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Online Study: क्या ऑनलाइन कोचिंग-ट्यूशन का बुखार उतर गया? बच्चों की कमी से शिक्षकों की छंटनी करने पर मजबूर हुईं कंपनियां
सार
ऑनलाइन शिक्षा के लिए प्रसिद्ध कंपनी वेदांतु ने अपने यहां 424 टीचर्स और अन्य सपोर्टिंग स्टाफ की छंटनी की है। इसके पहले भी कंपनी 200 से ज्यादा स्टाफ की छंटनी कर चुकी है।
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- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
कोरोना काल बीतने के साथ ही ऑनलाइन ट्यूशन-कोचिंग का ‘बुखार’ उतरता दिखाई पड़ रहा है। कोरोना संक्रमण के कमजोर होते ही सरकारों ने स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी, जिससे पढ़ाई के लिए बच्चे अपनी पारंपरिक कक्षाओं की ओर लौट गए। बच्चों के ट्यूशन के लिए भी अभिभावक दुबारा पारंपरिक तरीके से फिजिकल एजुकेशन में शिक्षकों पर भरोसा करने लगे हैं। इससे ऑनलाइन एजुकेशन कंपनियों के पास छात्रों की कमी हो गई है, लिहाजा उन्हें अपना व्यवसाय सिमटता हुआ दिखाई पड़ रहा है। छात्रों की कमी से जूझ रही कंपनियां अब टीचर्स और अन्य सपोर्टिंग स्टाफ की छंटनी करने पर भी मजबूर हो गई है।
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ऑनलाइन शिक्षा के लिए प्रसिद्ध कंपनी वेदांतु ने अपने यहां 424 टीचर्स और अन्य सपोर्टिंग स्टाफ की छंटनी की है। इसके पहले भी कंपनी 200 से ज्यादा स्टाफ की छंटनी कर चुकी है। एक अन्य कंपनी अनएकेडमी ने भी अप्रैल माह में अपने यहां लगभग 600 कर्मचारियों की छंटनी की है। ऑनलाइन एजुकेशन की एक बड़ी कंपनी अपने यहां भारी संख्या में शिक्षकों की छंटनी करने की तैयारी कर रही है। तो क्या कोरोना काल में पारंपरिक शिक्षण पद्धति का विकल्प बनकर उभरी ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था अब समाप्त होने की ओर है?
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क्यों हुआ मोहभंग
यूनिवर्सिटी और अन्य शिक्षण संस्थाओं के लिए ऑनलाइन ऐप विकसित करने वाली कंपनी कॉलपॉल के संस्थापक और सीईओ हेमंत सहल ने अमर उजाला को बताया कि कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने से अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित होने लगे थे। संक्रमण की डर से अभिभावक टीचर्स को अपने घरों पर बुलाने से भी डरने लगे थे। ऐसे दौर में ऑनलाइन टीचिंग एक बड़ा विकल्प बनकर उभरा था। लोगों को यह लगने लगा था कि ऑनलाइन शिक्षा भविष्य में शिक्षण की एक मजबूत विधा बनकर उभर सकती है।
रोजगार का विकल्प भी
स्कूलों के बंद होने से प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों को अपने भविष्य को लेकर भी बड़ी चिंता होने लगी थी। कोरोना काल में बंद पड़े स्कूलों ने पर्दे के पीछे लाखों टीचर्स को नौकरी से हटा दिया तो अन्य लाखों टीचर्स को इस दौरान भुगतान न किए जाने की बातें सामने आईं। इस दौर में कुछ शिक्षकों को ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से रोजगार का एक नया विकल्प मिल गया था।
सामने आई कमजोरी
लेकिन जैसे ही बच्चों ने ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करनी शुरू की, इस माध्यम की कमजोरियां सामने आने लगीं। बच्चे अपने टीचर्स से वह संवाद और प्रश्नोत्तरी नहीं कर पा रहे थे, जैसा कि वे फिजिकल क्लास में कर लेते हैं। इससे उनके सीखने की क्षमता प्रभावित हो रही थी और बच्चों के प्रदर्शन में गिरावट आ रही थी। इंटरनेट स्पीड कमजोर होना, बेहतर डिवाइस की कमी होना और समाज के हर तबके तक ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच न हो पाने के कारणों ने भी इस माध्यम की सीमितता उजागर कर दीं।
बच्चों के भटकाव का इलाज नहीं
दिल्ली के एक स्कूल में गणित के अध्यापक अरविंद कुमार शर्मा ने अमर उजाला को बताया कि पढ़ाई के दौरान बच्चों में मानसिक भटकाव एक बड़ी समस्या होती है। फिजिकल क्लास या ट्यूशन कक्षाओं में शिक्षक लगातार अपने बच्चों को इसके प्रति सजग करते रहते हैं, लेकिन ऑनलाइन माध्यम में कोई बच्चा मोबाइल स्क्रीन देखते रहने के बाद भी किस वस्तु पर ध्यान लगा रहा है, यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा था। ऑनलाइन शिक्षकों के पास इस बात को चेक कर पाने या इस कमी को दूर कर पाने का भी कोई विकल्प नहीं था।
देखा यह भी गया कि पढ़ाई के दौरान भी बच्चे मल्टी चैनल के माध्यम से पढ़ाई के अलावा दूसरा कार्य करने लगे और ऑनलाइन शिक्षक इस बात को भांप तक नहीं पाए। इससे ऑनलाइन कक्षाओं के प्रति छात्रों और अभिभावकों का मोहभंग हुआ।
ऑनलाइन तकनीकी को पारंपरिक शिक्षण की ताकत बनाया
- वहीं, कॉल पॉल के हेमंत सहल का मानना है कि ऑनलाइन शिक्षा कभी पारंपरिक शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकती, लेकिन ऑनलाइन सिस्टम की खूबियों को पारंपरिक शिक्षा को मजबूत करने में उपयोग किया जा सकता है। इससे बच्चों की पढ़ाई के स्तर में सुधार आने के साथ-साथ शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित हो सकेगी। साथ ही अभिभावक भी स्कूलों-विश्वविद्यालयों से ज्यादा बेहतर ढंग से जुड़ सकेंगे और अपने बच्चों के बारे में ज्यादा निश्चिंत हो सकेंगे।
- कॉल पॉल ने विभिन्न यूनिवर्सिटीज और अन्य शिक्षण संस्थाओं के लिए ऐप तैयार किए हैं। इन ऐप के माध्यम से बच्चों के शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से लेकर उनकी मासिक प्रगति, टेस्ट, परीक्षा परिणाम, टीचर्स-पैरेंट मीटिंग सब कुछ ऑनलाइन माध्यम से किया जा रहा है। अब ऑनलाइन सीसीटीवी के माध्यम से अभिभावक दुनिया के किसी भी कोने में रहते हुए क्लास में बैठे अपने बच्चों को पढ़ता या खेलता हुआ देख पा रहे हैं।
- इससे बच्चों के प्रति स्कूलों की जिम्मेदारी बढ़ी है, तो अभिभावक भी बच्चों की पल-पल की प्रगति से सीधा जुड़ गए हैं। इस तरह की तकनीकी बच्चों की पढ़ाई को ज्यादा उपयोगी बनाने में मददगार साबित हुई है, लेकिन ज्यादातर शिक्षाविदों का मानना है कि केवल ऑनलाइन कक्षाएं पढ़ाई का विकल्प नहीं बन पाईं है और इसकी कमजोरियां सामने आ चुकी हैं।