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BR Gavai: अनुसूचित जाति में क्रीमीलेयर से कॉलेजियम प्रणाली तक पर पूर्व CJI गवई ने क्या कुछ कहा?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: देवेश त्रिपाठी Updated Sun, 23 Nov 2025 08:08 PM IST
सार

कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए पूर्व सीजेआई गवई कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद करती है। उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी व्यवस्था पूर्णतः परिपूर्ण नहीं होती है।

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Former CJI BR Gavai on creamy layer exclusion in SC Reservation collegium system Pending Case in Supreme Court
जस्टिस बीआर गवई - फोटो : PTI
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विस्तार
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भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई ने रविवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का पुरजोर तरीके से बचाव किया। इसके साथ ही अनुसूचित जाति कोटे से क्रीमीलेयर को बाहर रखने का पुरजोर समर्थन किया। गवई ने शीर्ष अदालत में अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी महिला न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करने पर खेद भी जताया।

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52वें मुख्य न्यायाधीश और भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले पहले बौद्ध जस्टिस गवई ने कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी कार्यभार स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, 'मैंने पदभार संभालने के साथ ही साफ कर दिया था कि मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी आधिकारिक कार्यभार स्वीकार नहीं करूंगा। अगले 9-10 दिन आराम की अवधि होगी। उसके बाद एक नई पारी।'
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अपने कार्यकाल के आखिरी दिन जस्टिस गवई ने लगभग सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की। इनमें लंबित मामले, राष्ट्रपति के संदर्भ पर उनके फैसले की आलोचना, अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने और अदालतों में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे शामिल थे।

अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू करने के अपने विचारों पर उन्होंने कहा, 'अगर फायदा बार-बार एक ही परिवार को मिलता रहेगा, तो वर्ग के भीतर एक वर्ग उभरेगा। आरक्षण उन लोगों तक पहुंचना चाहिए, जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है।'

उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के बहिष्कार के बिना, आरक्षण का लाभ पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ परिवारों की ओर से ही हथिया लिया जाता है, जिससे 'वर्ग के भीतर वर्ग' का निर्माण होता है। हालांकि, उन्होंने साफ किया कि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय कार्यपालिका और संसद को लेना है।

कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद करती है। उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी व्यवस्था पूर्णतः परिपूर्ण नहीं होती है। उन्होंने कहा, 'इस बात की आलोचना होती है कि न्यायाधीश स्वयं नियुक्ति करते हैं। लेकिन इससे स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। हम खुफिया ब्यूरो की जानकारी और कार्यपालिका के विचारों पर भी विचार करते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय कॉलेजियम का होता है।'

विधेयकों पर राज्यपालों के निर्णयों के लिए समय-सीमा को कम करने की आलोचना का जवाब देते हुए, जस्टिस गवई ने कहा, 'संविधान न्यायालय को ऐसी समय-सीमा पढ़ने की अनुमति नहीं देता जहां कोई समय-सीमा मौजूद ही न हो। लेकिन हमने कहा है कि राज्यपाल अनिश्चित काल तक नहीं बैठ सकते।'

लंबित मामलों को एक बड़ी समस्या बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने मामलों के वर्गीकरण के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का लाभ उठाना शुरू कर दिया है और इससे निपटना 'सर्वोच्च प्राथमिकता' होनी चाहिए।

जस्टिस गवई ने अपने कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक महिला न्यायाधीश की नियुक्ति न कर पाने पर खेद जताया, लेकिन स्पष्ट किया कि ऐसा प्रतिबद्धता की कमी के कारण नहीं हुआ। उन्होंने कहा, 'कॉलेजियम के निर्णयों के लिए कम से कम चार न्यायाधीशों की सहमति आवश्यक है। सर्वसम्मति आवश्यक है। ऐसा कोई नाम नहीं आया जिसे कॉलेजियम सर्वसम्मति से मंजूरी दे सके।'

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