार्टफोन ऐप्लीकेशन भी तेजी से चलन में आई हैं। अब अगर यूजर को इस तरह की सेवाओं का लाभ उठाना है तो उन्हें इन वेबसाइट-ऐप्स को अपनी लोकेशन से जुड़ी जानकारी देनी पड़ती है। आमतौर पर यह जानकारी उस खास वेबसाइट या एप के लिए ही होती है, पर भारत में इसकी निगरानी से जुड़ी प्रणाली न होने की वजह से यूजर का एड्रेस से जुड़ा डाटा भी बिना उसकी मर्जी के अलग-अलग जगहों पर साझा कर दिया जाता है। इससे किसी भी पते की जानकारी हासिल करना निजी फर्म्स के लिए आसान होता है। 

दूसरी तरफ भारत में एड्रेस से जुड़ा मौजूदा डाटाबेस एकीकृत नहीं है। यानी सरकार के पास हर एक एड्रेस की डिजिटल स्तर पर पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसमें लोकेशन जैसी अहम चीजें भी शामिल हैं। ऐसे में किसी एक पते तक पहुंचने के लिए लोकेशन की डिटेल्स के साथ अन्य चीजों की जरूरत भी पड़ती है, जैसे आसपास मौजूद चर्चित या लोकप्रिय जगह। इस दिक्कत के चलते कई सेवाएं सही समय पर और बिल्कुल ठीक ढंग से पतों पर नहीं पहुंच पातीं। 

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ अनुसंधानों में यह सामने आया है कि पते से जुड़ी गलत या अपूर्ण जानकारी देने की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को सेवा क्षेत्र में नुकसान झेलना पड़ता है। यह नुकसान प्रतिवर्ष 10-14 अरब डॉलर का होता है, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.5 फीसदी है। ऐसे में सरकार इन्हीं कमियों को पूरा करने के लिए अब डिजिटल एड्रेस सिस्टम शुरू करने की तैयारी कर रही है। 

डिजिटल एड्रेस सिस्टम काम कैसे करेगा?
केंद्र सरकार पतों की समेकित जानकारी का डाटाबेस न होने और अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए ही डिजिटल एड्रेस फ्रेमवर्क लेकर आई है। 

इस सिस्टम के जरिए भारत के दूर से दूर स्थित जगहों को एक तय मानक में पता मिल पाएगा, वह भी सही लोकेशन के साथ। डिजिटल एड्रेस सिस्टम को बाद में लोगों के आधार और यूपीआई से भी लिंक किए जाने की तैयारियां की जा रही हैं, ताकि यूजर्स की पहचान के साथ, उनकी वित्तीय स्तर की पहचान और उनके पते की पहचान को साथ में जोड़ा जा सके और उन्हें सरकारी और निजी सेवाएं सही तरह से पहुंचाई जा सकें। 

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