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चिंताजनक: तीन गुना तेजी से पिघल रहे ग्रीनलैंड के ग्लेशियर, अनुमान से अधिक हो सकती है पिघली हुई बर्फ की मात्रा
एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: देव कश्यप
Updated Wed, 31 May 2023 07:07 AM IST
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सार
वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए 5,327 ग्लेशियरों और बर्फ शिखरों की मैपिंग की है। ये ग्लेशियर 1900 में लिटिल आइस एज के अंत में मौजूद थे।

पिघलते ग्लेशियर (सांकेतिक तस्वीर)।
- फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
20वीं सदी की शुरुआत की तुलना में ग्रीनलैंड के ग्लेशियर तीन गुना अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। यह खुलासा जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में हुआ है। अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीनलैंड के ग्लेशियरों के पिघलने में दीर्घकालिक बदलावों पर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। पिछली शताब्दी में ग्रीनलैंड के ग्लेशियरों की कम से कम 587 घन किमी बर्फ पिघल चुकी है, इस कारण समुद्र के जलस्तर में 1.38 मिमी की वृद्धि हुई है।

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वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए 5,327 ग्लेशियरों और बर्फ शिखरों की मैपिंग की है। ये ग्लेशियर 1900 में लिटिल आइस एज के अंत में मौजूद थे। इस युग में औसत वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई थी। अनुमान है कि जिस गति से बर्फ 2000 और 2019 के बीच पिघल गई, वह लंबी अवधि (1900 से अब तक) के औसत से तीन गुना अधिक है।
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अनुमान से भी अधिक हो सकती है पिघली हुई बर्फ की कुल मात्रा
पोर्ट्समाउथ विवि में पर्यावरण, भूगोल और भूविज्ञान स्कूल के डॉ. क्लेयर बोस्टन ने कहा, हमने केवल उन ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों का अध्ययन किया है जो क्षेत्रफल में कम से कम एक किमी थे, इसलिए अगर हम छोटी चोटियों को भी ध्यान में रखें तो पिघली हुई बर्फ की कुल मात्रा हमारे अनुमान से भी अधिक हो सकती है।
पिघली बर्फ के दूसरे सबसे बड़े स्रोत हैं ग्रीनलैंड के ग्लेशियर
लीड्स विश्वविद्यालय में भूगोल स्कूल के प्रमुख ऑथर डॉ. जोनाथन एल. कैरिविक ने कहा, बर्फ की चोटियां पिघली हुई बर्फ के पानी के बहाव में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं और वर्तमान में अलास्का के बाद पिघली बर्फ के दूसरे सबसे बड़े स्रोत ग्रीनलैंड के ग्लेशियर हैं। ग्रीनलैंड से उत्तरी अटलांटिक में पिघली हुई बर्फ के पानी का प्रभाव वैश्विक समुद्र-स्तर की वृद्धि से और ऊपर जाता है। यह उत्तरी अटलांटिक महासागर परिसंचरण, यूरोपीय जलवायु पैटर्न और ग्रीनलैंड के पानी की गुणवत्ता और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है। इसका मनुष्यों पर भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।