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साक्षात्कार: 'कामयाबी के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता जरूरी'; श्रीधर वेम्बु ने तेनकासी को बनाया तकनीक की नई काशी

Indushekhar Pancholi इंदुशेखर पंचोली
Updated Mon, 13 Oct 2025 07:07 AM IST
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सार

डॉ. श्रीधर वेम्बु...खांटी ग्रामीण परिवेश से निकले, सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। बारहवीं कक्षा की परीक्षा में अव्वल रहे। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की कठिन संयुक्त प्रवेश परीक्षा की मेरिट में 10वां स्थान हासिल किया। आईआईटी मद्रास से  इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। फिर, अमेरिका में न्यू जर्सी के प्रिंसटन विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वह शिक्षा में कॅरिअर बनाना चाहते थे। पर, नियति ने उनकी राह अलग ही तय की थी। अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ग्लैमर छोड़कर उन्होंने अपने भाइयों-सहपाठी के साथ सॉफ्टवेयर कंपनी एडवेंटनेट की नींव डाली, जो आज जोहो कॉर्प के रूप में सफल उद्यम का वटवृक्ष है। अमर उजाला के लिए डॉ. इंदुशेखर पंचोली ने तेनकासी में डॉ. श्रीधर से लंबी बातचीत की, उनके तीस साल के सफर और संकल्प, सृजन एवं स्वप्न को जानने की कोशिश की। पेश है खास अंश...

Exclusive interview with Dr. Sridhar Vembu, Founder of Zoho Corporation, an Indian multinational company
जोहो कॉरपोरेश के संस्थापक श्रीधर वेम्बु। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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काशी...अपनी सांस्कृतिक समृद्धि से मुग्ध कर देने वाली देश की आध्यात्मिक राजधानी, जहां ज्ञान, आस्था एवं परंपरा का अनूठा संगम सभी को सहज आकर्षित करता है। ऐसी ही एक और नगरी है, तमिलनाडु की तेनकासी यानी दक्षिण की काशी। पश्चिमी घाट की तलहटी में बसे तेनकासी की परंपरागत पहचान विश्वनाथर मंदिर तो है ही, अब यहां उद्यमिता, सॉफ्टवेयर एवं नवाचार का संगम है। गंगा की तरह, यहां भी चित्तार नदी है। लेकिन, इसकी नई पहचान तकनीक की नदी है। यह संभव हुआ, भारत की बहुराष्ट्रीय कंपनी जोहो कॉरपोरेशन से, जिसे संस्थापक डॉ. श्रीधर वेम्बु ने आकार दिया है।



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Exclusive interview with Dr. Sridhar Vembu, Founder of Zoho Corporation, an Indian multinational company
जोहो - फोटो : अमर उजाला

सवाल- देश जोहो की कामयाबी के जश्न में शामिल है,उत्साहवर्धन कर रहा है। आपकी यात्रा कैसी रही? आज आप कैसा महसूस करते हैं?
जवाब- मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। यही कहना चाहता हूं कि अरट्टै या जोहो सिर्फ हमारी कंपनी नहीं है। यह अब इस देश की, भारत की संतान है। हमारे देश को इसकी जरूरत है। मुझे बहुत खुशी है कि हम इसमें एक छोटी-सी भूमिका निभा पा रहे हैं। हम इसके लिए महज एक माध्यम हैं।

सवाल- जोहो को बिना वेंचर फंडिंग के अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाना, दुर्लभ उपलब्धि है। बूटस्ट्रैप मॉडल को कैसे इतना प्रभावशाली बनाया? क्या चुनौतियां आईं और आगे किस तरह देखते हैं?
जवाब-
बूटस्ट्रैप मॉडल शुरुआत में थोड़ा धीमा है। मैं इसे इस तरह देखता हूं कि आप जीरो से नहीं, बल्कि माइनस पांच वर्ष से शुरू करते हैं। फिर आप व्यवसाय सीखते हैं, गलतियां करना सीखते हैं, तब आप जीरो पर आते हैं। तब आप शुरुआत करते हैं। जब आप सीख जाते हैं, तो यह गति पकड़ता है। फंडिंग मॉडल, शायद उन पांच वर्षों को तेजी से पूरा कर देता है। लेकिन, सीखने का यह तरीका जीवनभर का सबक भी है। यह सीख आपके साथ जीवनभर रहती है।

 दूसरी बात, यह हमारे देश, हमारे इंजीनियरों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकांश प्रौद्योगिकी समस्याएं, जैसे अरट्टै या ऐसे किसी भी उदाहरण को लें, उन्हें दीर्घावधि की प्रतिबद्धता और फोकस की जरूरत होती है। फंडिंग मॉडल, वेंचर कैपिटल में आज वह लंबी अवधि नहीं है। उनके लिए, लंबी अवधि के मायने शायद पांच या दस साल है।


उदाहरण के लिए, एक बहुत अच्छा चैट इंजन बनाने में कम से कम 15-20 साल लगते हैं। एक बहुत अच्छे अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर फैब की 10-15 साल की यात्रा हो सकती है। इस तरह के गहन प्रौद्योगिकी कार्य, जिनमें दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है, वेंचर कैपिटल मॉडल में आसानी से संभव नहीं हैं। इसके लिए अलग तरह की सोच की आवश्यकता होती है।, लोगों को इसके लिए प्रतिबद्ध रहना पड़ता है। परिणाम के लिए उन्हीं लोगों को दस साल तक एक साथ काम करना पड़ता है। ऐसे फंडिंग मॉडल असल में उस दृष्टिकोण को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।

सवाल- जिस दौर में हम हैं, वैल्यूएशन, फिर नया वेंचर, फिर एक और वैल्यूएशन, फिर एग्जिट। एक अंधी दौड़?
जवाब-
मेरी सोच के अनुसार एग्जिट का मतलब है-अंत। हमेशा ऐसे ही सोचा है।

सवाल- 2025 में आपने सीईओ का पद छोड़ दिया, अब आप मुख्य वैज्ञानिक हैं। क्यों?
जवाब-
4-5 साल से हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के कारण प्रौद्योगिकी/तकनीक में तेजी देख रहे हैं, जो बड़ा ट्रेंड बन रहा है। अनुमान है कि एआई हर उद्योग को बदल देगा, जिसमें सॉफ्टवेयर उद्योग भी शामिल है। शायद पांच या दस वर्षों में कोई भी उद्योग पहले जैसा नहीं रहेगा। हम दस साल से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीकों पर काम कर रहे हैं। लेकिन, हम प्रौद्योगिकी के विकास में तेजी लाना चाहते थे। मेरी डीप टेक्नोलॉजी में काम करने की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता भी थी। मैं हमेशा इस पर काम करता रहा हूं। अब मैं अपने प्रयास का और अधिक हिस्सा इसे समर्पित करना चाहता था। इसीलिए नई भूमिका चीफ साइंटिस्ट को चुना। अब मैं अपना लगभग 70-75 फीसदी समय प्रौद्योगिकी विकास को समर्पित करता हूं। मैं कोड्स में गहराई से लगा हूं। यह बेहद संतोषजनक है क्योंकि मैं इंजीनियरों के साथ सीधे महत्वपूर्ण समस्याओं पर काम कर पा रहा हूं, जो मुझे बहुत पसंद है।

सवाल- जोहो को आपने माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गज के मुकाबले ब्रेड्थ एंड डेप्थ में बेहतर बनाया। कैसे?
जवाब-
हमारे पास पूरा ऑफिस सुइट है। क्लाउड स्टोरेज भी है, जिसे हम 'वर्क ड्राइव' कहते हैं, एक ईमेल और चैट प्रोडक्ट जोहो क्लिक है। वास्तव में जोहो क्लिक दस साल से अधिक समय से है। इसका उपभोक्ता संस्करण 'अरट्टै' है। जोहो क्लिक पहले आया, फिर 'अरट्टै' वहीं से निकला। उन्हीं तकनीकों का उपयोग हमने उपभोक्ता संस्करण और पूरे ऑफिस सुइट के लिए किया, जो दुनिया में केवल तीन कंपनियों के पास है।

हमारे पास सीआरएम, अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर, एचआर सॉफ्टवेयर, सभी व्यावसायिक एप्लिकेशन हैं। अब ईआरपी बाजार में भी बहुत मजबूती से शामिल हो रहे हैं। एक कहावत है- सबसे अच्छी कंपनियां या सबसे अच्छे कारीगर स्वयं अपने उपकरण बनाते हैं। हम नीचे के फ्रेमवर्क और टूल में भी खासा निवेश करते हैं। वे एक मायने में, अपने आप में व्यवसाय बन रहे हैं। यह सब हमारे अपने प्लेटफॉर्म पर, बुनियादी ढांचे में होस्ट किया गया है। संगठन को इन सभी तकनीकों की आवश्यकता होती है।

सवाल- अपने पूरे बैंडविड्थ पर अरट्टै कब तक शुरू होगा?
जवाब-
संपूर्ण उत्पाद कम से कम दस वर्ष से अधिक की कड़ी मेहनत का परिणाम होगा। कुछ प्रौद्योगिकियां 15 साल की हैं। यही इन सभी प्रौद्योगिकियों की चुनौती है। प्रोडक्ट सरल लग सकता है, लेकिन पीछे की तकनीक सरल नहीं है। यह बहुत सारी प्रौद्योगिकी के लिए सच है। अरट्टै ही क्यों, हमारे सामान्य नेल कटर को ले लीजिए। आप भारत में किसी भी जगह, किसी भी छोटे शहर में जाते हैं, आप एक नेल कटर खरीद सकते हैं। उस पर 'मेड इन चाइना' या 'मेड इन कोरिया' लिखा होगा। ऐसा क्यों है? क्योंकि यह इतना सरल उत्पाद नहीं है। धातु विज्ञान में इसकी तीक्ष्णता को बनाए रखना होगा, अन्यथा यह नहीं काटेगा। चीनी या कोरियाई उत्पाद में भी आप गुणवत्ता में अंतर पा सकते हैं।

 सवाल- अरट्टै लो-बैंडविड्थ में, लो-एंड फोन में प्रभावशाली तरीके से चल सकता है। इसके पीछे क्या सोच थी?
जवाब-
तमिल में अरट्टै का मतलब है गप-शप, चिट चैट, मजेदार चैट। हम अरट्टै के लिए गैर-गंभीर छवि बनाना चाहते हैं। इसीलिए हमने यह नाम रखा, जो अब गूंज रहा है। लोग इसका उच्चारण सीख रहे हैं। मुझे लगता है कि यह लोकप्रिय हो जाएगा। जरूरत का कारण इसके पीछे की तकनीकें हैं, वॉइस कॉलिंग, वीडियो, लो बैंडविड्थ ऑप्टिमाइजेशन, 100 करोड़ उपयोगकर्ताओं तक स्केलिंग। यह बहुत जटिल है। इसके लिए बहुत अधिक अनुसंधान और विकास की आवश्यकता होती है।

दूसरा कारण है, यह सारा डाटा हमारी भाषा समझने की क्षमता बढ़ा सकता है। हो सकता है कि आप हिंदी में बोलें, मैं इसे तमिल में सुनूं। यह क्षमताएं तभी निर्मित की जा सकती हैं जब ये सभी लोग एक-दूसरे से बात कर रहे हों। फिर उनकी अनुमति से, हम कहते हैं-क्या हम अनुवाद के लिए एक एआई एजेंट को प्रशिक्षित कर सकते हैं। आज भारत के पास यह डाटा नहीं है। यह सब व्हाट्सएप और बाकी ने इकट्ठा किया है। हमें डेटा यहां बनाए रखने की जरूरत है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि डाटा नया 'ऑयल' है, हमें अपने डाटा को विदेशी उद्यमों के पास नहीं खोना चाहिए।

डोसा, इडली और अरट्टै सुझाव है कि 'अरट्टै' का नाम बदल दीजिए।
हम श्याओमी जैसे विदेशी उत्पाद लेते हैं, तो हमारे ग्रामीण भी उच्चारण सीखते हैं। तो 'अरट्टै' भी सीख सकते हैं, यह आसान है। हम मजेदार मार्केटिंग अभियान बना रहे हैं...जिस जगह से डोसा और इडली आई, वहीं से 'अरट्टै' आता है। आप कह सकते हैं- डोसा, इडली और अरट्टै।

सवाल- आखिर धन का उद्देश्य क्या है? किसी को अमीर क्यों बनना चाहिए? 
जवाब- मेरे लिए, हमारी सभ्यता का मूल यह है कि धन का उपयोग आम जनता, समाज की भलाई के लिए किया जाता है। अगर आप मंदिरों, तीर्थ स्थलों, खाद्य वितरण केंद्रों, कल्याण मंडपम, अस्पताल, शैक्षणिक संस्थानों को देखते हैं, तो यह सब धनी लोगों, राजाओं ने बनाए थे। मैंने खुद चेन्नई स्थित जयगोपाल गरोडिया स्कूल से पढ़ाई की। गरोडिया राजस्थान से हैं, लेकिन वह चेन्नई में प्रमुख व्यवसायी थे। उन्होंने बहुत सारे स्कूलों को सहयोग किया। मैं उसका लाभार्थी हूं। मुझे उनकी उदारता का लाभ मिला। मेरे स्कूल में बिल्डिंग नहीं थीं, फर्श पर बैठना पड़ता था। उनके दान से बिल्डिंग बनी। हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने धन से ऐसे बच्चों को सहयोग करें। यह, मेरे लिए धार्मिक कैपिटलिज्म है। गरोडिया एक धार्मिक कैपिटलिस्ट थे। 

धार्मिक कैपिटलिज्म पूंजीवाद में धर्म जरूरी
मेरे गुरु एस. गुरुमूर्ति ने मुझे व्यापार का धर्म सिखाया। वे वैश्य धर्म को परिभाषित करते हुए कहते हैं, पश्चिमी पूंजीवाद वैश्य धर्म से धर्म रहित है। आप धर्म वाले हिस्से को बाहर निकाल देते हैं। वहीं से धार्मिक कैपिटलिज्म आता है। इसमें धर्म शामिल करना होगा।

सवाल- जोहो इस एआई युग में अपने स्टाफ, इंजीनियर्स को कैसे प्रशिक्षित कर रहा है?
जवाब- हमारे पास बहुत अच्छी क्षमताएं हैं। हमने अपने मॉडल विकसित किए हैं, जो 7-8 अरब पैरामीटर के हैं। हम 70 अरब के पैरामीटर पर भी काम कर रहे हैं। बड़े मॉडल 1 ट्रिलियन पैरामीटर रेंज में हैं। हम सर्वम एआई के साथ काम कर रहे हैं, ताकि बड़े घरेलू मॉडल, अपनी ट्रेनिंग, इन सब पर काम कर सकें।

एआई से बड़ा खतरा यह है कि नौकरियों का क्या होगा? मैं केवल सॉफ्टवेयर नौकरियों में वृद्धि की उम्मीद नहीं करूंगा। एआई से पहले, सॉफ्टवेयर हाथ से बुनाई के काम जैसा था। आज आपके पास मशीन लूम हैं, शक्तिशाली मशीनें जो सॉफ्टवेयर बनाती हैं। यह एक चुनौती हो सकती है। हमें खुद भी मशीनें बनानी होंगी, हम कुछ ऐसा कर रहे हैं।

सवाल- आपने कहा है-अब जंग तकनीक से लड़ी जाएगी और इंजीनियर ही नए योद्धा हैं। तकनीकी स्वायत्तता के लिए देश को क्या करना चाहिए?
जवाब-
सभी युद्ध अब प्रौद्योगिकी की लड़ाई हैं। हमें प्रौद्योगिकी में महारत हासिल करनी होगी। शायद 500 अलग-अलग प्रौद्योगिकियां हैं। मटेरियल साइंस से लेकर लेजर, ड्रोन सॉफ्टवेयर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। सभी जेट इंजन, पनडुब्बी प्रणाली। संदेशों को सुरक्षित रखने के लिए क्वांटम एन्क्रिप्शन की तकनीक। यह वह चीजें हैं, जहां हमारे देश को व्यापक और गहरी क्षमताओं की आवश्यकता है। यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि कोई और हमें नियंत्रित न कर पाए। स्वतंत्र राष्ट्र, संप्रभु राष्ट्र के रूप में हमारी समृद्धि इन सभी प्रौद्योगिकियों पर महारत हासिल करने पर निर्भर करती है। इनके लिए हमें दीर्घकालिक फोकस रखना होगा। जब मैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में था, तो सुझाव दिया था कि यह सब या अधिकांश हिस्सा निजी क्षेत्र में होना चाहिए। सरकार की भूमिका यह होनी चाहिए कि वह इन क्षेत्रों की पहचान कर रैंकिंग करे। उदाहरण के लिए, हमें लेजर, जेट इंजन रॉकेट या एआई चाहिए, तो उस क्षेत्र की कंपनियों की सालाना रैंकिंग करें। प्रतिस्पर्धा कराएं, रैंक के आधार पर कंपनियों को पुरस्कृत करें। एलआईसी जैसे संस्थान बेहतर रैकिंग वाले उद्यमों को विस्तार के लिए ऋण दे सकते हैं। यह कुछ ऐसा है, जो हम पहले से ही करते हैं, उदाहरण के लिए सीबीएसई या जेईई में रैंकिंग।

आप जानते हैं हम जेट इंजन टेक्नोलॉजी में फ्रांसीसी या अमेरिकियों या किसी और के मुकाबले कहां रैंक करते हैं? रोबोटिक्स में हम चीनियों के मुकाबले कहां रैंक करते हैं? ऐसी रैंकिंग की सूची होनी चाहिए। फिर कंपनियां एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करेंगी, निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की स्वाभाविक प्रवृत्ति हावी होने लगेगी। फिर हम आगे बढ़ सकते हैं। शुरू में, हम बहुत अच्छे नहीं हो सकते, हमें यह स्वीकार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, चीनियों के मुकाबले बहुत अच्छे नहीं हैं, तो हम स्वीकार करते हैं। फिर हर साल हमारी रैंक में सुधार होता है, शायद 4 या 5 साल में हम बेहतर स्तर पर पहुंच सकते हैं। दस साल में हम विश्वस्तरीय हो सकते हैं।
 

सवाल- एच-1बी वीजा विवाद पर आह्वान किया था- आओ घर लौट चलें। एआई और सॉफ्टवेयर में हम क्या नया क्रिएट कर सकते हैं, इन वैज्ञानिकों के लिए, जिन्हें हम वापस लाना चाहते हैं?
जवाब-
आज अगर एआई को देखें, उदाहरण के लिए चैट जीपीटी या किसी भी सिस्टम को, तो वे अब भी 100 फीसदी विश्वसनीय नहीं हैं। जैसे, आप उनसे एक निबंध लिखने के लिए कहें, तो उसमें गलतियां हो सकती हैं। व्यावसायिक दुनिया में इन गलतियां के लिए गुंजाइश नहीं हो सकती। यदि आप चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील हैं, तो आप गलती नहीं कर सकते। इसीलिए व्यावसायिक दुनिया में इसे अपनाने में अभी भी, समस्याएं हैं। सॉफ्टवेयर के साथ भी ऐसा ही है। एआई बहुत सारा कोड उत्पन्न कर सकता है, लेकिन कोड में गलतियां हो सकती हैं। कभी-कभी गंभीर गलतियां, जैसे सुरक्षा संबंधी गलतियां, जो डाटा को उजागर कर सकती हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए बहुत अधिक अनुसंधान और विकास की आवश्यकता होती है। हम इस पर काम कर रहे हैं कि एआई को विश्वसनीयता के साथ कैसे जोड़ा जाए। इस अनुसंधान में हम अनूठे नवाचार कर रहे हैं।


 

सवाल- आपने कहा-जीपीएस, ऑपरेटिंग सिस्टम्स, चैट जीपीटी, बाहरी तकनीक हैं, खतरनाक हैं। हम कैसे भरोसेमंद तकनीक बना सकते हैं?
जवाब- आप पांच लोगों के साथ नई कंपनी बनाकर यह नहीं कह सकते कि मैं ऑपरेटिंग सिस्टम बनाऊंगा। चुनौती बेहद कठिन है। यह बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे एक नई कंपनी कह रही है कि हम जेट इंजन बनाएंगे। पर खासी कंपनियां हैं, जिनके पास पर्याप्त संसाधन, कर्मचारी और संपत्ति है। हर बड़ी कंपनी के लिए मजबूत रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रभाग जरूरी है। यह सिर्फ उनके वाणिज्यिक हित में नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित में भी है। मैंने सरकार को प्रस्ताव दिया है कि सीएसआर की तरह ही, रिसर्च एंड डेवलपमेंट दायित्व हो सकता है। देश के रूप में, आरएंडडी में हमारा निवेश बहुत कम है। निजी क्षेत्र इसे ठीक कर सकता है। आप मजबूत टीमें बनाइए, फिर उन पर भरोसा कीजिए।

आप कुछ अच्छे लोगों का चयन करते हैं, उन्हें आजादी देते हैं और कहते हैं, यह समस्या है, जिसे हल करना है। उन लोगों में प्रतिबद्धता और जुनून होना चाहिए। जैसे मुझे रोबोटिक्स, कंपाइलर या जेट इंजन की समस्या हल करनी है। हर छह महीने या एक साल में समीक्षा करके हम प्रगति का आकलन कर सकते हैं। स्वतंत्र विशेषज्ञों से भी मूल्यांकन करवा सकते हैं। मैं हमेशा कहता हूं कि आरएंडडी महंगा नहीं है, लेकिन इसमें समय बहुत लगता है। उदाहरण के लिए, प्रति वर्ष 100 करोड़ भी, जो प्रमुख कॉर्पोरेट हाउस के लिए कोई बड़ी राशि नहीं है। लेकिन, सार्थक परिणाम देने के लिए इसे 5-10 साल की अवधि तक बनाए रखना होगा।
 

सवाल- हाल ही में कई केंद्रीय मंत्रियों ने जोहो टूल्स अपनाएं हैं। देसी तकनीक को हम कैसे सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में इंट्रोड्यूस कर सकते हैं?
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने एक प्रतिस्पर्धा मूल्यांकन किया था, जो लगभग दो-ढाई साल तक चला। इसमें सुरक्षा एवं सोर्स ऑडिट समेत लगभग 15-20 ऑडिट हुए। कड़े मूल्यांकन के तहत प्रतिस्पर्धा से जोहो का चयन हुआ। सरकार पहले से ही जोहो में 15 लाख मेलबॉक्स उपयोग कर रही है।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जो घोषणा की है, यह उसका विस्तार और ऑफिस सुइट का उपयोग करना है, जो पहले से ही उपलब्ध हैं। इसका दिलचस्प हिस्सा यह है कि ये दिल्ली में सरकारी विशिष्ट डाटा सेंटर अलग से स्थापित है। यह वह डाटा है, जिसे जोहो न देख सकता है, न प्रबंधित कर सकता है। सरकार ही डाटा प्रबंधन कर रही है, हम सिर्फ सॉफ्टवेयर देते हैं।

सवाल- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में आपकी भूमिका क्या थी?
जवाब-
मैं दो साल तक सलाहकार बोर्ड में था जहां मेरी भूमिका प्रौद्योगिकी की जरूरतों के बारे में जागरूकता पैदा करना था। प्रौद्योगिकियां बहुत जटिल हो सकती हैं। जब कोई संकट आता है, तभी आपको पता चलता है कि इस विशेष तकनीक की आवश्यकता है। एक उदाहरण हाल ही में 'परमानेंट मैग्नेट्स' का है। चीन परमानेंट मैग्नेट्स देने से मना कर रहा था, तो हमारा पूरा इलेक्ट्रिक वाहन इकोसिस्टम प्रभावित हुआ। संयोग से, करीब दो साल पहले, मेरे एनएसएबी के साथी सदस्य अंशुमान त्रिपाठी ने इस मुद्दे को उठाया था और उन्होंने इसे संभावित कमजोरी बताया था। उद्योग की यही भूमिका है, समय से पहले देखना।
 

सवाल- आपने सिलिकॉन वैली छोड़ी और तमिलनाडु के अपने छोटे-से गांव में आकर नया वेंचर शुरू किया। इसके पीछे क्या प्रेरणा थी?
जवाब-
दो चीजें, पहली, हमारे देश में अब भी अधिकतर आबादी ग्रामीण है। हमारे उद्योग प्रतिभा के बूते पनपते हैं, उनकी जरूरत है। आप बंगलूरू, नोएडा, चेन्नई में देखेंगे, तो पाएंगे कि प्रतिभा छोटे शहरों, गांवों से पलायन करके आ रही होगी। मेरा मिशन यह है कि हम उस पलायन से कैसे बचें? हम उन्हें स्थानीय क्षेत्रों में कैसे रखें? इसका लाभ यह है कि आय पूरे समुदाय में प्रवाहित होती है। अगर यहां अच्छी नौकरी है, तो इससे पूरे परिवार, विस्तारित क्षेत्र को मदद मिलती है। अगर वही नौकरी, वही आय बंगलूरू या दिल्ली जाती है, तो यह जरूरी नहीं कि इस समुदाय तक पहुंचे और वह वहीं खर्च हो जाती है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में पैसे की जरूरत है। यहां हमारा हर एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार, विस्तारित परिवार, की मदद करेगा। मैं इस विचार को मजबूती देना चाहता हूं, क्योंकि परिवार बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर लोग दूर जा रहे हैं, तो वे परिवारों से दूर हो जाते हैं, सभी संबंध खत्म हो जाते हैं। इसी से जुड़ा दूसरा लक्ष्य है, हमें अपनी सभ्यता की जड़ों का पोषण करना होगा। महात्मा गांधी ने कहा था, भारत की आत्मा हमारे गांवों में बसती है और यह सच है। मैंने पिछले छह वर्षों से यहां यह अनुभव किया है।

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