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गुजरात: सफाईकर्मियों की मौत पर हाई कोर्ट सख्त; कहा- केवल ठेकेदारों को दोष न दें, अफसरों की भी जिम्मेदारी तय हो
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, अहमदाबाद
Published by: पवन पांडेय
Updated Tue, 02 Sep 2025 06:33 PM IST
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सार
Death Of Sanitation Workers: गुजरात हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि, केवल ठेकेदारों पर उंगली उठाकर जिम्मेदारी से नहीं बचा जा सकता। नगरपालिकाओं और उनके अफसरों को भी सख्त जवाबदेह बनाना होगा। तभी मजदूरों की जान बचाई जा सकेगी और प्रतिबंधित प्रथा हाथों से कचरे की सफाई सचमुच खत्म होगी।

गुजरात हाईकोर्ट
- फोटो : ANI
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विस्तार
गुजरात हाईकोर्ट ने सफाईकर्मियों की मौत के मामलों में राज्य सरकार को सख्त चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि हर बार ठेकेदार पर कार्रवाई करके मामला खत्म कर देना सही नहीं है। असली जिम्मेदारी उन अधिकारियों की भी है, जिनके इलाके में यह हादसे हो रहे हैं। अगर अफसर खुद जिम्मेदार ठहराए जाएंगे, तभी सिस्टम में डर और सुधार आएगा।
क्या है पूरा मामला?
2016 में दायर किए गए एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की। यह याचिका उन मौतों को लेकर है, जो सीवर, सेप्टिक टैंक और नालियों की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों की जान जाने से जुड़ी हैं। इस प्रक्रिया को मैनुअल स्कैवेंजिंग कहा जाता है, जो कानूनन पूरी तरह प्रतिबंधित है।
यह भी पढ़ें - Mukesh Aghi: '25 वर्षों में बने अमेरिकी-भारत संबंध 25 घंटों में बिगड़ने लगे', टैरिफ नीति पर बोले USISPF प्रमुख
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे की खंडपीठ ने कहा, 'अगर कोई हादसा होता है, तो नगरपालिका के मुख्य अधिकारी (सीओ) को कार्रवाई करनी होती है। लेकिन पिछले मामलों में अफसरों का रवैया बेहद लापरवाह रहा। वे मानते ही नहीं कि यह उनकी जिम्मेदारी है।' पीठ ने आगे कहा कि 'ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर देने से समस्या खत्म नहीं होती। नया ठेकेदार भी वही गलतियां दोहराता है। जबकि असली जिम्मेदारी नियोक्ता यानी नगर निकाय की होती है।'
कोर्ट ने कहा 'यह संदेश जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति है। जब तक अफसरों पर जिम्मेदारी तय नहीं होगी, तब तक हालात नहीं बदलेंगे।' कोर्ट ने यह भी कहा कि अफसर अक्सर यह बहाना बनाते हैं कि किसी ने मजदूर को मजबूर नहीं किया, बल्कि वह खुद ही गड्ढे में उतरा। लेकिन यह तर्क गैरजिम्मेदाराना है, क्योंकि निगरानी और सुरक्षा की जिम्मेदारी नगरपालिका की होती है।
अदालल में सरकार का जवाब
एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने कोर्ट से सहमति जताई और कहा कि राज्य सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि सीवर सफाई के लिए मशीनें खरीदी जा रही हैं, ताकि मजदूरों को गड्ढों में उतरना ही न पड़े। अब तक 16 जेटिंग-कम-सक्शन मशीनें और 24 डीसिल्टिंग मशीनें 16 शहरी निकायों को दी गई हैं। 209 और मशीनें खरीदी जा रही हैं, जिन्हें मार्च 2026 तक उपलब्ध करा दिया जाएगा। सरकार का लक्ष्य है कि मैनहोल की जगह मशीन-होल का इस्तेमाल हो।
यह भी पढ़ें - Dharmasthala Row: 'SIT कर रही है जांच, NIA की जरूरत नहीं', धर्मस्थल विवाद को लेकर बोले गृहमंत्री जी. परमेश्वर
क्यों जरूरी है मशीनें?
मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा कि हाथों से कचरे की सफाई को तभी खत्म किया जा सकता है, जब हर नगरपालिका के पास आधुनिक सफाई मशीनें हों। तभी मजदूरों की जान जोखिम में डालने की नौबत नहीं आएगी।
क्या कहता है कानून?
2013 का प्रोहिबिशन ऑफ एंप्लॉयमेंट ऐज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट (पीईएमएसआर एक्ट) हाथों से कचरे की सफाई को पूरी तरह प्रतिबंधित करता है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति से मानव मल-मूत्र की मैनुअल सफाई, उठाने या निपटान का काम नहीं कराया जा सकता।

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क्या है पूरा मामला?
2016 में दायर किए गए एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की। यह याचिका उन मौतों को लेकर है, जो सीवर, सेप्टिक टैंक और नालियों की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों की जान जाने से जुड़ी हैं। इस प्रक्रिया को मैनुअल स्कैवेंजिंग कहा जाता है, जो कानूनन पूरी तरह प्रतिबंधित है।
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हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे की खंडपीठ ने कहा, 'अगर कोई हादसा होता है, तो नगरपालिका के मुख्य अधिकारी (सीओ) को कार्रवाई करनी होती है। लेकिन पिछले मामलों में अफसरों का रवैया बेहद लापरवाह रहा। वे मानते ही नहीं कि यह उनकी जिम्मेदारी है।' पीठ ने आगे कहा कि 'ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर देने से समस्या खत्म नहीं होती। नया ठेकेदार भी वही गलतियां दोहराता है। जबकि असली जिम्मेदारी नियोक्ता यानी नगर निकाय की होती है।'
कोर्ट ने कहा 'यह संदेश जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति है। जब तक अफसरों पर जिम्मेदारी तय नहीं होगी, तब तक हालात नहीं बदलेंगे।' कोर्ट ने यह भी कहा कि अफसर अक्सर यह बहाना बनाते हैं कि किसी ने मजदूर को मजबूर नहीं किया, बल्कि वह खुद ही गड्ढे में उतरा। लेकिन यह तर्क गैरजिम्मेदाराना है, क्योंकि निगरानी और सुरक्षा की जिम्मेदारी नगरपालिका की होती है।
अदालल में सरकार का जवाब
एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने कोर्ट से सहमति जताई और कहा कि राज्य सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि सीवर सफाई के लिए मशीनें खरीदी जा रही हैं, ताकि मजदूरों को गड्ढों में उतरना ही न पड़े। अब तक 16 जेटिंग-कम-सक्शन मशीनें और 24 डीसिल्टिंग मशीनें 16 शहरी निकायों को दी गई हैं। 209 और मशीनें खरीदी जा रही हैं, जिन्हें मार्च 2026 तक उपलब्ध करा दिया जाएगा। सरकार का लक्ष्य है कि मैनहोल की जगह मशीन-होल का इस्तेमाल हो।
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क्यों जरूरी है मशीनें?
मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा कि हाथों से कचरे की सफाई को तभी खत्म किया जा सकता है, जब हर नगरपालिका के पास आधुनिक सफाई मशीनें हों। तभी मजदूरों की जान जोखिम में डालने की नौबत नहीं आएगी।
क्या कहता है कानून?
2013 का प्रोहिबिशन ऑफ एंप्लॉयमेंट ऐज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट (पीईएमएसआर एक्ट) हाथों से कचरे की सफाई को पूरी तरह प्रतिबंधित करता है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति से मानव मल-मूत्र की मैनुअल सफाई, उठाने या निपटान का काम नहीं कराया जा सकता।