Elections 2023: तेलंगाना-मिजोरम के चुनावी मुद्दे और CM पद के दावेदार कौन? जानें दोनों राज्यों के सियासी समीकरण
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विस्तार
तेलंगाना-मिजोरम में चुनाव तारीखों का एलान हो गया है। दक्षिणी राज्य तेलंगाना में एक चरण में 30 नवंबर को वोटिंग होगी। वहीं पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में भी एक चरण में सात नवंबर को मतदान कराया जाएगा। चुनाव नतीजे एक साथ तीन दिसंबर को घोषित किए जाएंगे।
इस बीच, दोनों राज्यों में सियासी हलचल तेज है। सभी दलों के दिग्गज नेता चुनावी कार्यक्रमों में ताकत झोंक रहे हैं। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है? मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव प्रचार में बड़े चेहरे कौन-कौन से हैं? चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं? किन-किन के बीच मुकाबला है? इस बार 2018 के मुकाबले समीकरण कितने अलग हैं? आइए विस्तार से समझते हैं...
पहले नजर डालते हैं तेलंगाना की सियासत पर...
राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है?
इस चुनाव में बीआरएस के सामने सरकार बचाने की चुनौती होगी। वहीं, भाजपा और कांग्रेस राज्य की सत्ता में काबिज होने के लिए जोर-आजमाइश लगा रहे हैं। इससे पहले 11 अगस्त को 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा के लिए बीआरएस ने 115 सीटों पर 114 नामों की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव दो विधानसभा क्षेत्रों से अपनी किस्मत आजमाएंगे। ये सीटें कामारेड्डी और गजवेल हैं।
वहीं राज्य के अन्य मुख्य विपक्षी दलों कांग्रेस, भाजपा, टीडीपी और एआईएमआईएम ने अब तक कोई सूची नहीं जारी की है।
वर्तमान में तेलंगाना के सियासी समीकरण की बात करें तो, इस वक्त 119 सदस्यीय विधानसभा में बीआरएस के 101, एआईएमआईएम के सात, कांग्रेस के पांच, भाजपा के तीन और एआईएफबी के एक विधायक हैं। एक सीट पर निर्दलीय विधायक है, जबकि एक सीट अभी खाली है।
मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन?
राज्य की राजनीति को समझने के लिए यहां के जातीय समीकरण को जानना अहम होता है। यहां की सियासी धुरी रेड्डी और दलित-आदिवासी समाजों के आसपास घूमती है। राज्य की आबादी में दलित 15 प्रतिशत, आदिवासी नौ प्रतिशत और सामाजिक रूप से प्रभावशाली रेड्डी आबादी अनुमानित सात प्रतिशत हैं।
राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री और सत्ताधारी बीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव हैं। बीआरएस इस बार भी उनके चेहरे के साथ ही चुनाव में जाएगी।
वहीं राज्य की मुख्य विपक्षी भाजपा के रुख की बात करें तो वह इस चुनाव में सामूहिक नेतृत्व के जरिए जनता के सामने जा रही है।
कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री पद की रेस में कई चेहरों की चर्चा होती है। इनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी, सांसद कैप्टन एन उत्तमकुमार रेड्डी और कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी, खम्मम जिले से तीन बार के विधायक मल्लू भट्टी विक्रमार्क और आदिवासी नेता सीताक्का शामिल हैं।
मैदान में पांच उम्मीदवारों के साथ तीन रेड्डी, दलित नेता भट्टी और आदिवासी नेता सीताक्का कांग्रेस के लिए काफी विकल्प हैं। हालांकि, पार्टी नेतृत्व कई बार दलित नेता को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने के संकेत देता रहा है।
चुनाव प्रचार के चेहरे कौन?
चुनाव प्रचार में सत्ताधारी बीआरएस के लिए केसीआर ही सबसे बड़े चेहरे हैं। वहीं अन्य प्रमुख चेहरों की बात करें तो केसीआर सरकार में मंत्री कल्वाकुंतला तारक रामा राव (केटीआर) सिरसिला और हरीश राव सिद्दीपेट से चुनाव प्रचार में ताकत झोंक रहे हैं। केसीआर के बेटे केटी रामाराव उनके मंत्रिमंडल में मंत्री हैं और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। वहीं हरीश राव केसीआर के भांजे हैं और मौजूदा सरकार में मंत्री हैं। हरीश राव के पास वित्त और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख विभाग हैं।
कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी और राहुल गांधी प्रदेश में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। इसके साथ ही पार्टी के प्रमुख नेता मल्लिकार्जुन खरगे, रेवंत रेड्डी भी चुनावी कार्यक्रमों में नजर आ रहे हैं।
दूसरी ओर भाजपा ने पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए पीएम मोदी को उतारा है। केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी, बी संजय कुमार जैसे बड़े भी चुनावी कार्यक्रमों में लगातार शिरकत कर रहे हैं।
चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं?
राज्य में बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे मुद्दे केसीआर सरकार की परेशानी का सबब बन सकते हैं। भर्तियों के मुद्दे पर राज्य में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन करते रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में बेरोजगारों को भत्ता देने का एलान भी किया गया था, जिसको लागू नहीं करने से युवाओं में गुस्सा है। इस बीच युवाओं को रिझाने के लिए बीआरएस ने 'विद्यार्थी और युवजन' जैसे कार्यक्रम शुरू किया गया है। मंत्री केटीआर रामाराव का दावा है कि राज्य सरकार ने दो लाख युवाओं को नौकरियां देने का अपना काम किया है।
इस चुनाव में राज्य में महिलाओं, आदिवासियों और किसानों से जुड़े मुद्दे भी हैं। इन मुद्दों को लेकर जहां विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं, वहीं सरकार का दावा है कि उसने सभी वर्गों के लिए काम किया है।
हाल ही में निजामाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीआरएस पर परिवारवाद का आरोप लगाया था। पीएम ने कहा था कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रजा का महत्व होना चाहिए, परिवारवादियों का नहीं और इन्होंने तो लोकतंत्र को लूट-तंत्र बना दिया है, प्रजातंत्र को परिवार-तंत्र बना दिया है। इसके साथ ही पीएम ने महिला आरक्षण को भी सामने रखा था।
महिला वोटर को साधने के लिए कर्नाटक की तरह तेलंगाना में भी कांग्रेस गारंटियों की बात कर रही है। राहुल और प्रियंका ने कई मौकों पर कर्नाटक विधानसभा में पार्टी द्वारा किए गए चुनावी वादों का जिक्र किया है।
किनके-किनके बीच मुकाबला है?
इस चुनाव में मुख्य मुकाबला बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की उम्मीद है। इसके अलावा टीडीपी और एआईएमआईएम जैसे दल भी अपनी दावेदारी को मजबूत बता रहे हैं।
पिछली बार कब हुए थे चुनाव?
राज्य में पिछले चुनाव सात दिसंबर 2018 को हुए थे। 2018 के चुनाव में 119 सदस्यीय विधानसभा में बीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, आईएमआईएम को सात, टीडीपी को दो, भाजपा को एक, एआईएफबी को एक सीट मिली थी। इसके अलावा एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी।
अब मिजोरम की राजनीति समझते हैं…
राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति क्या है?
इस वक्त राज्य में मिजोरम नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ की सरकार है, जिसके सामने चुनाव में अपनी सत्ता बचाने की चुनौती होगी। वहीं कांग्रेस दोबारा राज्य की सत्ता में काबिज होने के लिए जोर-आजमाइश लगा रही है। इससे पहले चार अक्तूबर को 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा के लिए एमएनएफ ने सभी सीटों पर नामों की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री और एमएनएफ अध्यक्ष जोरामथंगा आइजोल पूर्व-I से चुनाव लड़ेंगे। यह सीट सीएम ने 2018 के विधानसभा चुनावों में जीती थी।
वहीं राज्य के अन्य मुख्य विपक्षी दलों कांग्रेस, भाजपा और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने अब तक कोई सूची नहीं जारी की है।
वर्तमान में सियासी समीकरण की बात करें तो, इस वक्त 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा में एमएनएफ के 28, कांग्रेस के पांच, जेडपीएम के एक और भाजपा के एक विधायक हैं। पांच सीट पर निर्दलीय विधायक हैं।
मुख्यमंत्री पद के चेहरे कौन?
राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री और सत्ताधारी एमएनएफ प्रमुख जोरामथंगा हैं। एमएनएफ इस बार भी उनके चेहरे के साथ ही चुनाव में जाएगी।
वहीं भाजपा के रुख की बात करें तो वह इस चुनाव में सामूहिक नेतृत्व के जरिए जनता के सामने जा रही है। मिजोरम भाजपा अध्यक्ष वनलाल हमुआका राज्य के चर्चित चेहरों में गिने जाते हैं। पार्टी यहां अपने आंकड़ों को और मजबूत करने को देखेगी।
कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री पद की रेस में कई चेहरों की चर्चा होती है। इनमें मिजोरम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष लालसावता शामिल भी हैं।
चुनाव प्रचार के चेहरे कौन?
चुनाव प्रचार में सत्ताधारी एमएनएफ के लिए जोरमथंगा ही सबसे बड़े चेहरे हैं। फिलहाल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के लिए स्थानीय नेतृत्व सक्रिय नजर आ रहा है। भाजपा पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए मोदी सरकार की योजनाओं को प्रमुखता दे रही है।
चुनाव के बड़े मुद्दे क्या हैं?
इस चुनाव में राज्य में महिलाओं, युवाओं और मजदूरों से जुड़े मुद्दे हैं। इन मुद्दों को लेकर विपक्षी दल सरकार को घेर रहे हैं। किसानों के मुद्दों को भी पार्टियां लगातार उठा रही हैं। भाजपा ने कहा है कि उसकी सरकार स्व-रोजगार शुरू करने वालों को पांच लाख रुपये की वित्तीय मदद देगी। पार्टी ने किसानों को ब्याज मुक्त किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) ऋण प्रदान करने के अपने लक्ष्य को भी सामने रखा है।
किनके-किनके बीच मुकाबला है?
इस चुनाव में मुख्य मुकाबला एमएनएफ, जेडपीएम, कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की उम्मीद है। कांग्रेस ने राज्य विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में दो स्थानीय पार्टियों पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) और जोरम नेशनलिस्ट पार्टी (जेडएनपी) के साथ मिलकर 'मिजोरम सेक्युलर अलायंस' (एमएसए) बनाया है।
वहीं भाजपा इस बार 15 से 20 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। इससे पहले भाजपा ने राज्य में सत्तारूढ़ एमएनएफ को हराकर मारा स्वायत्त जिला परिषद (एमएडीसी) के लिए ग्राम परिषद चुनाव जीता था। भाजपा ने कुल 99 ग्राम परिषदों में से 41 सीटें जीतीं। एमएनएफ ने 25 सीटें हासिल कीं, उसके बाद कांग्रेस आठ सीटें हासिल करने में सफल रही, जबकि जेडपीएम ने एक ग्राम परिषद हासिल की।
पिछली बार कब हुए थे चुनाव?
राज्य में पिछले चुनाव 28 नवंबर 2018 को हुए थे। इस चुनाव में 40 सदस्यीय विधानसभा में एमएनएफ को 27 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने चार सीटें, जबकि भाजपा को एक सीट पर विजय मिली थी। इसके अलावा आठ सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली थी।