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Farm Laws: यूपी-पंजाब समेत पांच राज्यों का चुनावी फैक्टर, पांच बिंदुओं में समझिए इसके मायने
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किसान आंदोलन: ( फाइल फोटो)
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अमर उजाला
विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं। शुक्रवार सुबह भी उन्होंने पूरे देश को चौंकाया जब उन्होंने तीनों कृषि कानून वापस लेने का बड़ा फैसला सुनाया। पीएम ने कहा कि संसद सत्र में इस कानून को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। उन्होंने कहा कि शायद इस कानून को लेकर हम किसानों को समझा नहीं पाए। विपक्ष सरकार के इस फैसले को किसानों की बड़ी जीत बता रहा है।राहुल गांधी ने ट्वीट किया, देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया। अन्याय के खिलाफ ये जीत मुबारक हो! जय हिंद, जय हिंद का किसान! वहीं किसान नेता योगेंद्र यादव का कहना है कि यह किसानों की ऐतिहासिक जीत है। अंहकार का सिर झुका है और सच की जीत हुई है। सरकार ने न तो संविधान की बात सुनी न इंसानियत की। सरकार को समझ आ गया कि इस देश में किसान का महत्व है और वह वोट की भाषा समझ गई।
सांसदों-विधायकों को मिल रहा था फीडबैक
माना जा रहा है कि अगले साल पांच राज्यों खासतौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्र सरकार ने यह बड़ा फैसला किया है। बताया जा रहा है कि सरकार पर तीनों कृषि कानून को वापिस लेने का चौतरफा दबाव पड़ रहा था। भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व को लगातार इस बात का फीडबैक मिल रहा था कि जिस तरह किसान अभी तक आंदोलन पर बैठे हैं, ऐसे में यदि कृषि कानून वापिस नहीं लिए गए तो पार्टी को यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक यह फीडबैक देने वालों में भाजपा सांसद, विधायक और उनके जमीनी कार्यकर्ता थे। कई जगहों पर भाजपा नेताओं को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था। कुछ जानकार इसे लखीमपुर खीरी कांड से जोड़कर भी देख रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को यह बताया गया कि किसान आंदोलन के कारण देश में भाजपा के खिलाफ एक नकरात्मक माहौल बन रहा है और विपक्ष इसका सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है। इसलिए यदि किसान आंदोलन खत्म कर लिया जाए तो भाजपा के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा खत्म हो सकता है।

प्रियंका गांधी (फाइल फोटो)
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amar ujala
इन पांच बिंदुओं में विस्तार से समझिए कि किसान आंदोलन वापिस लेने की संभावित वजहें क्या हैं?
यूपी चुनाव
उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के लिए काफी अहमियत रहता है। लेकिन माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन तीनों कृषि कानूनों के कारण किसानों में भाजपा सरकार के लिए बड़ी नाराजगी थी। दूसरी तरफ गन्ने का भुगतान और फसल समर्थन मूल्य के कारण किसान पहले से नाराज थे। किसानों की इस नाराजगी का फायदा राष्ट्रीय लोक दल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उठाने की कोशिश कर रही थी। रालोद को इस आंदोलन से संजीवनी मिल रही थी। इसी दम पर रालोद के जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के साथ अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाने की तैयारी कर रहे थे। जबकि तमाम दलीलों और तर्कों के बाद भी भाजपा किसानों के बीच भरोसा कायम नहीं कर पा रही थी।
लखीमपुरी खीरी की घटना को लेकर तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो बड़ा सियासी फायदा उठाने की कोशिश की। विपक्ष की सक्रियता ने पार्टी को यहां चिंता मे डाल दिया था क्योंकि पश्चिम यूपी की 104 सीटों में से 53 सीटों पर किसान निर्णायक भूमिका में है। लिहाजा इस फैसले से उत्तर प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा खत्म हो सकता है। हालांकि किसान नेता अशोक धावले का कहना है कि 700 से ज्यादा किसान इस आंदोलन में शहीद हुए हैं इसे टाला जा सकता था। पीएम यह फैसला पहले कर सकते थे।
यूपी चुनाव
उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा के लिए काफी अहमियत रहता है। लेकिन माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन तीनों कृषि कानूनों के कारण किसानों में भाजपा सरकार के लिए बड़ी नाराजगी थी। दूसरी तरफ गन्ने का भुगतान और फसल समर्थन मूल्य के कारण किसान पहले से नाराज थे। किसानों की इस नाराजगी का फायदा राष्ट्रीय लोक दल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उठाने की कोशिश कर रही थी। रालोद को इस आंदोलन से संजीवनी मिल रही थी। इसी दम पर रालोद के जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी के साथ अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाने की तैयारी कर रहे थे। जबकि तमाम दलीलों और तर्कों के बाद भी भाजपा किसानों के बीच भरोसा कायम नहीं कर पा रही थी।
लखीमपुरी खीरी की घटना को लेकर तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने तो बड़ा सियासी फायदा उठाने की कोशिश की। विपक्ष की सक्रियता ने पार्टी को यहां चिंता मे डाल दिया था क्योंकि पश्चिम यूपी की 104 सीटों में से 53 सीटों पर किसान निर्णायक भूमिका में है। लिहाजा इस फैसले से उत्तर प्रदेश में एक बड़ा मुद्दा खत्म हो सकता है। हालांकि किसान नेता अशोक धावले का कहना है कि 700 से ज्यादा किसान इस आंदोलन में शहीद हुए हैं इसे टाला जा सकता था। पीएम यह फैसला पहले कर सकते थे।

सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल
- फोटो :
ट्विटर ANI
पंजाब चुनाव
किसान आंदोलन के कारण पंजाब में भी किसानों में भाजपा से कड़ी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में पंजाब और हरियाणा के किसान इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे। पंजाब की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि जिसे नजरअंदाज करने का जोखिम कोई भी सियासी दल नहीं उठा सकती।
हाल ही के कुछ चुनावी सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई कि अगले साल होने वाले चुनाव में पंजाब के 19 फीसदी लोगों ने कृषि कानूनों को सबसे बड़ा मुद्दा बताया था। इसी साल फरवरी में पंजाब में किसान आंदोलन के बीच सात नगर निगमों, 109 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई थी। जबकि भाजपा के हाथ सिर्फ 58 वार्ड आए। भाजपा को महज 2.67% ही वोट मिले थे। जबकि भाजपा यहां अपना संगठन मजबूत करने की कवायद कर रही है।
अब तक भाजपा अकाली दल के साथ पंजाब में चुनाव लड़ती रही थी, लेकिन कृषि कानूनों के कारण ही अकाली दल ने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया था। जिसके बाद भाजपा को पंजाब में कोई साथी नहीं मिल रहा था। भाजपा का संगठन वहां काफी कमजोर है और पार्टी पंजाब में भी अपने पैर पसारने की कोशिश कर रही है। इस तरह किसान आंदोलन वापिस लेने से पंजाब के किसानों को खुश करने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
किसान आंदोलन के कारण पंजाब में भी किसानों में भाजपा से कड़ी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में पंजाब और हरियाणा के किसान इस आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे। पंजाब की राजनीति किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि जिसे नजरअंदाज करने का जोखिम कोई भी सियासी दल नहीं उठा सकती।
हाल ही के कुछ चुनावी सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई कि अगले साल होने वाले चुनाव में पंजाब के 19 फीसदी लोगों ने कृषि कानूनों को सबसे बड़ा मुद्दा बताया था। इसी साल फरवरी में पंजाब में किसान आंदोलन के बीच सात नगर निगमों, 109 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई थी। जबकि भाजपा के हाथ सिर्फ 58 वार्ड आए। भाजपा को महज 2.67% ही वोट मिले थे। जबकि भाजपा यहां अपना संगठन मजबूत करने की कवायद कर रही है।
अब तक भाजपा अकाली दल के साथ पंजाब में चुनाव लड़ती रही थी, लेकिन कृषि कानूनों के कारण ही अकाली दल ने भाजपा से रिश्ता तोड़ लिया था। जिसके बाद भाजपा को पंजाब में कोई साथी नहीं मिल रहा था। भाजपा का संगठन वहां काफी कमजोर है और पार्टी पंजाब में भी अपने पैर पसारने की कोशिश कर रही है। इस तरह किसान आंदोलन वापिस लेने से पंजाब के किसानों को खुश करने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

पंजाब के किसान शेर सिंह
- फोटो :
amar ujala
किसानों और सिखों को एक साथ साधने की कोशिश
गुरुनानक जयंती के मौके पर इस कानून को वापिस लेकर भाजपा ने पंजाब के सिख समुदाय को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। गुरुनानक जयंती का सिख समुदाय के लिए एक खास महत्व है। भाजपा को उम्मीद है इस मौके पर तीनों कृषि कानू वापिस लिए जाने की खुशी उन्हें अपने पाले में खींच कर लाएगी।
सरकार के इस फैसले से सीधे तौर पर सिख समुदाय और किसान दोनों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। लखीमपुरी खीरी कांड में भी ज्यादार प्रभावित सिख समुदाय के किसान ही रहे। इस तरह तीनों कृषि कानून को वापिस लिए जाने की घोषणा से एक साध पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड तीनों राज्यों के सिख समुदायों को एक साथ लाने की कोशिश हो सकती है। पंजाब में सिखों की आबादी लगभग 58 प्रतिशत है। बीते 17 नवंबर को ही सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर को भी फिर से खोलने का फैसला किया गया है।
गुरुनानक जयंती के मौके पर इस कानून को वापिस लेकर भाजपा ने पंजाब के सिख समुदाय को एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। गुरुनानक जयंती का सिख समुदाय के लिए एक खास महत्व है। भाजपा को उम्मीद है इस मौके पर तीनों कृषि कानू वापिस लिए जाने की खुशी उन्हें अपने पाले में खींच कर लाएगी।
सरकार के इस फैसले से सीधे तौर पर सिख समुदाय और किसान दोनों को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। लखीमपुरी खीरी कांड में भी ज्यादार प्रभावित सिख समुदाय के किसान ही रहे। इस तरह तीनों कृषि कानून को वापिस लिए जाने की घोषणा से एक साध पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड तीनों राज्यों के सिख समुदायों को एक साथ लाने की कोशिश हो सकती है। पंजाब में सिखों की आबादी लगभग 58 प्रतिशत है। बीते 17 नवंबर को ही सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर को भी फिर से खोलने का फैसला किया गया है।

दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो)
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अमरिंदर सिंह
कृषि कानूनों को वापिस लेने में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने और कांग्रेस से अपनी राह अलग करने के बाद अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी और उस मुलाकात में उनसे कृषि कानून वापिस लेने का मामला उठाया था। कैप्टन लगातार यह मुद्दा उठा रहे थे। सूत्र बताते हैं कि अमरिंदर सिंह ने भाजपा को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि सरकार यदि कृषि कानून वापिस ले ले तो भाजपा को अमिरंदर सिंह का साथ मिल सकता है।
बेशक अमरिंद सिंह भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा की है लेकिन माना जा रहा है कि अमरिंद सिंह चुनाव पूर्व या चुनाव बाद भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं। अमरिंदर सिंह पंजाब में एक बड़े कद वाले नेता माने जाते हैं और यदि वे भाजपा से हाथ मिलाते हैं तो भाजपा को भी पंजाब में इसका फायदा होगा। वहीं अमरिंद सिंह को भी अपनी नई पार्टी के लिए एक मजबूत आधार मिल गया है क्योंकि वे इस कानून को वापिस लेने का श्रेय ले सकते हैं।
कृषि कानूनों को वापिस लेने में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने और कांग्रेस से अपनी राह अलग करने के बाद अमरिंदर सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी और उस मुलाकात में उनसे कृषि कानून वापिस लेने का मामला उठाया था। कैप्टन लगातार यह मुद्दा उठा रहे थे। सूत्र बताते हैं कि अमरिंदर सिंह ने भाजपा को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि सरकार यदि कृषि कानून वापिस ले ले तो भाजपा को अमिरंदर सिंह का साथ मिल सकता है।
बेशक अमरिंद सिंह भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा की है लेकिन माना जा रहा है कि अमरिंद सिंह चुनाव पूर्व या चुनाव बाद भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं। अमरिंदर सिंह पंजाब में एक बड़े कद वाले नेता माने जाते हैं और यदि वे भाजपा से हाथ मिलाते हैं तो भाजपा को भी पंजाब में इसका फायदा होगा। वहीं अमरिंद सिंह को भी अपनी नई पार्टी के लिए एक मजबूत आधार मिल गया है क्योंकि वे इस कानून को वापिस लेने का श्रेय ले सकते हैं।

प्रियंका गांधी वाड्रा व अखिलेश यादव
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चुनाव में विपक्षी धार कुंद होगी
करीब एक साल से यह आंदोलन चल रहा था। विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर थी और इस कृषि कानून को वापिस लेने की मांग कर रही थी। तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां एक स्वर में किसान आंदोलन के साथ थी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और रालोद किसानों के बीच पहुंचकर उनका समर्थन कर रहे थे और सरकार के खिलाफ एक माहौल बन रहा था। आगामी चुनाव में विपक्ष किसान आंदोलन को एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रहा था। दूसरी तरफ इसी महीने शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में भी विपक्ष संसद में सरकार को घेरने की रणनीति बना रहा था। तीनों कानून वापिस लेकर सरकार ने एक ही झटके में विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीन लिया।
हालांकि इस आंदोलन को वापिस लेने के फैसले के बाद भी विपक्ष ने सरकार पर हमला नहीं छोड़ा। शिवसेना नेता नवाब मलिक-किसानों ने मोदी सरकार को झुकाने का काम किया है। इसका मतलब है कि यदि देश एकजुट हों तो सरकार को झुकाया जा सकता है। वहीं राजद मनोज झा ने कहा एक जीवंत आंदोलन सरकार के फैसले पलट देता है। सरकार के लिए एक संदेश है कि आप संसद से कुछ भी पारित कराकर शासन नहीं कर सकते।
करीब एक साल से यह आंदोलन चल रहा था। विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर थी और इस कृषि कानून को वापिस लेने की मांग कर रही थी। तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियां एक स्वर में किसान आंदोलन के साथ थी। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और रालोद किसानों के बीच पहुंचकर उनका समर्थन कर रहे थे और सरकार के खिलाफ एक माहौल बन रहा था। आगामी चुनाव में विपक्ष किसान आंदोलन को एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रहा था। दूसरी तरफ इसी महीने शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में भी विपक्ष संसद में सरकार को घेरने की रणनीति बना रहा था। तीनों कानून वापिस लेकर सरकार ने एक ही झटके में विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीन लिया।
हालांकि इस आंदोलन को वापिस लेने के फैसले के बाद भी विपक्ष ने सरकार पर हमला नहीं छोड़ा। शिवसेना नेता नवाब मलिक-किसानों ने मोदी सरकार को झुकाने का काम किया है। इसका मतलब है कि यदि देश एकजुट हों तो सरकार को झुकाया जा सकता है। वहीं राजद मनोज झा ने कहा एक जीवंत आंदोलन सरकार के फैसले पलट देता है। सरकार के लिए एक संदेश है कि आप संसद से कुछ भी पारित कराकर शासन नहीं कर सकते।