Election 2024: क्या BJP के 400 पार नारे से मची कांग्रेसियों में भगदड़, कैसे टूटी विश्वास और विचारधारा की डोर?
पंजाब में कांग्रेस के तीन बार सांसद रहे रवनीत सिंह बिट्टू मंगलवार को पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। जब उनसे कांग्रेस छोड़ने का कारण पूछा गया है कि उन्होंने कहा, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। न पार्टी से और न ही शीर्ष नेतृत्व से...
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लोकसभा चुनाव की दहलीज पर राजनीतिक दलों के नेताओं में पाला बदलने की होड़ मची है। हालांकि पार्टी छोड़ने वाले सर्वाधिक नेता, कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं। उनकी प्राथमिकता, भाजपा में शामिल होना रहा है। आखिर चुनाव के मुहाने पर खड़े राजनीतिक दलों के नेता, अपनी पार्टी को अलविदा क्यों कह रहे हैं। कई बड़े चेहरे, जो भाजपा में शामिल हुए हैं, उन्होंने यह भी बता दिया कि उन्हें पार्टी या शीर्ष नेतृत्व से कोई शिकायत नहीं है। सियासत के जानकार खुद ही यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या मोदी के '400' पार के नारे ने कांग्रेस के सिपहसालारों में भगदड़ तो नहीं मचा दी है? कांग्रेस के मजबूत नेताओं को लगता है कि केंद्र में तीसरी बार भाजपा ही आ रही है। ऐसे में अगर वे अपनी सीट जीत भी लेते हैं, तो उन्हें विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा।
एक दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए तीन बार के सांसद रवनीत बिट्टू ने भी कहा है, लंबे समय तक विपक्ष में बैठे रहेंगे, तो अपने क्षेत्र का विकास कैसे कराएंगे। दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, मौजूदा राजनीतिक हालात में 'विश्वास और विचारधारा' की डोर टूट रही है। नेताओं के पाला बदलने के पीछे यही एक बड़ी वजह है।
पंजाब में कांग्रेस के तीन बार सांसद रहे रवनीत सिंह बिट्टू मंगलवार को पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। जब उनसे कांग्रेस छोड़ने का कारण पूछा गया है कि उन्होंने कहा, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। न पार्टी से और न ही शीर्ष नेतृत्व से। हमें अपने क्षेत्र के लोगों को भी जवाब देना होता है। कब तक विपक्ष में बैठे रहेंगे। संसद में बोलते रहेंगे। क्षेत्र का विकास तो बाधित हो जाता है। लोगों का ही कहना है कि 2024 में तो मोदी ही आ रहे हैं। इससे लोगों को भी उम्मीद बंध जाती है कि उनका नेता अगर संसद में पहुंचता है, तो विकास की राह प्रशस्त होगी। इससे पहले 14 मार्च को पंजाब कांग्रेस की सांसद परनीत कौर ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली थी। पिछले सप्ताह हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के दो बार सांसद रहे नवीन जिंदल ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी। उन्होंने कांग्रेस के प्रति कोई विरोधी बयान नहीं दिया। बुधवार को पंजाब में आप सांसद सुशील कुमार रिंकू भी भाजपा में शामिल हो गए।
मध्यप्रदेश में जनवरी 2024 से लेकर मार्च 2024 तक कांग्रेस के लगभग आठ हजार नेता और कार्यकर्ता, भाजपा में शामिल हो गए थे। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह, पूर्व विधायक संजय शुक्ला, विशाल पटेल, अर्जुन पलिया और दिनेश अहिरवार आदि शामिल हैं। इसी तरह से राजस्थान में 10 मार्च को कांग्रेस पार्टी के 25 दिग्गज नेता, भाजपा में शामिल हो गए थे। इनमें लालचंद कटारिया, राजेंद्र यादव, लाल बैरवा और रिछपाल मिर्धा का नाम शामिल है। लालचंद कटारिया तो अशोक गहलोत सरकार में कृषि और पशुपालन मंत्री रहे हैं। वे जयपुर ग्रामीण सीट से सांसद रहे हैं। यूपीए-2 में मंत्री भी रहे थे। राजनीतिक विशेषज्ञ, रशीद किदवई कहते हैं, रवनीत सिंह बिट्टू का बयान बहुत कुछ कहता है। उसे कांग्रेस पार्टी को गंभीरता से लेना चाहिए। ऐसी स्थिति दूसरे नेताओं के साथ भी संभावित है। कांग्रेस में आखिर ऐसी भगदड़ क्यों मची है। इसके पीछे की वजह कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व है। पार्टी में अविश्वास की भावना क्यों पनपी है।
जिस विचारधारा का दम, कांग्रेस पार्टी भरती है, आज उसके नेता उससे दूर क्यों जा रहे हैं। दमदार नेताओं को अपना सियासी भविष्य क्यों अंधकारमय नजर आने लगा है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपने नेताओं में विश्वास पैदा क्यों नहीं कर पा रहा। बतौर किदवई, पहले भी ऐसे अवसर आए हैं, जब कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हुई थी, लेकिन चुनाव के मौके पर पार्टी के नेताओं में ऐसी भगदड़ कभी नहीं देखने को मिली। वजह, उस वक्त नेताओं में पार्टी को लेकर यह भरोसा था कि दोबारा से लड़ेंगे और जीतेंगे। अब वह भरोसा टूट चुका है। भाजपा ने जिस भरोसे के साथ 'इस बार 400 पार' का संदेश जनता में दिया है, वह काम कर रहा है।
लोगों के जेहन में यह सवाल उठता है कि इस बार भाजपा को विपक्ष किस तरह टक्कर देगा। INDI गठबंधन का बिखरना और भाजपा का आक्रामक प्रचार, इन सबके बीच कांग्रेस नेताओं को लगता है कि केंद्र में विपक्ष कमजोर पड़ चुका है। किदवई ने कहा, नेताओं के लिए अब विचारधारा की लड़ाई कोई मायने नहीं रखती। वे फौरी तौर पर लाभ चाहते हैं। इसके जरिए वे अपने उस क्षेत्र के साथ भी न्याय कर सकते हैं, जिसने उन्हें अपने बहुमत से चुनकर संसद में भेजा है। पार्टी नेतृत्व पर नेताओं का विश्वास भी पहले जैसा नहीं रहा। कांग्रेस पार्टी के भीतर ही किसी मुद्दे पर दो गुट खड़े हो जाते हैं। अनुच्छेद 370 पर पार्टी में मतभेद था। अब राहुल गांधी के जातिगत गणना के राग पर मतभेद रहा है। ऐसे में पार्टी की मूल विचारधार और भरोसा, दोनों ही टूट जाते हैं। नतीजा, पार्टी में भगदड़ मच जाती है।